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पापों की माफ़ी की नियत रखना:
हज़रत पैगंबर -उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-ने फ़रमाया:
"من صام رمضان إيمانا واحتسابا غفر له ما تقدم من ذنبه".
(जिसने ईमान(विश्वास) के साथ और पुण्य की नियत से रमज़ान का रोज़ा रखा तो उसके पिछले सारे पाप की माफ़ी हो जाती हैl) [देखिए “सहीह अल जमेअ”]