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(109) बल्कि काम करो और भरोसा करके बैठ मत जाओ।

196 2020/09/06
(109) बल्कि काम करो और भरोसा करके बैठ मत जाओ।

عَنْ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ – قَالَ

كُنَّا جُلُوسًا عِنْدَ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَبِيَدِهِ عُودٌ، فَنَكَتَ فِي الْأَرْضِ، ثُمَّ رَفَعَ رَأْسَهُ فَقَالَ: "مَا مِنْكُمْ مِنْ أَحَدٍ إِلَّا وَقَدْ كُتِبَ مَقْعَدُهُ مِنْ الْجَنَّةِ وَمَقْعَدُهُ مِنْ النَّارِ". قِيلَ: يَا رَسُولَ اللَّهِ، أَفَلَا نَتَّكِلُ؟ قَالَ: "لَا، اعْمَلُوا وَلَا تَتَّكِلُوا فَكُلٌّ مُيَسَّرٌ لِمَا خُلِقَ لَهُ، ثُمَّ قَرَأَ: ﴿ فَأَمَّا مَنْ أَعْطَى وَاتَّقَى وَصَدَّقَ بِالْحُسْنَى فَسَنُيَسِّرُهُ لِلْيُسْرَى وَأَمَّا مَنْ بَخِلَ وَاسْتَغْنَى وَكَذَّبَ بِالْحُسْنَى فَسَنُيَسِّرُهُ لِلْعُسْرَى ﴾.

: ह़ज़रत अ़ली बिन त़ालिब रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि हम अल्लाह के नबी

तर्जुमा सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के पास बैठे हुए थे और आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के हाथ में ऊ़द की एक लकड़ी थी। आप ने जमीन की तरफ सर झुका या फिर कुछ देर बाद सर उठा कर फरमाया: "तुम में से हर किसी का जन्नत या जहन्नुम में ठिकाना लिख दिया गया है।" तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से पूछा गया: "ऐ अल्लाह के रसूल! तो क्या हम उसी लिखे हुए पर भरोसा ना कर लें।" आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "नहीं। बल्कि काम करो और भरोसा करके बैठ मत जाओ। क्योंकि हर व्यक्ति को उसकी आसानी दी गई है जिसके लिए वह पैदा किया गया है।" फिर आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम निम्नलिखित आयत पढ़ी: ﴿ فَأَمَّا مَنْ أَعْطَى وَاتَّقَى وَصَدَّقَ بِالْحُسْنَى فَسَنُيَسِّرُهُ لِلْيُسْرَى وَأَمَّا مَنْ بَخِلَ وَاسْتَغْنَى وَكَذَّبَ بِالْحُسْنَى فَسَنُيَسِّرُهُ لِلْعُسْرَى ﴾ (सूरह: अल-लैल, आयत संख्या: 5-10) (तर्जुमा: तो वह जिसने दिया और परहेज गारी की और सबसे अच्छी को सच माना तो बहुत जल्द हम उसे आसानी देंगे और वह जिसने कंजूसी की और बेपरवाह हुआ और सबसे अच्छी को झूठलाया तो बहुत जल्द हम उसे दुश्वारी देंगे।)

क़जा और तक़दीर (भाग्य) पर ईमान अल्लाह पर ईमान के स्तंभों में से एक है। तो जो क़ज़ा और तक़दीर यानी भाग्य पर ईमान न रखे वह अल्लाह कि वह़दानियत (एकता) पर ईमान नहीं रख सकता है और न ही उसकी संपूर्ण विशेषताओं पर ईमान ला ला सकता है। क्योंकि क़ज़ा और तक़दीर उन अनदेखी चीजों में से है जिन्हें सिर्फ अल्लाह ही जानता है। उसके अलावा कोई नहीं जानता।

क़ज़ा का मतलब है जो भी अल्लाह ने पैदा किया है उसमें इंसाफ से उसका आदेश चलना।

और तक़दीर(भाग्य) का मतलब है कि जो भी हो चुका है और हो रहा है और होने वाला है उन सब चीजों का ज्ञान अल्लाह को है। तो अल्लाह ने अपने ज्ञान के मुताबिक हर चीज को उसके हिसाब से रखा है। उसके फैसले को कोई रद्द करने वाला नहीं है और ना ही उसके आदेश को कोई टालने वाला है। और जो उसने तय किया है उसे कोई नहीं जानता है। किसी को भी क़ज़ा और तक़दीर के मामले में बहस नहीं करना चाहिए। क्योंकि इनमें बहस करना हालाकात का कारण है। तथा उनकी हकीकत को इंसानी बुद्धि नहीं जान सकती है।

बेशक अल्लाह तमाम मखलूक को पैदा करने से पहले ही उनके मामलों को तय कर चुका है। तो जो उसने उनके लिए तय किया है वह होकर रहेगा। क़लम उठा लिए गए हैं और पेज सूख गए हैं।

"काम करो और। हर व्यक्ति को उसकी आसानी दी गई है जिसके लिए वह पैदा किया गया है।" यानी अल्लाह के इरादे से उसे जन्नत या जहन्नुम में जाने के लिए आसानी दी गई है जिसके लिए वह पैदा किया गया है औ जो उसके भाग्य में है।

बंदे के ऊपर सिर्फ कोशिश करना है। लक्ष्यों को पा लेना नहीं। क्योंकि ऐ मेरे प्यारे मुसलमान भाई! तुम्हें यह अच्छी तरह मालूम होना चाहिए कि सारे साधन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के क़ब्ज़े में हैं। तो जो चाहे वह अल्लाह से दुआ करे कि अल्लाह उसे उनके के प्राप्त करने की तोफिक दे। क्योंकि जो अल्लाह से सच्चे दिल से दुआ करता है अल्लाह उसकी दुआ कुबूल फरमाता है। और जो अल्लाह से मांगता है तो अल्लाह उसे देता है।

 

 

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day