और यह भी ख्याल रहे कि उनसे मुलाकात करने उनके इबादत की निशानियों, उनकी धार्मिक अकीदों या उनकी संसारिक त्योहारों जैसे नए साल और क्रिसमस आदि के मौके पर न की जाए और न ही उनकी इबादत की जगहों जैसे गिरजाघर आदि में ऐसे मौके पर उनसे मुलाकात की जाए जबकि वे अपनी रसमें अदा कर रहे हों ताकि शारीरिक तौर पर उनके साझेदारी न पाई जाए ताकि बाद में मानसिक तौर पर भी कोई असर न हो। क्योंकि ज्यादातर बाहर का असर अंदर पर पड़ता है भले ही कुछ जमाने बाद पड़े। तो जो उनकी धार्मिक रस्मों में शरीक होता है, हो सकता है कि उनका उस पर असर पड़ जाए और वह उन्हें अच्छा समझने लगे और समय गुजरते-गुजरते उनसे पूरी तरह से प्रभावित हो जाए। लिहाज़ा एहतियात इसी में है कि उनमें जाया ही न जाए ताकि इस बुराई का दरवाज़ा ही न खुले।