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(53) जिसने मेरी सुन्नत को जिंदा किया उसने मुझसे मोहब्बत की।
 
                        
        عن أنس – رضي الله عنه- قال: قَالَ لِي رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ
"يَا بُنَيَّ إِنْ قَدَرْتَ أَنْ تُصْبِحَ وَتُمْسِيَ لَيْسَ فِي قَلْبِكَ غِشٌّ لِأَحَدٍ فَافْعَلْ ثُمَّ قَالَ لِي يَا بُنَيَّ: وَذَلِكَ مِنْ سُنَّتِي، وَمَنْ أَحْيَا سُنَّتِي فَقَدْ أَحَبَّنِي، وَمَنْ أَحَبَّنِي كَانَ مَعِي فِي الْجَنَّةِ."
तर्जुमा: ह़ज़रत अनस रद़ियल्लाहु अ़न्हु कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने मुझसे इरशाद फ़रमाया:
" ए मेरे बेटे! अगर तुम से हो सके कि सुबह और शाम तुम इस तरह गुजा़रो कि तुम्हारे दिल में किसी के लिए भी धोखा (खोट और हसदआदि) ना हो तो ऐसा ज़रूर करो।" फिर आपने इरशाद फ़रमाया: " मेरे बेटे! ऐसा करना मेरी सुन्नत और मेरा तरीक़ा है। और जिसने मेरी सुन्नत को जिंदा किया उसने मुझसे मोहब्बत की और जिसने मुझसे मोहब्बत की वह मेरे साथ जन्नत में रहेगा।"
ह़ज़रत अनस बिन मालिक रद़ियल्लाहु अ़न्हु को आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के साथ रहने का सम्मान हासिल था और आपको दस साल की उम्र से ही नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की खिदमत करने भी सम्मान प्राप्त हुआ। आप जो भी नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से सुनते उसे याद करने, समझने और उस पर अमल करने के बेहद शौकीन थे। 
आइए बेपनाह रह़म दिल, कृपालु और दयालु व्यक्ति की इस मोहब्बत और प्यार भरी  सलाह और वसियत में गौर करते हैं ताकि उससे कुछ फायदे हासिल कर सकें :
(1) जब गुरु अपने खादिम को: "ए मेरे बेटे!" कहकर पुकारता है तो उससे हमें उस गुरु की बेपनाह इनकिसारी (विनम्रता व सादगी) का पता चलता है। 
(2) यह एक महान व्यक्ति की महान पुकार है जिससे प्यार व मुहब्बत और करुणा के चश्मे फूटते दिखाई देते हैं और जिससे कृपा और दया के फव्वारे बहते हैं ताकि ह़ज़रत अनस बिन मालिक उनसे पेट भर पियें और उनका दिल पाक और साफ़ हो जाए, उनका होसला बढ़ जाए और अल्लाह और उसके रसूल पर उनका ईनाम और भी ज़्यादा मज़बूत हो जाए। 
(3) इस तरह पुकाराने से प्यार का बंधन ओर भी ज़्यादा मज़बूत हो जाता है। ताकि ह़ज़रत अनस को लगे कि वह आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम हि के बेटे हैं। और सच भी यही है कि ह़ज़रत अनस भले ही आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की असली बेटे नहीं हैं लेकिन इ़ल्म (ज्ञान) और ईमान में वह आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के ही बेटे हैं। 
  याद रखें कि धोखा कई प्रकार का होता है: कभी जा़हिरी रूप से होता है और कभी छिपे रूप से।
यह कभी खरीदते और बेचते  समय होता है। इसमें लालच, बेईमानी, नियत में खोट और बुरी आदत का पता चलता है। 
और कभी धोखा इस तरह होता है कि कोई व्यक्ति किसी दुनियावी (सांसारिक) चीज़ के प्रताप करने के लिए किसी से झूठी दोस्ती ज़ाहिर करता है।
और कभी-कभी इंसान नेकी और परहेज़गारि और ज़ाहिर करता है तो लोग उसे बहुत बड़ा नेक और परहेज़गार समझते हैं हालांकि हक़ीक़त में वह बहुत बड़ा मक्कार और गुनाहगार होता है। ऐसे ही व्यक्ति दो रुखी कहते हैं कि लोगों के सामने कुछ और उनके पीछे कुछ और। 
और कभी धोखा अच्छी सलाह और नसीहत को छुपाकर होता है जिससे हमें अल्लाह ने क़ुरआन मजीद की बहुत सी आयतों में सख्ती से मना से मना किया है।
 
            