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(82) बुखार को बुरा मत कहो। क्योंकि यह आदम की औलाद के गुनाहों को इस तरह दूर कर देता है जिस तरह भट्टी लोहे की जंग को दूर कर देती है।
عَنْ جَابرٍ بن عَبدِ اللَّهِ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ:
أَنَّ رسُول اللَّهِ ﷺ دخَلَ على أُمِّ السَّائبِ –أَوْ: أُمِّ المُسَيَّبِ- فقَالَ: مَا لَكِ يَا أُمَّ السَّائبِ –أَوْ: يَا أُمَّ المُسيَّبِ- تُزَفْزِفينَ؟ قَالَتْ: الحُمَّى، لا بارَكَ اللَّه فِيهَا، فَقَالَ:" لا تَسُبِّي الحُمَّى، فَإِنَّهَا تُذْهِبُ خَطَايا بَني آدَمَ كَما يُذْهِبُ الْكِيرُ خَبَثَ الحدِيدِ".
: ह़ज़रत जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह रद़ियल्लाहु अ़न्हु कहते हैं कि अल्लाह के रसूल
तर्जुमा सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम (एक अन्सारी औरत) ह़ज़रत उम्मे साइब -या उम्मे मुसय्मब- के यहाँ तशरीफ ले गए। आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उनसे फरमाया: "उम्मे साइब -या उम्मे मुसय्यब-! तुम्हें क्या हुआ है कि कांप रही हो?" उन्होंने कहा: "बुखार है। अल्लाह इस में बरकत ना दे।" आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फरमाया: "बुखार को बुरा मत कहो। क्योंकि यह आदम की औलाद के गुनाहों को इस तरह दूर कर देता है जिस तरह भट्टी लोहे की जंग दूर कर देती है।"
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम कुछ सह़ाबा ए किराम से मिलने के लिए खुद ही उनके घर तशरीफ ले जाते और उनसे अपने प्यार और मोहब्बत का सबूत देते। इसी तरह जब सह़ाबा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम आपको मोहब्बत और बरकत के तौर पर अपने घर बुलाते तो आप उनकी दावत कुबूल करते और उनके घर तशरीफ़ ले जाते। आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम बीमारों को देखने जाने का बहुत ख्याल रखते थे। उन्हें तसल्ली देते और उनके लियें दुआएं करते जिनसे उनके दिलों को खुशी मिलती।
बुखार और उस जैसी दूसरी बीमारियां मैं जब तक इंसान रहता है उनसे उसके गुना झड़ते रहते हैं यहाँ तक कि वह पूरी तरह गुनाहों से पाक हो जाता है बशर्ते कि वह उन बीमारियों पर सब्र करे और इस मामले में अल्लाह के फैसले से खुश रहे।
ह़दीस़ शरीफ में इसकी बहुत ही प्यारी मिसाल बयान की गई है कि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जिस तरह से भट्टी लोहे की जंग को पूरे तौर पर दूर कर देती है और वह लोहा नया दिखने लगता है इसी तरह से बुखार भी आग की भट्टी की तरह है जो बुखार वाले व्यक्ति को जब तक अल्लाह चाहता है गुनाहों से पाक करता रहता है। लिहाज़ा बुखार जितना ज्यादा रुकता है फायदा पहुंचाता है। यह एक तरह से इम्तिहान के बाद एक तोहफा और उपहार है।
तथा इस ह़दीस़ शरीफ में हमें अल्लाह ताआ़ला के साथ अदब और एहतराम के साथ रहने की शिक्षा मिलती है। हमें चाहिए कि हम कोई भी ऐसा शब्द अपनी ज़बान से ना निकालें कि जिससे तकदीर और भाग्य से असंतोष और नाख़ुशी का पता चले या जिससे मायूसी और निराशा की बू आए। और आसपास के लोगों और सुनने वालों को बुरा लगे तो वे हम से दूर भाग जाएं। और यह भी हो सकता है कि वे भी इसी तरह बिना सोचे समझे इस तरह के शब्दों का प्रयोग करें।