अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने पत्नियों को अपने पतियों के अधिकार निभाने और आदा करने की वसियत फ़रमाई, और यह वसियत बहुत सी ह़दीस़ों में आई है, अत: ह़ज़रत अनस बिन मालिक -अल्लाह उनसे प्रसन्न हो - से उल्लेख है वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फरमाया: " किसी भी मनुष्य को किसी मनुष्य के लिए सजदा करना जायज़ नहीं है, अगर किसी मनुष्य को यह जायज़ होता कि वह किसी मनुष्य को सजदा करे, तो मैं महिला को यह आज्ञा व हुक्म देता कि वह अपने पति को सजदा करे, उसके (यानी पति के ) उस पर बहुत ज़्यादा अधिकार होने के कारण।" ([1]) और हज़रत आ़एशा -अल्लाह उनसे प्रसन्न हो - से उल्लेख है कि उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से पूछा : महिला पर सबसे अधिक व ज़्यादा किसका अधिकार है? तो आप -अ़लैहि अस़्स़लातु वस्सलाम - ने फ़रमाया : उसके पति का, (ह़ज़रत आ़एशा कहती हैं कि फिर ) मैं ने पूछा : तो पुरुष पर सबसे ज़्यादा किसका अधिकार है? तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया : उसकी माँ का।" ([2]) और इन ह़दीस़ों में इस बात का बयान है कि पति के पत्नी के ऊपर बहुत ज़्यादा अधिकार हैं, और पत्नी उन्हें नहीं चुका सकती है, जैसा कि इनमें पत्नी के लिए इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि उसे अपने पति की आज्ञा का पालन करे, क्योंकि अल्लाह के अलावा किसी के भी आगे सजदा करना जायज़ नहीं, बल्कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने यह भी बताया कि जिन कारणों पर महिला का स्वर्ग व जन्नत में जाना निर्भर करता हैं उन में से एक कारण पति की आज्ञा का पालन करना भी है। अत: अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम फ़रमाते हैं : " अगर महिला पांचो समय की नमाज़ पढ़े, और (रमज़ान) के महीने के रोज़े रखे, अपने गुप्तांग कि सुरक्षा करे, और अपने पति की आज्ञा का पालन करे, तो स्वर्ग व जन्नत के जिस द्वार व दरवाज़े से चाहे प्रवेश करे।" ([3]) ([1]) यह ह़दीस़ सही़ह़ है, ईमाम अह़मद ने (3/158), निसई ने (265) महिलाओं के साथ व्यवहार में, और बज़्ज़ार ने इसे उल्लेख किया है जैसा कि मजमउ़ज़्ज़वाइद (9/4) में है । ([2]) यह ह़दीस़ सही़ह़ है, ईमाम अह़मद ने (3/158), निसई ने (266) महिलाओं के साथ व्यवहार में, और बज़्ज़ार ने इसे उल्लेख किया है जैसा कि मजमउ़ज़्ज़वाइद (9/4) में है । और हयस़मी ने कहा है : इसके रावी सही़ह़ ह़दीस़ के रावी हैं सिवाय ह़फ़्स़ के जो हज़रत अनस के भाई के बेटे हैं जो स़िका़ हैं। (यानी जिन पर भरोसा किया गया है।) ([3]) यह ह़दीस़ सही़ह़ है, ईमाम अह़मद ने (1/191), इब्ने हि़ब्बान ने (4151), अबु नई़म ने " ह़ुल्यह " (6/308) में और इब्ने अ़दी ने ह़ज़रत इब्ने औ़फ और ह़ज़रत अबूहुरैरह से " अल कामिल " (3/993) में रिवायत किया है।