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(77) ए अल्लाह मैं तुझसे हर वह भलाई मांगता हूँ जो तेरे नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने मांगी
عَنْ أَبِي أُمَامَةَ – رضي الله عنه -
أَنَّ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ دَعَا بِدُعَاءٍ كَثِيرٍ لَمْ نَحْفَظْ مِنْهُ شَيْئًا، قُلْتُ يَا رَسُولَ اللَّهِ! دَعَوْتَ بِدُعَاءٍ كَثِيرٍ لَمْ نَحْفَظْ مِنْهُ شَيْئًا، فَقَالَ فَقَالَ "أَلَا أَدُلُّكُمْ عَلَى مَا يَجْمَعُ ذَلِكَ كُلَّهُ؟". تَقُولُ اللَّهُمَّ إِني أَسْأَلُكَ مِنْ خَيْرِ مَا سَأَلَكَ مِنْهُ نَبِيُّكَ مُحَمَّدٌ - صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ - وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا اسْتَعَاذَ مِنْهُ نَبِيُّكَ مُحَمَّدٌ - صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ - وَأَنْتَ الْمُسْتَعَانُ، وَعَلَيْكَ الْبَلَاغُ، وَلَا حَوْلَ وَلَا قُوَّةَ إِلَّا بِاللَّهِ".
: ह़ज़रत अबू उमामह रद़ियल्लाहु अ़न्हु कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि
तर्जुमा वसल्लम ने बहुत सारी दुआएं की मगर हमें उनमें से कोई दुआ़ याद ना रही। मैंने कहा: ए अल्लाह के रसूल! दुआएं तो आपने बहुत सी कीं। मगर मैं कोई दुआ़ याद ना रख सका। आपने फ़रमाया: " क्या मैं तुम्हें ऐसी दुआ़ ना बता दूं जो उन सब दुआओं को शामिल हो। तुम कहो:
"اَللَّهُمَّ إِنَّا نَسْأَلُكَ مِنْ خَيْرِ مَا سَأَلَكَ مِنْهُ نَبِيُّكَ مُحَمَّدٌ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا اسْتَعَاذَ مِنْهُ نَبِيُّكَ مُحَمَّدٌ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وَأَنْتَ المُسْتَعَانُ، وَعَلَيْكَ البَلَاغُ، وَلَا حَوْلَ وَلَا قُوَّةَ إِلَّا بِاللَّهِ "
(अल्लाहुम्मा इन्ना नस आलुका मिन खैरि मा सअलका मिन्हु नबिय्युका मोह़म्मदुन - सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम- व अऊ़ज़ु बिका मिन शर्रि मा इस्तआ़ज़ा मिन्हु नबिय्युका मोह़म्मदुन - सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम- व अन्त अल मुस्तआ़न, व अ़लैका अल अल बलाग़, व ला ह़ौला व ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाही)
तर्जुमा: ए अल्लाह मैं तुझसे हर वह भलाई मांगता हूँ जो तेरे नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने मांगी और हर उस चीज़ से पनाह (यानी शरण) चाहता हूँ जिससे तेरे नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने पनाह चाही। तू ही मदद करने वाला है। तू ही (हर भलाई और बुराई) पहुंचाने वाला है। और गुनाहों से बचने की ताकत और नेकी करने की हिम्मत भी सिर्फ अल्लाह ही की तरफ से है। "
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम अल्लाह तआ़ला की बारगाह में बहुत सी दुआएं करते थे जिनमें भलाई की तमाम खूबियां होती थीं। और आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ऐसे अछूते व निराले और शानदार अंदाज़ में दुआएं फरमाते थे जो मुसलमानों के दिलों में घर कर जाता और सुनने वालों की भावनाओं पर अपना सिक्का जमा लेता। यही वजह है कि वे उन दुआओं के शब्दों को याद करने की बहुत ज़्यादा कोशिश करते ताकि वे भी नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की तरह उन शब्दों के ज़रिए अपने अल्लाह की बारगाह में गिड़गिड़ा कर दुआएं करें। क्योंकि वे जानते थे की दुआ इ़बादत का गूदा, बंदे की सच्ची बंदगी का अनुवादक और अल्लाह की उसे पूरी ज़रूरत और आवश्यकता होने के लिए बेहतरीन दलील है।
अल्लाह की बारगाह में दुआ करना पैगम्बरों का तरीक़ा रहा है। वे सब लोगों से ज़्यादा अल्लाह की बारगाह में दुआ़ करते थे। और सारे पैगम्बरों में सबसे ज़्यादा आखरी नबी हमारे पैगंबर मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम अल्लाह की बारगाह में दुआ़ करते थे।
और फिर हर उम्मत के औलिया ए इकराम और अल्लाह के नेक बंदों ने अपने पैगम्बरों के तरीक़े पर चलते हुए इस अ़मल को बाकी रखा। लेकिन उनमें सबसे ज़्यादा भाईयों और नेकियों की तरफ दौड़ने वाले और नेक दिल से दुआएं करने वाले हमारे पैगंबर मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के सहा़बा और फिर क़यामत तक उनके नक्शे कदम पर चलने वाले अल्लाह के नेक बंदे हैं।
इसमें कोई शक नहीं है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से उल्लेख शब्दों के जरिए दुआ़ करना ही सबसे बेहतर, कबूलियत के ज़्यादा करीब और बहुत ज़्यादा सवाब का कारण है वरना तो सहा़बा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की दुआओं के शब्दों को याद करने के लिए क्यों मेहनत करते?
लिहाज़ा मुसलमान नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से उल्लेख दुआओं में से ऐसी दुआ़ इख्तियार करे जिसे वह आसानी से के साथ बोल और याद कर सके, जिससे उसे आनन्द हासिल हो और जो उसकी मांग और ज़रूरत के ज्यादा मुनासिब हो।
दुआ में इस बात का ख्याल रखा जाए कि दुआ़ इस तरह से की जाए कि बंदा अल्लाह की बारगाह में पूरे तौर पर अपनी आ़जज़ी और मोहताजी को ज़ाहिर करे और फिर अपनी ज़रूरत मांगे।
याद रखें की दुआ के कुछ आदाब हैं जिनका ख्याल करना बहुत ज़रूरी है वरना तो हो सकता है कि शायद आपकी दुआ़ कबूल ना हो।