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(65) जितना (अल्लाह की राह में) खर्च कर सको करो और सैंत कर मत रखो वरना अल्लाह पाक भी तुम्हारे लिए अपने खजा़ने में रोक लगा देगा।
عَنْ أَسْمَاءَ بِنْتِ أَبِي بَكْرٍ – رضي الله عنها- أَنَّهَا جَاءَتْ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَقَالَتْ:
يَا نَبِيَّ اللَّهِ، لَيْسَ لِي شَيْءٌ إِلَّا مَا أَدْخَلَ عَلَيَّ الزُّبَيْرُ، فَهَلْ عَلَيَّ جُنَاحٌ أَنْ أَرْضَخَ مِمَّا يُدْخِلُ عَلَيَّ؟ فَقَالَ: "ارْضَخِي مَا اسْتَطَعْتِ وَلَا تُوعِي فَيُوعِيَ اللَّهُ عَلَيْكِ".
ह़ज़रत अबू बक्र स़िद्दीक़ रद़ियल्लाहु अ़न्हु की बेटी आसमा रद़ियल्लाहु अ़न्हा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के पास आईं और बोलीं:
ए अल्लाह के रसूल! मेरे पास कुछ नहीं है सिवाय उसके जो ज़ुबैर मुझे देते हैं। तो अगर मैं इसमें से कुछ सदका़ करूं तो क्या मुझ पर कोई गुनाह होगा? तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: "जितना (अल्लाह की राह में) खर्च कर सको करो और सैंत कर मत रखो वरना अल्लाह पाक भी तुम्हारे लिए अपने खजा़ने में रोक लगा देगा।"
मक्के की औरतें अपने पतियों से मोहब्बत करने, उनके साथ अच्छा व्यवहार करने, उनके साथ वफादारी करने, उन्हें हमेशा खुश रखने की कोशिश करने और उनकी मौजूदगी और गैरमौजूदगी में उनके माल की हिफाज़त करने के मामले में बहुत ज्यादा मशहूर थीं। लेकिन जब इस्लाम आया तो उसने उनके इस अच्छे एखलाक़ की खूबसूरती को और भी बढ़ा दिया और उनकी अच्छी फितरत में चार चांद लगा दिए। अतः उसने उन्हें सिखाया की इज्ज़त व आबरू और माल की कैसे हिफाज़त की जाए। उनके अंदर अच्छी फितरत को उजागर किया। उनके लिए सीमाएं रखीं। और इ़बादत और खास तौर पर पतियों और आमतौर पर दूसरे लोगों के साथ मामलों और संबंधों के बारे में उन्हें बताया।
ह़ज़रत आसमा विनते अबु बक्र स़िद्दीक़ रद़ियल्लाहु अ़न्हुमा नेक एख़लाक़ और अच्छी सीरत में पहले दर्जे की महिला थीं। वह एक अच्छे और आदर्शवादी पति की एक अच्छी और आदर्शवादी पत्नी थीं।
वह बहुत सब्र और शुक्र करने वाली थीं। वह रोजी-रोटी में अपने शोहर की मदद करतीं की और तंग दस्ती में सब्र से काम लेती थीं। घर का सारा काम काज आप ही किया करती थीं यहाँ तक कि घोड़े का घास दाना और उसकी मालिश का काम भी आप ही क्या करती थीं बल्कि ऊंट की खुराक के लिए खजूरों की गुठलियाँ भी बहुत दूर बागों में से बीन कर अपने सर पर गठरी बांधकर लाया करतीं और उन्हें कूटकर उसकी खुराक तैयार करती थीं।
ह़दीस़ ए पाक में आने वाले " रद़ह़" शब्द का मतलब है कुछ खाना वगैरह किसी दूसरे को देना।
लिहाज़ा अब ह़दीस़ शरीफ का मतलब यह होगा कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने ह़ज़रत आसमा को इतनी थोड़ी चीज देने की इजाज़त दी जिस पर आमतौर पर इंसान ध्यान नहीं देता है और जिसका अगर उनके पति को पता चल जाए तो वह भी उन पर उनकी पकड़ ना करें और ना ही उससे उनकी रोजी-रोटी में कोई नुकसान हो।