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(111) तुम्हारे पास जब कोई ऐसा व्यक्ति (विवाह का संदेश लेकर) आए जिसकी धार्मिकता और अखलाक से तुम संतुष्ट हो तो उससे विवाह कर दो।
عَنْ أَبِي حَاتِمٍ الْمُزَنِيِّ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ – أَنَّ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
"إِذَا جَاءَكُمْ مَنْ تَرْضَوْنَ دِينَهُ وَخُلُقَهُ، فَأَنْكِحُوهُ، إِلَّا تَفْعَلُوا تَكُنْ فِتْنَةٌ فِي الْأَرْضِ وَفَسَادٌ". قَالُوا: يَا رَسُولَ اللَّهِ وَإِنْ كَانَ فِيهِ؟ قَالَ: "إِذَا جَاءَكُمْ مَنْ تَرْضَوْنَ دِينَهُ وَخُلُقَهُ فَأَنْكِحُوهُ" ثَلَاثَ مَرَّاتٍ.
: "ह़ज़रत अबू ह़ातिम अल-मुज़नी रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल
तर्जुमा सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "तुम्हारे पास जब कोई ऐसा व्यक्ति (विवाह का संदेश लेकर) आए जिसकी धार्मिकता और अखलाक से तुम संतुष्ट हो तो उससे विवाह कर दो। अगर ऐसा नहीं करोगे तो जमीन में फितना और फसाद होगा।" लोगों ने पूछा: "ए अल्लाह के रसूल! अगर उसमें कुछ हो तो?" तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने तीन बार यही कहा: " जब तुम तुम्हारे पास कोई ऐसा व्यक्ति (विवाह का संदेश लेकर) आए जिसकी धार्मिकता और अखलाक से तुम संतुष्ट हो तो उससे विवाह कर दो।"
मर्द को चाहिए कि वह शादी के लिए धार्मिक और अच्छे अखलाक वाली महिला को इख्तियार करे। अच्छी नस्ल वाली, धनी और सुंदर महिला को चुनने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन इस मामले में असल चीज़ धार्मिकता (दीनदारी) ही होना चाहिए क्योंकि वही असल है और बाकी चीजें तो उसके बाद में हैं।
इसी तरह महिला को भी चाहिए को वह दीनदार और अच्छे अखलाक वाले मर्द को अपना जीवनसाथी चुने। क्योंकि वह अगर उससे मोहब्बत करेगा तो वफा करेगा और उसे सम्मान देगा और अगर नापसंद करेगा तो उस पर ज़ुल्म और सितम ना करेगा।
महिला के जिम्मेदार को भी चाहिए कि उसकी शादी ऐसे व्यक्ति से करे जिसके अंदर मर्दानगी की विशेषताएं पाई जाती हों और वास्तव में वह उसके लायक हो जैसे हम आगे इसको बयान करेंगे।
हम जानते हैं कि मर्द महिला पर हाकिम रहता है और उसका जिम्मेदार होता है। तो अगर पति धार्मिक और अच्छे अखलाक व चरित्र वाला ही ना हो तो भला वह कैसे अपनी पत्नी के अधिकारों का ख्याल रखेगा और कैसे वह उसकी इज़्ज़त और आबरू की हिफाज़त करेगा।
बेशक गुनाहगार पति अपनी नेक पत्नी के लिए आफत है भले ही उसके अंदर कितनी ही ऐसी विशेषताएं हों जिनकी वजह से उसे दूसरे पुरुषों पर बरतरी हासिल हो। तो अगर माल की वजह से उस गुनाहगार व्यक्ति को दूसरों पर बरतरी हासिल है तो जान लें कि माल तो आता जाता रहता है और यही माल कभी-कभी उसे अपनी पत्नी, अपने परिवार वालों, अपने दोस्तों, पड़ोसियों और रिश्तेदारों के सामने खुल्लम-खुल्ला बुराइयाँ करने पर ललचाता है जिसकी वजह से वह सब के लिए तमाशा बनकर रह जाता है और मुसीबत का कारण होता है। और अगर यह गुनाहगार व्यक्ति अच्छी नस्ल वाला हो लेकिन अदब और एहतराम ना हो तो उसका वंश यानी नसब किसी काम का नहीं है।
उ़लमा ए किराम ने विवाह के लिए कुफू (बराबरी या योग्यता) की शर्त लगाई है। यानी पुरूष धर्म और अखलाक व चरित्र में महिला के काबिल होना चाहिए। इन दो चीजों के ज़रूरी होने में किसी को इख्तिलाफ नहीं है। इनके अलावा में है।
लिहाज़ा अगर कोई पुरुष धार्मिक है और अच्छे अखलाक व चरित्र वाला है तो महिला ऐसे व्यक्ति से विवाह कर सकती है भले ही वह नसल, माल और दौलत में महिला से कम हो। लेकिन अगर धार्मिक और अच्छे अखलाक वाला ना हो तो लड़की के जिम्मेदार (सरपरस्त) को यह अधिकार है कि वह उनके विवाह पर एतराज कर सकता है और उस विवाह को तोड़ने की मांग कर सकता है जबकि उसकी मर्जी के बिना यह विवाह हुआ हो। ह़ज़रत इमाम मालिक के मानने वालों ने अपने इस नजरिए पर क़ुरआन और सुन्नत से दलीलें बयान की हैं।
तथा ऊपर बयान की हुई चीजों के अलावा हमें इस वसियत से यह भी सबक मिलता है कि विवाह के सही़ह़ होने के लिए नसब शर्त नहीं है और ना ही उसका कोई ऐतबार है जब तक कि पति ऐसे परिवार से ना हो जो की पत्नी के लिए शर्मिंदगी या उसकी बेइज्जती का कारण बने।
इस वसीयत से हमें यह भी सबक मिलता है कि मर्द की धार्मिक उसकी गरीबी, ज्यादा उम्र होने, कम सुंदरता और नौकरी वगैरह सब चीज़ पर गालिब है।
इस वसियत का खुलासा यह है कि हमें अल्लाह के साथ सभी मामलों में विनम्रता (सादगी आदि) से काम लेना चाहिए और लोगों के साथ उस समय तक विनम्रता से रहना चाहिए जब तक कि उसमें किसी तरह का नुकसान ना हो।