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(54) तुम में से हर व्यक्ति अल्लाह से अच्छा गुमान (उम्मीद) रखते हुए ही मरे।
عَنْ جَابِرِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ رضي الله عنه – أنه سَمِع النبي صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَبْلَ مَوْتِهِ بِثَلَاثٍ أيام يَقول:
"لَا يَمُوتُن أَحَدُكُمْ إِلَّا وَهُوَ يُحْسِنُ الظَّنَّ بِاللَّهِ عز وجل".
तर्जुमा: ह़ज़रत जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह से उल्लेख है कि उन्होंने नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को इंतक़ाल से तीन दिन पहले यह कहते हुए सुना:
"तुम में से हर व्यक्ति अल्लाह से अच्छा गुमान (उम्मीद) रखते हुए ही मरे।"
यह वसीयत नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की उन अंतिम वसियतों में से है जो आपने अपने सहा़बा ए किराम और उनके बाद आने वाले लोगों के लिए कीं। लिहाज़ा हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है कि वह इस वसीयत को अपनी हिदायत के लिए रोशन चिराग समझे और कभी भी अल्लाह से, माफी (क्षमा) और रहमत और कृपा को मांगना ना छोड़े। और नाउम्मीदी और मायूसी यानी निराशा का शिकार ना हो भले ही उस से कितने ही गुनाह क्यों न हो जाएं। यह एक दुनिया को रुखसत करने वाले व्यक्ति की वसीयत है जैसा कि ह़दीस़ शरीफ से ज़ाहिर है गोया की यह एक ऐसे व्यक्ति की वसीयत है जिसने मौत को देख लिया हो या उस पर उसकी निशानियाँ ज़ाहिर हो गई हों और अल्लाह की रहमत और कृपा को धीरे-धीरे अपने करीब आते देख रहा हो जो उसे उसके अच्छे अंजाम की खुशखबरी दे रही हों।
ह़दीस़ शरीफ में उल्लेखित वसीयत का मुख्तसर (यानी संक्षिप्त) माना यह है कि तुम जिंदगी भर अपने अल्लाह से अच्छी उम्मीद करो यहाँ तक कि तुम अपनी इसी उम्मीद के अल्लाह करीम से जा मिलो। क्योंकि जो जिस हालत पर मरेगा वह उसी पर उठाया जाएगा। लिहाज़ा अल्लाह की रहमत और कृपा से ऐसे ही उम्मीद और ख्वाहिश रखो जैसे कि तुम अपनी जिंदगी की ख्वाहिश रखते हो। उस अल्लाह करीम की रह़मत और कृपा से अच्छी उम्मीद की हालत में ही तुम्हें मौत आए। और उसकी रह़मत और कृपा से मायूसी व निराशा और गफलत की हालत में तुम्हें मौत ना आए। लिहाज़ा जब जब भी तुम्हें अपने अंदर मायूसी और निराशा की कुछ निशानिया़ नजर आएं तो तुम फौरन अपने अल्लाह की रह़मत और कृपा को याद कर लो। और याद रखो कि अल्लाह की रह़मत और कृपा हर चीज़ को घेरे हुए है। उसकी मगफ़िरत और क्षमा उसके उसकी सज़ा और उसके अ़ज़ाब से पहले है। और उसका अपने बंदों की तौबा कुबूल करना दिल की नस से भी ज़्यादा नज़दीक है