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हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- औ

40749 2007/11/05 2024/12/10
Article translated to : العربية English

 


हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-और बहुविवाह प्रथा इस विषयमें लोगों का आरोप है कि:

* हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने अपने मुंहबोले बेटे ज़ैद बिन हारिसा की छोड़ी हुई पत्नी से विवाह किया?

 

 

* और उन्होंने कई शादियाँ कीं?
१- सबसे पहले यह बात याद रहे कि पैगंबर हज़रत मुहम्मद -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने २५ साल की उम्र से पहले कोई शादी नहीं की थीlइसी तरह यह बात भी साबित है कि पूर्व इस्लामी युग की परंपराओं में यह शामिल था कि अरब के लोग कम उम्र में शादी करने को पसंद करते थे ताकि अधिक से अधिक बेटे पैदा कर सकें जिनसे अपनी जनजाति में शक्ति स्थापित रहे और दूसरी जनजातियों से मुडभेड़ होने पर काम आ सकेंlऔर यह बात भी ज्ञात है कि पैगंबर हज़रत मुहम्मद -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-एक शुद्ध और नैतिक व्यक्ति थे और सदा अवैध संबंध, बुरी बात, बुरे काम से पवित्र रहेlऔर यह बात उनके दोस्त और दुश्मन सभी मानते थे जबकि उस समय अरब समुदाय में देहव्यापार और अश्लीलता का राज्य थाlऔर व्यभिचारी महिलाओं के घरों पर झंडे लगे होते थे जहां व्यभिचारी लोगों का स्वागत होता था, और व्यभिचार के दीवाने उन झंडों के द्वारा अपने अडडों को अच्छी तरह पहचान लेते थेl 
इन सभी परिस्थितियों के बावजूद और मक्का में आसानी से व्यभिचार के अवसर हाथ आजाने और बिगड़ने के सारे रास्ते खुले रहने के बावजूद, हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-सदा शुद्धता और पुण्य के रास्ते पर ही चलते रहे और उनकी पवित्रता और शुद्धता को लोग उदाहरण के तौर पर उल्लेख करते थे lइसका साफ़ मतलब यही है कि अल्लाह की आँख उनकी सुरक्षा करती थी और उनको शैतान के धोके से बचाती थी l
एक सही कथन में है कि एक बार उनके युवा साथियोँ ने उन्हें ज़बरदस्ती गाने-बजाने के एक अड्डे पर पहुंचा दिया तो अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उनपर नींद डाल दिया और नींद उस समय ही टूटी जब सब घर वापस लौटने लगे l

 


 २- जब पैगंबर हज़रत मुहम्मद -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-पच्चीस साल की उम्र को पहुंचे और उन्होंने शादी करने का इरादा किया तो किसी कुंवारी लड़की के खोज में नहीं पड़े जबकि अश्लीलता और मस्ती के दीवाने तो उसी के चक्कर में रहते हैं बल्कि उन्होंने एक ऐसी महिला से शादी कर ली जो पहले से शादीशुदा थी और जिनके पति उनसे जुदा हो चुके थे और वह महिला उनसे पंद्रह साल की बड़ी थीं जिनके बीस वर्ष के लड़के और बच्चे थे lजी हाँ वह हज़रत ख़दीजा –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-थीं, और इसपर भी उन्होंने पहल नहीं किया था बल्कि हज़रत ख़दीजा ने ही उनको शादी का पयाम दिया था क्योंकि वह पैगंबर हज़रत मुहम्मद -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को उनके सामान में व्यापारी का काम करते समय एक शुद्ध, पवित्र और ईमानदार व्यक्ति पाई थीं l

 


 ३- हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के साथ वह अपनी जिंदगी भर रहीं लेकिन हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उनके रहते पर किसी अन्य महिला से शादी नहीं की और अपनी जवानी को उन्हीं के साथ गुज़ार दिया, उनके सारे बच्चे हज़रत ख़दीजा से ही हुए थे सिवाय हज़रत इबराहीम के जो हज़रत मारिया क़िब्तिया से पैदा हुए थे l 

 


 ४ – इसके इलावा हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-हज़रत ख़दीजा की मौत के बाद भी पूरी जिंदगी भर उनको चाहते रहे और उनकी बड़ाई करते थे और उनको याद करते थे और उनके लिए अपने दिल में बहुत प्यार रखते थे, उनके अच्छे कर्मों का उल्लेख करते थे विशेष रूप से अपने संदेश की सफलता में उनकी भूमिका को बहुत याद करते थेl 
एक बार उन्होंने हज़रत ख़दीजा के बारे में कहा: "वह मुझ पर विश्वास रखी जब लोगों ने मुझे झुटलाया था और वह अपने पैसे के द्वरा मेरी सहायता कीं l"

वह सदा उनको याद करते थे और सभी समय उनका उल्लेख किया करते थे केवल यही नहीं बल्कि उनकी सहेलियों का भी ख्याल रखते थे lजिसके कारण हज़रत आइशा को उन पर डाह होता था l
जहाँ तक उनके बहुपत्नीत्व की बात है तो याद रहे कि यह बात उनकी विशेषता नहीं थी बल्कि यह तो बहुत सारे ईशदूतों का तरीका था lऔर उसके कारण थे l
यहाँ हम आपको यह बताते चलें कि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने अपनी पत्नी हज़रत ख़दीजा की मौत के बाद पचास से अधिक साल की उम्र तक कोई शादी नहीं की थी, और शादियां कीं भी तो ऐसी उम्र में जब आदमी के अंदर औरत की चाहत कम होने लगती है, बल्कि जिस उम्र में इस प्रकार की भावनाएं बिल्कुल सर्द पड़ने लगती हैं और स्त्री की ओर झुकाव कम होने लगता है lइस तथ्य को जान कर बिल्कुल साफ़ समझ में आता है कि उन्होंने यह शादियां उन महिलाओं की सहायता और उनकी मदद के लिए की थी इसी तरह उस में यह उद्देश्य भी शामिल था कि वे महिलाएं उनसे सीख कर उनकी जिंदगी की बातें दूसरी महिलाओं को सिखाएं और उनको शिक्षा दें और फिर हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-को शादी की ज़रूरत भी थी कि कोई उनका साथ दे और हज़रत ख़दीजा से जो उनके बच्चे थे उनकी देखरेख करे l 

 

 

इन शादियों के कारण और हालात
पहली पत्नी हज़रत सौदा बिनते ज़मअह-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-:  
हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की इनके साथ शादी हज़रत ख़दीजा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-के निधन के बाद हुई थीlवास्तव में हज़रत ख़दीजा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-के निधन के बाद हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के घर में दुख का वातावरण बना हुआ था और उनके सारे साथी भी बहुत दुखी थे क्योंकि वे देख रहे थे कि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-का ख़याल रखनेवाली पवित्र महिला इस दुनिया से गुज़र चुकी हैं lवे सोंच में थे कि अब उनके बच्चों की देखरेख कौन करेगी?इसके साथ ही उनके चचा अबू-तालिब भी इस दुनिया से रुख़सत हो चुके जो उनके बहुत बड़े सहायक और समर्थक थे और इसी कारण उस साल को "दुख का साल" कहा गया क्योंकि उसी साल हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के दो मदद करनेवाले उनका साथ छोड़ कर अल्लाह के प्यारे हो गएl  
इस दुखी वातावरण में, तन्हाई और अकेलापन के माहौल में जब उनके बच्चों की देखभाल करनेवाला कोई नहीं था तो एक मुसलमान महिला जिनको ख़ौला बिनते हकीम सलमी कहते थे हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के घर को आईं और उनको बोलीं :"ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे लगता है कि आपको ख़दीजा के निधन का बहुत दुख हैl" तो उन्होंने फ़रमाया:"बिल्कुल सही, वह मेरे बच्चों की माँ और गृहिणी थीl" इस पर वह बोलीं : क्या मैं आपके लिए कोई महिला देख सकती हूँ?तो हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा :लेकिन ख़दीजा के बाद अब कौन? तो वह हज़रत अबू-बक्र –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-की बेटी हज़रत आइशा को उल्लेख की, तो उन्होंने कहा: लेकिन वह तो अभी छोटी है lइस पर वह बोलीं :बात तो कर लीजिए फिर इंतिज़ार कर लेंगे lइस पर उन्होंने कहा: लेकिन घर कैसे चलेगा? और मेरी बेटियों की सेवा कौन करेंगे?तो ख़ौला बोलीं :तो फिर सौदा बिनते ज़मअह इस के लिए सबसे अधिक उचित है lइसके बाद यह बात सौदा के पिता के सामने रखी गई तो वह स्वीकार कर लिए और फिर उनके साथ शादी हो गईlऔर उनके साथ रुख़सती मक्का में हुई l 

 


यहाँ इस बात की ओर इशारा करना ज़रूरी समझता हूँ कि सौदा पहले सकरान बिन अम्र की पत्नी रह चुकी थीं लेकिन उनका निधन हो गया और जब चार महीने और दस दिन से अधिक समय बीत गया तो हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उनके साथ विवाह कियाlयाद रहे कि हज़रत ख़दीजा के निधन के बाद यह हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की पहली शादी थी यह शादी रमजान के महीने में ईश्दूतत्व के दसवें साल में हुई थीlमक्का के लोगों को इस शादी पर आश्चर्य हुआ क्योंकि हज़रत सौदा न तो ज़ियादा सुंदरता की मालिक थीं और न बड़े घराने से उनका सबंध था और लोगों के सोंच के अनुसार वह मोमिनों की माँ हज़रत ख़दीजा की जगह लेने के योग्य नहीं थीं क्योंकि हज़रत ख़दीजा बहुत सुंदर और बड़े घर की बेटी थीं जिनका लोगों की नज़र में बड़ा महत्व था l
यहाँ हम इस्लाम के दुश्मनों और अपराधियों को कहते हैं, देख लो यह  हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की हज़रत ख़दीजा के बाद पहली पत्नी हैं जो विश्वासियों के साथ अपने पति को लेकर हबश को स्थलांतर की थीं ताकि अपने ईमान-धर्म को सुरक्षित रख सकें लेकिन वहाँ से आते समय रास्ते में उनके पति का निधन हो गयाlऔर सही बात तो यही है कि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उनके साथ शादी इसलिए स्वीकार किया ताकि उनका दुख हल्का हो जाए और उनकी ज़िन्दगी का बंदोबस्त भी हो जाए lऔर फिर उनको अपने बच्चे और घर की देखरेख करने के लिए एक महिला की ज़रूरत भी थी l

 

 

हज़रत ख़दीजा के बाद दूसरी पत्नी हज़रत आइशा थी हज़रत पैगंबर -उन हज़रत आइशा हज़रत अबू-बक्र –अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-की बेटी थींl 
हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-नेहज़रत अबू-बक्र के विषय कहा: "निसंदेह अबू-बक्र अपने माल और दोस्ती में मुझ पर सबसे अधिक भरोसा करनेवाले थे, और यदि मैं किसी को जिगरी दोस्त बनाता तो अबू-बक्र को ही बनाता, लेकिन (यह तो संभव नहीं तो) इस्लाम धर्म के भाई का रिश्ताl”इसी तरह यह मश्हूर है कि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने फ़रमाया :

" ما نفعنى مالٌ قط ما نفعنى مال أبى بكر"

 

 

(मुझे कोई धन उतना लाभ नहीं दिया जितना अबू-बक्र के धन ने दियाl) मतलब हज़रत अबू-बक्र-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-ने अपना माल और धन हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के उपदेश को फैलाने में दिल खोल कर ख़र्च किया था l
और हज़रत आइशा की माँ उम्मे रूमान थीं जो आमिर किनानी की बेटी थीं,बड़ी धार्मिकतावाली सहाबी महिलाओं में से थींlजब उनका निधन हुआ था तो हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनके क़ब्र में उतरे थे और उनकी माफ़ी की दुआ की थी और यह प्रार्थना की:

" اللهم لم يخف عليك ما لقيت أم رومان فيك وفى رسولك صلى الله عليه وسلم"

 

 

"ऐ अल्लाह तुझ पर छिपा नहीं है जो उम्मे रूमान को तेरे और तेरे रसूल की ख़ातिर मुसीबत पहुंची थी l" और उन्होंने उनके निधन के दिन कहा था: "जिस किसी को भी जन्नत की हूरों की ओर देखने की इच्छा हो तो वह उम्मे रूमान की ओर देख ले l"
मक्का के लोग दो जिगरी दोस्तों के बीच इस नए रिश्ते पर अचंभित नहीं हुए थे बल्कि उनको लगा कि यह तो होनेवाला ही था lऔर वहाँ के लोगों के लिए यह एक बहुत ही सामान्य शादी थीlइसी लिए मक्का के किसी मूर्तिपूजक ने इस शादी पर कोई आरोप नहीं लगाया जबकि वे तो प्रत्येक छोटी और बड़ी बात पर आरोप लगाते थे lऔर छोटी उम्रवाली एक लड़की से शादी का जो इलज़ाम आज लगाया जा रहा है वह उस समय किसी ने नहीं लगाया क्योंकि यह बात उन लोगों में बिल्कुल सामान्य बात थी l  

 


यहाँ यह इशारा करता चलूँ कि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे-से शादी की थी और उन दोनों के बीच उम्र में कुछ अंतर था लेकिन याद रहे कि यह बात अरब समाज में कोई बुरी बात नहीं थी यह तो उनके समाज में बहुत परिचित बात थीl
लेकिन पश्चिमी देशों के इस्लामी विज्ञान से संबंध रखनेवालों और यहूदी और ईसाई विद्वानों का इस शादी पर आरोप है बल्कि इन लोगों ने इस बात को लेकर झूट-सच बहुत बकवास किया है और वे इस तथ्य से बिल्कुल अंधे बने रहे कि इस प्रकार का विवाह उस युग में परिचित था और ऐसी शादी कोई बुरी बात नहीं समझी जाती थी lयहाँ हम कुछ उदाहरण देना चाहते हैं जिनसे आपको भी पता चल जाएगा की ऐसी शादियाँ उस समय में हुआ करती थी:

 

 

१ – हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के दादा अब्दुल-मुत्तलिब , हज़रत आमिना की चचेरी बहन हाला से शादी की थी जबकि हज़रत आमिना से अब्दुल-मुत्तलिब के सबसे छोटे बेटे हज़रत अब्दुल्लाह की शादी हुई थी और यह तो सभी जानते हैं हज़रत अब्दुल्लाह हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के पिताजी थे l
 

 

२ – हज़रत उमर बिन ख़त्ताब ने हज़रत अली बिन अबी तालिब की बेटी से शादी की थी जबकि हज़रत उमर तो हज़रत अली से भी उम्र में बहुत बड़े थे l
 

 

३ – इसी तरह हज़रत उमर बिन ख़त्ताब-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- ने हज़रत अबू-बक्र-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- के लिए अपनी नौजवान बेटी हफ्सा के साथ शादी की पेशकश की थी lजबकि उन दोनों के बीच उम्र में काफी अंतर था और हज़रत उमर बिन ख़त्ताब-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- की बेटी हज़रत हफ्सा और हज़रत अबू-बक्र की उम्र में बहुत अंतर था, हज़रत आइशा की उम्र और हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-की उम्र की तुलना वहाँ फासिला बहुत ज़ियादा थाl
सच तो यही है कि हज़रत पैगंबर -उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने हज़रत आइशा से समाज की आदतों और उस समय के प्रचलित रीति-रिवाज के अनुसार शादी किया lलेकिन इस्लाम के दुशमन यह सबको छोड़ कर केवल हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-का हज़रत आइशा के साथ विवाह को गंभीर विषय बनाते हैं और यह आरोप लगाते हैं कि उन्होंने एक छोटी और कमसिन बच्ची से शादी की थी lलेकिन सही बात तो यही है कि यह आरोप ऐसे यहूदी और ईसाई इस्लाम दुश्मन विचारकों का है जिनके दिल शत्रुता और वैर से भरे हैं lअल्लाह मनमानी का बुरा करे जो आँखों और दिलों को अंधा कर के रख देती है l

 

 

तीसरी पत्नी: यानी हज़रत उमर की जवान और विधवा बेटी हज़रत हफ्सा:
हज़रत हफ्सा का विवाह पहले हनीस बिन हुज़ाफा अस-सहमी से हुआ थ

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