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फ़ज्र (सवेरे) की नमाज़

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1304 2012/07/21 2024/04/19


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अज़ान के शब्दों को दुहराना और फिर हज़रत पैगंबर -उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-पर दुरूदु पढ़ना उसके बाद आज़ान के बाद की दुआ पढ़ना और वह दुआ इस तरह है :

 

(اللهم رب هذه الدعوة التامة والصلاة القائمة آت محمداً الوسيلة والفضيلة ، وابعثه مقاماً محموداً الذي وعدته)

[अल्लाहुम्मा रब्बा हाज़िहिद- दअवतित-ताम्मति वस-सलातिल-क़ाइमा, आति मुहम्मदन अल-वसीलता वल- फज़ीला, वबअसहू मक़ामम-महमूदन अल-लज़ी वअदतहू.]

)हे अल्लाह! इस पूर्ण बुलावे और स्थापित नमाज़ के मालिक! हज़रत मुहम्मद को "वसीला" नमक दर्जा और उदारता दे, और उन्हें "मक़ामे-महमूद"(सराहनीय दर्जा) दे जिसका तूने वचन दिया है l ( (इसे बुख़ारी और अहमद ने उल्लेख किया है)

याद रहे कि आज़ान और नमाज़ के लिए इक़ामत के बीच होने वाली दुआ अस्वीकृत नहीं होती है l इसलिए आप दुआ के स्वीकार होने के समय को ग़नीमत समझिये और यह बात याद रखने के योग्य है कि रोज़ा रखे हुए व्यक्ति की दुआ रद्द नहीं होती है l क्योंकि हज़रत पैगंबर -उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-ने फ़रमाया है l

"ثلاثة لا ترد دعوتهم: الصائم حتى يفطر، والإمام العادل ودعوة المظلوم، يرفعها الله فوق الغمام، ويفتح لها أبواب السماء، ويقول الرب: "وعزتي لأنصرنك، ولو بعد حين".

(तीन प्रकार के लोग ऐसे हैं जिनकी दुआ रद्द नहीं होती है : रोज़ादार रोज़ा खोलने तक और इंसाफपसंद शासक और मज़लूम व्यक्ति की दुआ, अल्लाह सर्वशक्तिमान उसे बादल के ऊपर उठाता है और उसके लिए आकाश के दरवाज़ों को खोलता है और सब का पालनहार फरमाता है : मेरी इज़्ज़त की क़सम मैं तुम्हारी ज़रूर मदद करूँगा भले ही कुछ समय के बाद l) (इसे तिरमिज़ी ने उल्लेख किया देखिए हदीस नंबर ३५९८ और इब्ने माजह ने देखिए हदीस नंबर १७५२ और अहमद ने देखिए २-४४५ और इब्ने हिब्बान ने देखिए ८७४ , और यह हदीस हज़रत अबू हुरैरह –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-से कथित है l

-फ़ज्र की फ़र्ज़ नमाज़ से पहले दो रकअत सुन्नत नमाज़ पढ़ना और इस तरह की सुन्नत नमाज़ें जो पाँचों नमाज़ों के समय पढ़ी जाती हैं कुल बारह रकअत हैं l हज़रत पैगंबर -उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-की पवित्र पत्नी उम्मे हबीबा –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- से कथित है कि वह हज़रत पैगंबर -उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-को फरमाते सुनी :

"ما من عبد مسلم يصلي لله كل يوم ثنتي عشرة ركعة تطوعا غير فريضة إلا بنى الله له بيتا في الجنة"

(जो मुस्लमान व्यक्ति भी प्रत्येक दिन फ़र्ज़ के इलावा बारह रकअत नफिल पढ़ता है तो अल्लाह उसके लिए स्वर्ग में एक घर का निर्माण कर देता है l)

याद रहे कि इस प्रकार की सुन्नत नमाज़ें मस्जिद की तुलना में घर में पढ़ना अधिक पुण्य का काम है l

-फ़ज्र की नमाज़ जमाअत में पढ़ना चाहिए इस विषय में हज़रत जुन्दुब बिन अब्दुल्लाह- अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- से कथित है कि हज़रत पैगंबर -उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-ने फ़रमाया :

"مَن صلَّى الصبحَ فَهُوَ ذِمَّةِ الله فَلا يَطلُبَنَّكُمُ الله مِن ذِمَّتِهِ بِشَيْءٍ فَيُدرِكَهُ فَيَكُبَّهُ نَارِ جَهَنَّمَ".

 

)जो भी फ़ज्र की नमाज़ पढ़े तो वह अल्लाह की ज़िम्मेदारी (रक्षा) में है इसलिए अल्लाह सर्वशक्तिमान को उसकी ज़िम्मेदारी को तोड़ कर पकड़ करने का हरगिज़ अवसर मत दीजिए क्योंकि वह पकड़ करेगा और मुंह के बल उसे नर्क में धकेल देगा l) इमाम नववी ने इस हदीस में जो अज़-ज़िम्मा का अरबी शब्द आया है उसके अर्थ में कहा है कि उसका अर्थ गारंटी और ज़िम्मा और रक्षा है l देखिए मुस्लिम की व्याख्या ( /१५८)

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day