सूरतुल फातिहा के बाद की क़िराअतः 55- सूरतुल फातिह़ा के बाद पहली दोनों रकअतों में कोई दूसरी सूरत या कुछ आयतें पढ़ना मसनून है, यहाँ तक कि जनाज़ा की नमाज़ में भी। 56- और कभी कभी सूरतुल फातिह़ा के बाद क़िराअत लम्बी करेंगे और कभी कभी किसी कारणवश जैसे सफर, या खांसी, या बीमारी, या छोटे बच्चे के रोने के कारण क़िराअत को छोटी करेंगे। 57- और नमाज़ों के विभिन्न होने के साथ क़िराअत भी भिन्न होती है, चुनांचि फज्र नमाज़ की क़िराअत सारी नमाज़ों की क़िराअतों से अधिक लम्बी होती है, फिर आम तौर पर ज़ुहर, फिर अस्र और इशा और फिर मग़रिब की क़िराअत होती है। 58- और रात की नमाज़ की क़िराअत इन सभी नमाज़ों से लम्बी होती है। 59- और सुन्नत का तरीक़ा यह है कि पहली रक़अत की क़िराअत दूसरी रक़अत से लम्बी करनी चाहिये। 60- और दोनों अंतिम रकअतों की क़िराअत पहले की दोनों रकअतों से आधी मात्रा में छोटी करनी चाहिए। (इस अध्याय के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए यदि चाहें तो "सिफतुस्सलात" नामी किताब का पेज न0 102 देखें)।