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जानवरों के ऊपर दया
इस्लाम धर्म के अन्दर दया इंसानों (मानवता) से आगे जानवरों चौपायों को भी समिमलित है, इस्लाम ने मेहरबानी तथा दया के अन्दर जानवर का भाग सुनिशिचत किया है, हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रजि़यल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि:
''एक औरत एक बिल्ली के कारण नरक में दाखिल हुर्इ, उस ने उसे बांध दिया, न तो उसे खिलाया और न ही उसे छोड़ा कि ज़मीन के कीड़े-मकोड़े खा सके। "
तथा एक अन्य वर्णन में है कि:
''उस न उस को क़ैद कर दिया यहाँ तक कि वह मर गर्इ, और जब से उसे क़ैद किया तो उसे खिलाया पिलाया नहीं, और न ही ज़मीन से कीड़े मकोड़े खान के लिए छोड़ा।" (बुखारी व मुसिलम)
हज़रत अबू हूरैरह रजि़यल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णन करते हैं कि आप ने फरमाया:
''एक व्यकित एक कुँए के निकट आया और उतर कर पानी पिया, तथा कुँए के पास एक कुत्ता प्यास के कारण हाँप रहा था, तो उस व्यकित को दया आ गर्इ, उस ने अपना एक मोज़ा निकाल कर उसे पानी पिलाया, तो अल्लाह ने उसके बदले उसे स्वर्ग में प्रवेष कर दिया।" (बुखारी व मुसिलम)
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
''जो कोर्इ व्यकित बिग़ैर किसी अपराध के किसी गौरैये या उस से बड़े जानवर को मारता है, तो अल्लाह तआला महा प्रलय (कि़यामत) में उस से इस के विषय में प्रश्न करे गा।"
प्रश्न किया गया कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस का अधिकार क्या है? आप ने उत्तर दिया कि:
''उस का हक़ यह है कि जब उसे ज़बह करे तो उसे खाये तथा उस के सर को काट कर उसे फेंक न दे।" (इमाम नसार्इ ने इस हदीस को वर्णन किया है तथा अलबानी ने इस को हसन गरदाना है।)
यह तो उस व्यकित का विषय है जो बिना किसी अपराध के एक गौरैये को मार डाले, तो उस व्यकित की हालत तथा बदला और यातना क्या होगी जो नाहक़ किसी व्यकित का क़त्ल करे?!
जानवरों के विषय में इस्लाम की दया यह भी है कि उस ने उसके साथ एहसान करने तथा ज़बह करते समय उस को घबराहट में न डालने का आदेश दिया, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
''अल्लाह ने हर वस्तु पर एहसान को अनिवार्य कर दिया है, पस जब तुम क़त्ल करो, तो ठीक तरीक़े से क़त्ल करो, तथा जब ज़बह करो तो ठीक तरीक़े से ज़बह करो, तथा तुम में से एक व्यकित को चाहिए कि अपनी छुरी तेज़ कर ले और अपने जानवर को आराम पहुँचाए। (मुसिलम)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि़यल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि एक व्यकित ने एक बकरी को लिटाया तथा उस के सामने अपनी छुरी तेज़ करने लगा, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि:
''क्या तुम इस को दो बार ज़बह करना चाहते हो, क्यों नहीं इस को लिटाने से पहले तुम ने अपनी छुरी तेज़ कर ली।" (तबरानी और हाकिम ने इस का वर्णन किया तथा अलबानी ने इसे सहीह कहा है)
तो जानवरों के साथ दया की याचना करने वाले संगठन इन उत्तम नबवी आदर्श को क्यों नहीं अपनाते? तथा कैसे यह लोग इस्लाम की श्रेष्ठता को नकारते हैं जब कि यह धर्म इन के सामने चौदह शताब्दी से मौजूद है! तथा निरंतर यह लोग सत्य तथा असत्य के बीच अंतर नहीं करते, क्योंकि इस्लामी तरीक़े से ज़बह करने को यह लोग एक प्रकार का अत्याचार समझते हैं, तथा इस्लामी तरीक़े से ज़बह करने के ढेर सारे लाभ को नहीं जानते, जबकि इन का हाल यह है कि यह बिजली द्वारा अपने ज़बीहे (जानवर) को श।ट कर देते हैं, या फिर इन के सरों पर मारते हैं, तथा उस के मरने के पश्चात उसे ज़बह करते हैं। और इस तरीक़े को जानवर के साथ दया करना समझते हैं। व्यकित के पास यदि कोर्इ ईश्वरीय संदेश न हो, तो वह बिना जाने बूझे मामलात को हल करता है तथा अपने मन से निर्णय करता है, और हर सफेद वस्तु को चरबी का एक टुकडा़ तथा हर काली वस्तु को खजूर समझता है, तथा अन्य लोगों पर गर्व करने लगता है, जो कि स्वयं एक प्रकार की कुत्सा तथा निन्दा है, परन्तु इच्छा की आँख अन्धी होती है! (अपनी इच्छा से निर्णय करने वाला अन्धा होता है)
जिस को कड़वे पन का रोग होता है, तो उसे साफ तथ मीठा पानी भी कड़वा लगता है।
तथा जानवर पर दया करने के संबंध में यह अजीब वर्णन भी बयान किया जाता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक अंसारी के बाग़ में दाखिल हुये तथा उस के अन्दर एक ऊँट था जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देख कर आवाज़ करने लगा तथा उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस के पास आये और उसकी गर्दन पर अपना हाथ फेरा तो वह ऊँट चुप हो गया, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने प्रश्न किया कि:
''इस ऊँट का मालिक कौन है? यह ऊँट किस का है?
तो एक अंसारी लड़के ने उत्तर दिया कि ऐ अल्लाह के रसूल ! यह ऊँट मेरा है।
तो आप ने फरमाया:
''क्या इस जानवर के बारे में तुम को अल्लाह का डर नहीं कि जिस का मालिक अल्लाह ने तुम को बनाया है? क्योंकि इस ने मुझ से शिकायत की है कि तुम इस को भूखा रखते हो तथा निरंतर उस के ऊपर भारी भरकम बोझ लादते हो।" (अहमद तथा अबू दाऊद ने इस का वर्णन किया है और अलबानी ने सहीह कहा है।)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की यह दया खनिज पदार्थ के साथ भी थी! आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खजूर के एक तने पर खड़े हो कर ख़ुतबा (भाषण) देते थे, तो जब आप के लिए मिंबर बनाया गया और उस पर खड़े हो कर भाषण देने लगे, तो वह तना रो पड़ा, तथा सहाबा ने उस की आवाज़ सुनी, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम न उस के ऊपर अपना हाथ रखा, यहाँ तक कि वह चुपचाप हो गया। (बुखारी)
यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दया और मेहरबानी है, यह आप की भावनाएं हैं तथा आप का यह कृतज्ञ है और यह आप के बुनियादी उसूल हैं जिस की ओर आप ने लोगों को बुलाया, तो फिर क्यों इस उत्तमता को नकारते हो? तथा इस अनुपम बुज़ुर्ग हस्ती के अन्दर मानवी उच्चता को क्यों नहीं देखते?
कभी कभी आँख आने के कारण आँख सूर्य के प्रकाश का इनकार कर देती है, तथा कभी कभी बीमारी के कारण पानी का मज़ा अच्छा नहीं लगता।