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(107) अल्लाह से डरो। और अपनी औलाद के दरमियान इंसाफ करो।
عَنْ حُصَيْنٍ عَنْ عَامِرٍ قَالَ سَمِعْتُ النُّعْمَانَ بْنَ بَشِيرٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا وَهُوَ عَلَى الْمِنْبَرِ يَقُولُ:
أَعْطَانِي أَبِي عَطِيَّةً، فَقَالَتْ عَمْرَةُ بِنْتُ رَوَاحَةَ: لَا أَرْضَى حَتَّى تُشْهِدَ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَأَتَى رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَقَالَ: إِنِّي أَعْطَيْتُ ابْنِي مِنْ عَمْرَةَ بِنْتِ رَوَاحَةَ عَطِيَّةً فَأَمَرَتْنِي أَنْ أُشْهِدَكَ يَا رَسُولَ اللَّهِ قَالَ: "أَعْطَيْتَ سَائِرَ وَلَدِكَ مِثْلَ هَذَا"؟، قَالَ: لَا. قَالَ: "فَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْدِلُوا بَيْنَ أَوْلَادِكُمْ" قَالَ: فَرَجَعَ فَرَدَّ عَطِيَّتَهُ.
तर्जुमा: हुसैन बिन आमिर रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं वह कहते हैं कि मैंने नौमान बिन बशीर रद़ियल्लाहु अ़न्हु को मिंबर पर बयान करते हुए सुना:
"मेरे पिता ने मुझे एक उपहार दिया। तो उ़मरह बिन्ते रवाह़ा (नौमान की माँ) ने कहा कि जब तक आप अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को इस पर गवाह ना बनाएं मैं राजी नहीं हो सकती। तो वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के पास आए और कहा:" उ़मरह बिन्ते रवाह़ा से अपने बेटे को मैंने एक उपहार दिया। तो उन्होंने कहा कि पहले मैं आपको इस पर गवाह बना लूँ।" आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने पूछा उसी जैसा उपहार तुमने अपनी सभी औलाद को दिया है?" उन्होंने जवाब दिया:" नहीं।" तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फरमाया: "अल्लाह से डरो। और अपनी औलाद के दरमियान इंसाफ करो।" यह सुनकर वह वापस आए और अपना उपहार वापस ले लिया।"
तो इससे पता चलता है कि बच्चों के दरमियान इंसाफ करना जरूरी है जबकि उसके ना होने की सूरत में किसी तरह का नुकसान या रिश्ते में दरार पड़ने का अंदेशा हो जिसकी अक्सर जैसा कि ज़्यादातर होता है।
लिहाज़ा जब बच्चों के दरमियान इंसाफ से काम लेना जरूरी है तो पिता के लिए बिना उनकी इजाजत और रजामंदी के किसी भी बच्चे के साथ किसी तरह का खास व्यवहार करना जायज नहीं है।
अलग-अलग रिवायतों के साथ इस हदीस पाक में औलाद को कुछ देने में इंसाफ से काम लेने पर जोर दिया गया है जब तक कि कोई ऐसी जरूरत ना हो जो उनमें खास या अलग अलग व्यवहार करने का तकाजा करे। क्योंकि जरूरतों की वजह से मना की हुई चीजें जायज हो जाती हैं जैसा कि क़ुरआनऔर हदीस से मालूम है।
तो उपहार पर अनुमान लगाते हुए हम यह कह सकते हैं जहाँ तक हो सके बच्चों के दरमियान सारे मामलों में एक्सा व्यवहार करना चाहिए ताकि उनमें नफरत और दुश्मनी ना फेल है। क्योंकि औलाद में किसी एक को बढ़ावा देना कभी-कभी उनके दरमियान नफरत फैलने का कारण होता है जिसकी वजह से उनमें एक दूसरे से हसद और जलन हो जाती है और फिर लड़ाई झगड़े होते हैं जिन्हें यकीनन कोई भी माता-पिता नहीं चाहते हालांकि वही उनका कारण होते हैं।
लिहाज़ा माता-पिता को चाहिए कि वे बेहतरीन तरबियती तरीकों से अपने बच्चों के दरमियान आपसी प्यार और मोहब्बत और आपस में समझ बूझ पैदा करें। और इसका सबसे अहम तरीका यह भी है कि जहाँ तक हो सके उनके दरमियान एकसा और बराबर व्यवहार करें।
यह भी ध्यान में रखें कि कोई भी चीज बांटते समय बराबर बराबर बांटे। क्योंकि जिसे किसी तरह से बुलंद कर दिया जाता है तो उसे किसी दूसरी तरफ से गिरा भी दिया जाता है। और अल्लाह अपने बंदों में से जिसे चाहता है अपनी जमीन का मालिक बनाता है। (और अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब देता है। )