Search
(37) बहुत ज़्यादा सजदे किया करो।
عَنْ مَعْدَانُ بْنُ أَبِي طَلْحَةَ الْيَعْمَرِيُّ قَالَ: لَقِيتُ ثَوْبَانَ مَوْلَى رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَقُلْتُ:
أَخْبِرْنِي بِعَمَلٍ أَعْمَلُهُ يُدْخِلُنِي اللَّهُ بِهِ الْجَنَّةَ أَوْ قَالَ قُلْتُ بِأَحَبِّ الْأَعْمَالِ إِلَى اللَّهِ. فَسَكَتَ. ثُمَّ سَأَلْتُهُ فَسَكَتَ. ثُمَّ سَأَلْتُهُ الثَّالِثَةَ، فَقَالَ سَأَلْتُ عَنْ ذَلِكَ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَقَالَ عَلَيْكَ بِكَثْرَةِ السُّجُودِ لِلَّهِ فَإِنَّكَ لَا تَسْجُدُ لِلَّهِ سَجْدَةً إِلَّا رَفَعَكَ اللَّهُ بِهَا دَرَجَةً وَحَطَّ عَنْكَ بِهَا خَطِيئَةً" قَالَ مَعْدَانُ:"ثُمَّ لَقِيتُ أَبَا الدَّرْدَاءِ فَسَأَلْتُهُ فَقَالَ لِي مِثْلَ مَا قَالَ لِي ثَوْبَانُ".
तर्जुमा:ह़ज़रत मअ़दान बिन अबू त़ल्ह़ा याअ़मिरी कहते हैं कि मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के आजाद किए हुए गुलाम ह़ज़रत सौबान से मिला और मैंने पूछा कि मुझे कोई ऐसा काम बतलाओ जिसको मैं करूं तो उसकी वजह से अल्लाह तआ़ला मुझे जन्नत में दाखिल कर दे या यूँ कहा कि मुझे वह काम बताओ जो अल्लाह को सबसे ज्यादा पसंद हो। ह़ज़रत सौबान खामोश रहे, मैंने फिर उनसे पूछा फिर भी वह चुप रहे। तीसरी बार फिर मैंने पूछा तो उन्होंने कहा:
" मैंने भी यह बात अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से पूछी थी तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फरमाया था:" बहुत ज़्यादा सजदे किया करो। क्योंकि अल्लाह के वास्ते अगर तूम एक सजदा करेगा तो अल्लाह तुम्हारा एक दर्जा बुलन्द कर देगा और एक गुनाह माफ कर देगा।" मअ़दान कहते हैं की फिर मैं ह़ज़रत आबू दरदा से मिला और उनसे भी यही पूछा। तो उन्होंने भी वही कहा जो ह़ज़रत सौबान ने बताया।
यक़ीनन नमाज़ ईमान की सबसे बेहतर सूरत है और सबसे अच्छी इबादत भी। और नमाज़ बंदे और उसके अल्लाह के दरमियान एक मज़बूत रिश्ता है जहाँ बंदे को संतुष्टि और सुकून मिलता है बल्कि उसे अपना वह फ़ितरती मिजाज़ मिलता है जिस पर उसे अल्लाह ने पैदा किया है। क्योंकि नमाज़ उसे बेहयाई और बुरी बातों से रोकती है और बंदे को उसकी बुद्धि की जानिब फेरती है जिससे वह अपने अल्लाह की पूर्ण विशेषताओं और उसके सुंदर गुणों को पहचानता है और फिर वह अपनी नमाज़ों और तन्हाइयों में अपने अल्लाह से ऐसे डरता है और ऐसे उसकी आज्ञा का पालन करता है जैसे कि उस अल्लाह की बढ़ाई के आगे झुकने वाले, उसकी आज्ञा का पालन करने वाले उसकी नेमतों का शुक्र करने वाले उससे डरते और उसकी आज्ञा का पालन करते हैं और जो अपने ऐसे नेक व जिंदा और जागते दिलों से अपने अल्लाह तक पहुंचने और उसकी बारगाह में मकबूल होने की कोशिश करते हैं जो नमाज़ की बरकत और उसके करम से शिर्क की ज़ाहिरी और छुपी गंदगियों, शैतानी वसवसों और झूठे संदेहों और शकों से पाक और साफ हो चुके हैं और ज्ञान और ईमान की रोशनी ने उन्हें रोशन कर दिया है और वे उसी के लिए खास हैं।
बेशक नमाज़ ज़िक्र और फिक्र दोनों हैं।
ज़िक्र इसलिए कि वह हर तरह के दिली और ज़वानी ज़िक्र पर मुशतमिल है। अतः दिल ज़िक्र करता है और ज़बान उसका तर्जुमा करती और उसको बयान करती है और उसके अंग उसके ज़िक्र से प्रभावित होते हुए नरम पड़ जाते हैं। और ज़ोक़ व शोक़ (खुशी) के साथ अल्लाह की बारगह में बहुत ज़्यादा सजदे करने से जो दिली इत्मीनान और सुकून बंदे को मिलता है उससे उसका ईमान बढ़ता रहता है यहाँ तक कि वह अपनी ख्वाहिशें को छोड़कर अल्लाह की मर्ज़ी के काम करता है।
नमाज़ अल्लाह (के हुक्म) की तरफ भागना और दोड़ना है। और अल्लाह (के हुक्म) की तरफ भागना तीन प्रकार से होता है।
(1) कुफ़्र से इस्लाम की तरफ भागना। और नमाज़ इस्लाम के सुतूनों में से एक महत्वपूर्ण सुतून है। और यह नमाज़ बंदे के इस्लाम के सही़ह़ होने पर दलील है।
(2) गुनाह से नेकी और नाफरमानी (आज्ञा का उल्लंघन करना) से इत़ाअ़त (आज्ञा का पालन करना) की तरफ भागना। और नमाज़ बंदे को नाफरमानी और गुनाहों से दूर और नेकियों और आज्ञा का पालन करने से नज़दीक करती है। चुनांचे अल्लाह क़ुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाता है:
﴿اِنَّ الصَّلٰوۃَ تَنۡہٰی عَنِ الۡفَحۡشَآءِ وَ الۡمُنۡکَرِ ﴾
(सूरह: अल-अ़नकबूत, आयत संख्या:45)
तर्जुमा: बेशक नमाज़ बेह़याई और बुरी बातों से रोकती है।
(3) अल्लाह से अल्लाह की जानिब भागना। यानी बंदा अपने दिल और अपनी ज़ुबान से इस तरह का है जैसा कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम कहते कि:
" اللَّهُمَّ إِنِّى أَعُوذُ بِرِضَاكَ مِنْ سَخَطِكَ وَبِمُعَافَاتِكَ مِنْ عُقُوبَتِكَ وَأَعُوذُ بِكَ مِنْكَ لاَ أُحْصِى ثَنَاءً عَلَيْكَ، أَنْتَ كَمَا أَثْنَيْتَ عَلَى نَفْسِكَ."
(अल्लाहुम्मा इन्नी अऊ़ज़ु बिरिद़ाक मिन सख़त़िक, व बिमुआ़फा़तिक मिन उ़क़ूबतिक व अऊ़ज़ु बिका मिन्का, ला उह़सी स़नाअन अ़लैका, अन्ता कमा अस़नइता अ़लैका)
तर्जुमा: ए अल्लाह में तेरी रज़ा की तेरे गुस्से से, तेरी माफी की तेरी सज़ा से और तुझसे तेरी पनाह मांगता हूँ। मैं तेरी खूबियाँ शुमार नहीं कर सकता। तू वैसा है जैसे तूने अपनी तारीफ की।