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(36) अल्लाह की बंदियों को अल्लाह की मस्जिदों से मत रोको।

227 2020/09/01
(36) अल्लाह की बंदियों को अल्लाह की मस्जिदों से मत रोको।

عَن عبد الله بْنِ عُمَرَ -رضي الله عنهما- أن رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:

لَا تَمْنَعُوا إِمَاءَ اللَّهِ مَسَاجِدَ اللَّهِ"

: तर्जुमा: ह़ज़रत अ़ब्दुल्लह इब्ने उ़मर रद़ियल्लाहु अ़न्हु कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया

" अल्लाह की बंदियों को अल्लाह की मस्जिदों से मत रोको।"

औरतें मर्दों ही की तरह हैं। अतः अल्लाह ने जो आदेश मर्दों को दिया है वही औरतों को भी दिया है सिवाय उन चीज़ों के जिन्हें वे नहीं कर सकतीं या जो उनके मुनासिब नहीं हैं। और नेक काम करने में जो सवाब मर्दो को मिलता है वही औरतों के लिए भी है अतः अल्लाह ताआ़ला क़ुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाता है:

﴿فَاسْتَجَابَ لَهُمْ رَبُّهُمْ أَنِّي لَا أُضِيعُ عَمَلَ عَامِلٍ مِنْكُمْ مِنْ ذَكَرٍ أَوْ أُنْثَى بَعْضُكُمْ مِنْ بَعْضٍ ﴾ 

(सूरह: आले इ़मरान, आयत संख्या: 195)

तर्जुमा: तो उनकी दुआ़ सुन ली उनके रब ने कि मैं तुम में काम वाले की मेहनत अकारत (बर्बाद) नहीं करता मर्द हो या औरत तुम आपस में एक हो। (तर्जुमा: कंज़ुल इमान) 

और नमाज़ दिन का सुतून और उसका महत्वपूर्ण खंबा और ईमान के सही होने की दलील है बल्कि वही स्वयं ईमान है जैसा कि अल्लाह ने सूरह बक़रा की आयत ए क़िबला में इरशाद फ़रमाया:

﴿ وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيُضِيعَ إِيمَانَكُمْ ﴾ 

(सूरह: अल-बक़रह, आयत संख्या: 143) 

तर्जुमा: और अल्लाह की शान नहीं कि तुम्हारा ईमान (यानी तुम्हारी नमाज़) अकारत (बर्बाद) करे। (तर्जुमा: कंज़ुल इमान)
क्योंकि बंदा अपने अल्लाह के सबसे ज़्यादा क़रीब उस समय होता है जबकि वह सजदे में होता है जैसा कि ह़दीस़ पाक में आया है। और उ़लमा ए किराम के कहने के मुताबिक मर्दों के लिए जमाअ़त के साथ नमाज पढ़ना फ़र्ज़ किफाया है या सुन्नता है।  (ह़नफी़ मज़हब में जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना वाजिब है) और औरतें इस हुक्म में दाखिल नहीं है। लेकिन हाँ औरतें मस्जिदों में जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने और ज्ञानी मजलिसों और सभाओं में मर्दों के साथ शरीक हो सकती हैं। लेकिन शर्त यह है कि वे अच्छी तरह से अपने आप को ढापी हुई हों, उनका मेकअप ज़ाहिर ना हो ना ही खुशबू महकाती हों और ना ही उनका मर्दों से मिलाप हो।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इस ह़दीस़ पाक में शोहरों, सरपरस्तों और जो उनके मर्तबे में हैं उन्हें इस बात से मना फ़रमाया है कि वे औरतों को जो कि मर्दों की तरह अल्लाह कि बंदियाँ हैं उन्हें मस्जिदों में जाने से रोकें। 
इस ह़दीस़ पाक में उन लोगों का सही़ह़ रद्द और जवाब है जो कहते हैं कि अब ज़माना बदल गया, हालात तब्दील हो गए और फसाद बहुत ज़्यादा फैल गया है। लिहाज़ा आज के ज़माने में औरतों को मस्जिद में जाने से रोकना एक जरूरी चीज़ है ताकि औरतें और साथ ही मर्द भी फितनों में पड़ने से महफूज़ रहें।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day