1. सामग्री
  2. क्यू एंड ए
  3. इस्लाम में उपासना (बंदगी) का अर्थ

इस्लाम में उपासना (बंदगी) का अर्थ

Under category : क्यू एंड ए
2071 2013/03/26 2024/04/25
Article translated to : Français Français

आप से अनुरोध है कि इस्लाम में उपासना (बंदगी) का अर्थ स्पष्ट करें (अल्लाह के लिए दासता और लोगों के लिए दासता)।

 

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

 

मुसलमान की अल्लाह के लिए उपासना और बंदगी ही वह चीज़ है जिस का अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने अपनी किताब में हुक्म दिया है और उसी उद्देश्य के लिए रसूलों (सन्देष्टाओं) को भेजा है, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान हैः

 

"हम ने प्रत्येक समुदाय में रसूल भेजे कि लोगो! केवल अल्लाह की उपासना करो और ताग़ूत (उस के अलावा सभी असत्य पूज्यों) से बचो।" (सूरतुन-नह्ल: 36)

 

'अल-उबूदिय्यह' (अर्थात् उपासना, दासता) अरबी भाषा में "अत्ता'बीद" से उद्धृत है, आप कहते हैं "अब्बद्-तुत्तरीक़ा" अर्थात उसे बराबर, हमवार और आसान कर दिया। बन्दे की अल्लाह के लिए उबूदीयत के दो अर्थ है, एक सामान्य और दूसरा विशिष्ट, यदि इस से मुराद अल-मुअब्बद अर्थात् रौंदा और बराबर किया हुआ मुराद लिए जाये तो वह सामान्य अर्थ है, और इस के अन्तरगत ऊपरी दुनिया और नीचे की दुनिया के सभी मख्लूक़ आ जायेंगे, चाहे वे बुद्धि वाले हों या बिन बुद्धि के, गीले हों या सूखे, चलने फिरन वाले हों या स्थिर, काफिर हों या मोमिन, नेक हों या बुरे, सब के सब अल्लाह की मख्लूक़ हैं, उसके अधीनीकरण से अधीन हैं, और उसकी तदबीर (संचालन) करने से चलते हैं, और उन में से हर एक की एक सीमा है जहाँ वह रूक जाता है।

 

और अगर अब्द से मुराद अल्लाह की इबादत करने वाला, उसके आदेश का पालन करने वाला है, तो यह केवल मोमिनों के लिए विशिष्ट है, क्योंकि मोमिन लोग ही वास्तव में अल्लाह के बन्दे हैं जिन्हों ने उसे उसकी रूबूबियत, उसकी उलूहियत और उस के नामों और गुणों में एकता घोषित किया है, उस के साथ किसी को साझी नहीं ठहराया है। जैसा कि अल्लाह तआला ने इब्लीस के क़िस्से में फरमायाः

 

"(इब्लीस ने) कहा कि हे मेरे रब! तू ने मुझे भटकाया है, मुझे भी क़सम है कि मैं भी धरती में उनके लिए मोह पैदा करूँगा और उन सब को भटकाऊँगा, सिवाय तेरे उन बन्दों के जो चयन कर लिये गये हैं। (अल्लाह ने) कहा कि हाँ यही मुझ तक पहुँचने का सीधा रास्ता है। मेरे बन्दों पर तेरा कोई प्रभाव नहीं, लेकिन हाँ जो भटके हुए लोग तेरी पैरवी करेंगे।" (सूरतुल हिज्र: 39-42)

 

जहाँ तक उस इबादत का संबंध है जिस का अल्लाह तआल ने आदेश दिया है, तो यह हर उन ज़ाहिरी और बातिनी (प्रोक्ष और प्रत्यक्ष) बातों और कामों का नाम है जिन से अल्लाह तआला प्रेम करता और प्रसन्न होता है, तथा जो चीज़ें इनके विरूद्ध हैं उन से बरी और अलग-थलग रहना। अत: इस परिभाषा में शहादतैन, नमाज़, हज्ज, रोज़ा, अल्लाह के मार्ग में जिहाद, भलाई का आदेश करना, बुराई से रोकना, अल्लाह तआला, फरिश्तों, रसूलों, और आखिरत के दिन पर विश्वास रखना, सब दाखिल है, और इस इबादत का आधार इख्लास है, जिस का मतलब यह है कि इबादत करने वाले का उद्देश्य अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की प्रसन्नता और आखिरत का घर हो, अल्लाह तआला का फरमान है : "और उस से ऐसा इंसान दूर रखा जायेगा जो सदाचारी (परहेज़गार) होगा। जो पाकी हासिल करने के लिए अपना धन देता है। किसी का उस पर उपकार (एहसान) नहीं कि जिस का बदला दिया जा रहा हो। बल्कि केवल अपने बुलन्द रब की खुशी हासिल करना होता है। बेशक वह (अल्लाह भी) जल्द ही खुश हो जायेगा।" (सूरतुल्लैल : 17-21)

 

अत: इख्लास ज़रूरी है, फिर सच्चाई का भी पाया जाना ज़रूरी है : इस प्रकार कि मोमिन अल्लाह तआला के आदेशों का पालन करने, उस की निषेद्ध की हुई चीज़ों से बचने, अल्लाह तआला से मुलाक़ात के लिए तैयारी करने, बेबसी व कमज़ोरी, और सुस्ती व काहिली को त्यागने और अपने नफ्स को खाहिशात की पैरवी से रोकने के लिए भरपूर प्रयास करे, जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है : "ऐ ईमान वालो! अल्लाह तआला से डरो और सच्चों के साथ रहो।" (सूरतुत्तौबा : 119)

 

तथा इबादत के अंदर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अनुकूलता भी अनिवार्य और ज़रूरी है, अत: उपासक अल्लाह तआला की इबादत (उपासना) अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की शरीअत के अनुकूल करे, न कि लोगों की इच्छा और खाहिश और उनकी गढ़ी हुई बिदअत के अनुसार करे, और यही अल्लाह की तरफ से भेजे गये पैग़ंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैरवी और आज्ञापालन का उद्देश्य है। अत: इबादत के अंदर इख्लास, सच्चाई और अनुकूलता का पाया जाना ज़रूरी है। जब यह बातें जान और समझ ली गईं तो हमारे लिए यह स्पष्ट हो गया कि इन परिभाषाओं के विपरीत और विरूद्ध जो भी चीज़ें हैं वह लोगों की बंदगी और उपासना में दाखिल हैं, चुनाँचि रियाकारी (दिखावा) मनुष्य की बंदगी है, शिर्क मनुष्य की बंदगी है, आदेशों को छोड़ देना, लोगों को खुश करने के लिए अल्लाह को नाराज़ करना मनुष्य की बंदगी (पूजा) है, तथा जिस ने भी अपने रब की फरमांबरदारी पर अपने मन की फरमांबादारी को प्राथमिकता दी वह अल्लाह तआला की बन्दगी और उपासना की अपेक्षा से बाहर निकल गया और शुद्ध प्रणाली का विरोध किया। इसी लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : "नाश हुआ दीनार का बंदा, नाश हुआ दिर्हम का बंदा, नाश हुआ धारीदार चादर का बंदा, नाश हुआ बेल-बूटे वाले चादर का बंदा, अगर उसे दिया गया तो खुश रहा और अगर नहीं दिया गया तो नाराज़ हो गया, वह नाश हुआ और नाकाम हुआ, अगर उसे काँटा चुभ जाये तो किसी को निकालने वाला न पाये।"

 

अल्लाह तआला के लिए उपासना और बंदगी, महब्बत (प्रेम-भावना), डर, और उम्मीद (आशा) को सम्मिलित और उसे समाये हुए होती है, चुनाँचि बंदा अपने रब से महब्बत करता है, उसकी सज़ा से डरता है और उसकी दया और सवाब (प्रतिफल) की आशा रखता है, ये बंदगी के तीन स्तंभ हैं जिन के बिना उपासना और बंदगी सम्पूर्ण नहीं हो सकती।

 

अल्लाह तआला के लिए उपासना और बंदगी एक सम्मान (शरफ) है, कोई अपमान नहीं है, जैसाकि अरबी भाषा का एक कवि कहता है (जिस का अर्थ यह हैः)

 

और जिस चीज़ ने मेरे सम्मान और गौरव को बढ़ा दिया, और मैं क़रीब था कि अपने पाँव से सुरैय्या पर पहुँच जाऊँ, वह तेरे कथन "ऐ मेरे बन्दो!" के अंतरगत मेरा दाखिल होना है, और यह कि तू ने "अहमद" को मेरे लिए पैग़ंबर बना दिया।

 

हम अल्लाह तआला से दुआ करते हैं कि हमें अपने सदाचारी और नेक बन्दों में से बनाये, और अल्लाह तआला हमारे पैग़ंबर मुहम्मद पर दया और करूणा की वर्षा करे।

Previous article Next article

Articles in the same category

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day