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(104) सफर अ़ज़ाब का एक टुकड़ा है।

174 2020/09/06
(104) सफर अ़ज़ाब का एक टुकड़ा है।

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ عَنْ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:

"السَّفَرُ قِطْعَةٌ مِنْ الْعَذَابِ، يَمْنَعُ أَحَدَكُمْ طَعَامَهُ وَشَرَابَهُ وَنَوْمَهُ، فَإِذَا قَضَى نَهْمَتَهُ فَلْيُعَجِّلْ إِلَى أَهْلِهِ".

: ह़ज़रत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि

तर्जुमा वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "सफर अ़ज़ाब का एक टुकड़ा है। आदमी को खाने-पीने और सोने (हर एक चीज़) से रोक देता है। इसलिए जब कोई अपनी जरूरत पूरी कर चुके तो फौरन घर वापस आ जाए।"

इस वसियत में नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने एक हकीकी मामले की खबर दी है जिसमें कोई शक व शुभा नहीं है। वह यह है कि सफर अ़ज़ाब का एक टुकड़ा है। वह आदमी को खाने-पीने और सोने से रोक देता है। यानी सफर में इंसान उस समय में खाना नहीं खा सकता है जिसमें वह चाहे। इतनी मिकादार में नहीं खा सकता है जितनी वह पसंद करे। और उस जगह में नहीं खा सकता है जहाँ वह खाना चाहे। उस तरीके से नहीं खा सकता है जैसे वह चाहे। और ऐसे व्यक्ति के हाथों से नहीं खा सकता है जिसे वह पसंद करता हो। अतः यह सब चीज़ें उसे सफर में नहीं मिल सकती हैं। इसी तरह नींद जो के बदन के लिए सुकून है वह भी सिर्फ घर पर, खास बिस्तर पर मुनासिब माहौल, मुनासिब समय और मुनासिब कैफियत में ही सही तौर पर पूरी हो सकती है। सफर में सही तौर पर पूरी नहीं हो सकती है।

तो इससे पता चला कि बेशक सफर एक तरह का अज़ाब है जिसे इंसान दुनिया में बर्दाश्त करता है। तथा सफर में वह अजनबियत महसूस करता है। तथा घरवालों, दोस्तों और शहर के माहौल और उनके अलावा उन चीजों से दूरी अलग महसूस करता है जिनकी उसके दिल में यादें होती हैं।

इसके अलावा उसे उन खतरों और परेशानियों का अलग सामना करना पड़ता है जो उसे एक जगह से दूसरी जगह जाने में होती हैं भले ही सफर करने का ज़रिया कितना ही आसान व आराम देने वाला और तेज चलने वाली ही क्यों न हो। क्योंकि सफर सफर ही है।

लेकिन कभी-कभार सफर करना बहुत ज्यादा जरूरी होता है। बाहर हाल इंसान को चाहिए कि वह जब सफर में अपनी जरूरत को पूरा कर ले तो फौरन अपने शहर अपने घर वालों के पास वापस आ जाए जैसा कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने हमें इसका आदेश दिया है। क्योंकि देखा जाता है कि मुसाफिर सफर से घर वापस आता है तो वह हर तरह से बहुत ज़्यादा सुकून महसूस करता है।

इंसान कितना ही सफर का आदी हो चुका हो लेकिन फिर भी वह सफर में परेशानी जरूर महसूस करता है क्योंकि बेशक उसे अपने शहर, घर, परिवार वालों और अपने बिस्तर की जरूरत होती है। लिहाज़ा उसे चाहिए कि वह इस महान वसियत पर अमल करे और अपनी जरूरत पूरी करने के बाद अपने आप को बिना परेशानी में डाले हुए और बे फायदे काम में समय बर्बाद किये बगैर फौरन अपने घर वापस आ जाए।

 

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day