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(114) कोई मोमिन पुरुष किसी मोमिना महिला से नफरत ना करे।
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ – أَنَّ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
"لَا يَفْرَكْ مُؤْمِنٌ مُؤْمِنَةً. إِنْ كَرِهَ مِنْهَا خُلُقًا رَضِيَ مِنْهَا آخَرَ".
तर्जुमा: ह़ज़रत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
"कोई मोमिन पुरुष किसी मोमिना महिला से नफरत ना करे। कि अगर उसमें एक आदत ऐसी होगी जो उसे नापसंद होगी तो दूसरी ऐसी भी होगी जो उसे पसंद होगी।"
हम सभी को मालूम है कि अगर इंसान को कोई चीज दी जाती है तो उसे किसी दूसरी चीज से मैहरूम रखा जाता है। जब उसे किसी तरस से बुलंदी की जाती है तो किसी दूसरी तरफ से उसे नीचा भी कर दिया जाता है। और जब उसकी किसी आदत या किसी काम की वजह से उसकी तारीफ होती है तो लाजमी तौर पर उसकी किसी आदत या किसी काम की वजह से बुराई भी होती है। क्योंकि पैगंबरो के अलावा कोई इंसान किसी चीज में संपूर्णता का दावा नहीं कर सकता। क्योंकि सिर्फ उन्हें ही मानव कमाल प्राप्त है। उनके अंदर कोई बुरी आदत नहीं होती और ना ही वह ऐसा कोई काम करते हैं जिसकी वजह से उनकी बुराई हो। इसके बावजूद बहुत से पैगंबर ऐसे भी गुजरे हैं जिन्होंने बहुत तंगी में जीवन बसर किया कि उनके पास बदन छुपाने के लिए कपड़े और जीने भर खाने के अलावा कुछ ना था।
इसकी रोशनी में हम इस ह़दीस़ और इसके महान लक्ष्यों को समझ सकते हैं। तो अगर कोई पुरुष अपनी पसंदीदा लड़की से शादी करता है जो उसे बहुत सुंदर और अच्छे आदत वाली लगती हो तो जरूरी नहीं है कि उसकी सभी आदतें उसके चाहने के मुताबिक हों बल्कि हो सकता है कि उसके अंदर कुछ आदतें ऐसी हों जो उसे पसंद आती हों और कुछ ऐसी भी हों जिन्हें वह पसंद ना करता हो। और यह एक आम बात है। तो ऐसी सूरत में उस व्यक्ति को उस महिला से नाराज नहीं होना चाहिए कि जिसकी वजह से उसे छोड़ दे या तलाक दे दे। बल्कि उसे उसकी खूबियों और खामियों को अच्छी तरह देखना चाहिए। अगर उसकी खूबियाँ उसकी खामियों से ज़्यादा हों तो वह क्या ही अच्छी पत्नी है!
उदाहरण के लिए अगर पति को अपनी पत्नी में किसी तरह की कोई शरीरिक या नैतिक कमी नजर आए तो उससे नफरत ना करे क्योंकि अगर उनमें कुछ कमी है जो उसे पसंद नहीं है तो कुछ अच्छाई भी होगी जो उसे बहुत पसंद होगी।
तथा देखें कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इस वसियत के अंदर भौतिक पहलूओं से ज्यादा नैतिक ही पहलूओं को अहमियत दी है कि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "अगर उसमें एक आदत ऐसी होगी जो उसे नापसंद होगी तो दूसरी ऐसी भी होगी जो उसे पसंद होगी।" इसकी वजह है कि पुरुष और महिला के अंदर नैतिक पहलू भौतिक पहलू से कई गुना ज्यादा महत्वपूर्ण है। तो बुद्धिमान व्यक्ति पहले धार्मिक और नैतिक पहलूओं को देखता है उसके बाद भौतिक और शरीरिक पहलूओं पर नजर करता है।
तो जिसे धार्मिक महिला मिल गई गोया कि उसे उसकी चाहत मिल गई। उसके लिए यह काफी है कि जब वह उसे देखे तो खुश कर दे। जब कुछ आदेश दे तो उसकी आज्ञा का पालन करे। और जब वह उससे दूर हो तो उसके माल और उसकी इज़्ज़त और आबरू की सुरक्षा करे।
इस ह़दीस़ पाक में मोमिन को संबोधित किया गया है क्योंकि वही नसीहत से फायदा उठाता है। उसी पर नसीहत असर करती है। और वही अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के आदेश पर अमल करता है जो दोनों संसार में उसकी कामयाबी का कारण होता है। इसी वजह से नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने यह नहीं कहा कि कोई पुरुष किसी महिला से नफरत ना करे बल्कि यह कहा कि कोई मोमिन पुरुष किसी मोमिना महिला से नफरत ना करे।