Search
(99) ऐ लोगों! दुश्मन के साथ जंग की ख्वाहिश ना रखो
عَنْ عَبْدُ اللَّهِ بْنُ أَبِي أَوْفَى – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ – إِنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي بَعْضِ أَيَّامِهِ الَّتِي لَقِيَ فِيهَا الْعَدُوَّ انْتَظَرَ حَتَّى مَالَتْ الشَّمْسُ ثُمَّ قَامَ فِي النَّاسِ فَقَالَ:
"أَيُّهَا النَّاسُ، لَا تَمَنَّوْا لِقَاءَ الْعَدُوِّ وَسَلُوا اللَّهَ الْعَافِيَةَ، فَإِذَا لَقِيتُمُوهُمْ فَاصْبِرُوا، وَاعْلَمُوا أَنَّ الْجَنَّةَ تَحْتَ ظِلَالِ السُّيُوفِ، ثُمَّ قَالَ: اللَّهُمَّ مُنْزِلَ الْكِتَابِ وَمُجْرِيَ السَّحَابِ وَهَازِمَ الْأَحْزَابِ اهْزِمْهُمْ وَانْصُرْنَا عَلَيْهِمْ".
तर्जुमा: ह़ज़रत अ़ब्दुल्लह बिन अबु औ़फ़ा रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने एक बार जंग के दिनों में सूरज ढलने का इंतजार किया फिर आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने सह़ाबा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम को संबोधित करते हुए इरशाद फ़रमाया: "ऐ लोगों! दुश्मन के साथ जंग की ख्वाहिश ना रखो। बल्कि अल्लाह तआ़ला से अमन और शांति की दुआ किया करो। लेकिन जब दुश्मन से मुठभेड़ हो ही जाए तो फिर सब्र से काम लो (यानी डटे रहो।) याद रखो कि जन्नत तलवारों के सायों के तले है। उसके बाद आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने यूं दुआ़ की:
"ए किताब उतारने वाले! बादल भेजने वाले! दुश्मनों के लश्करों हार देने वाले अल्लाह! उन्हें हार दे और उनके मुकाबले में हमारी मदद कर।"
इस्लाम अमन और शांति का धर्म है वह किसी भी तरह की अशांति को कुबूल नहीं करता है। किसी को भी इस्लाम अपनाने पर मजबूर नहीं करता है। हमेशा भलाई ही का आदेश देता है और केवल बुराई से ही मना करता है।
सारी दलीलें इस बात को बताती हैं कि इस्लाम तलवार के जरिए नहीं फैला है। नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम उस समय तक जंग नहीं करते थे जब तक की आपको उस पर मजबूर नहीं किया जाता था जैसे कि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम उस समय तक किसी पर भी हमला नहीं करते थे जब तक कि आप उसकी तरफ से हमला करने की पहल ना देख लेते थे। यही वजह है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने अपने सह़ाबा से इरशाद फरमाया: "दुश्मन से मिलने की तमन्ना मत करो।" यानी उनसे लड़ने की ख्वाहिश मत रखो।
"और अल्लाह से अमन और शांति की दुआ मांगो।" क्योंकि यह तुम्हारे लिए इससे बेहतर है कि तुम्हारी दुश्मन के साथ मुठभेड़ हो जिसकी वजह से तुम्हें कोई मुसीबत पहुंच जाए। लेकिन इस मामले में अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और जब जंग के सिवा कोई रास्ता ना बचे तो डटकर जंग करो।
अत:यह दोस्त और दुश्मन दोनों के साथ न्याय और इंसाफ है।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के कहने: "जब तुम्हारी दुश्मनों के साथ मुठभेड़ हो तो सब्र से काम लो।" का मतलब है कि तुम डटे रहो और भिक्रो मत। क्योंकि डटे रहने में कामयाबी और जीत और भागने में हार है। जंग में डटे रहो और शहादत पाने की तमन्ना करो ताकि तुम्हें हमेशा कि जिंदगी नसीब हो जाए। अपनी तलवारों से अल्लाह के दुश्मनों के दिलों में हैबत और डर पैदा करो। जंग के मैदान में जो मुसीबतें और परेशानियाँ आएं उन्हें बर्दाश्त करो और उन पर अल्लाह पाक से सवाब की उम्मीद करो। ये सभी माने सब्र के माना में शामिल हैं। याद रखें कि सब्र मैदान-ए-जंग में एक हैरतअंगेज शक्ति और ताकत है।