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(118) तुम कभी दो आदमियों पर अमीर ना बनना और ना यतीम के माल के मुतवल्ली (देखभाल करने वाला या निगरानी करने लाना) बन्ना।
عَنْ أَبِي ذَرٍّ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ – أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
" يَا أَبَا ذَرٍّ! إِنِّي أَرَاكَ ضَعِيفًا وَإِنِّي أُحِبُّ لَكَ مَا أُحِبُّ لِنَفْسِي، لَا تَأَمَّرَنَّ عَلَى اثْنَيْنِ وَلَا تَوَلَّيَنَّ مَالَ يَتِيمٍ".
तर्जुमा: ह़ज़रत अबू ज़र रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
"ए अबू ज़र! मैं देखता हूँ की तुम बहुत कमजोर हो और तुम्हारे लिए वही चीज पसंद करता हूँ जो अपने लिए पसंद करता हूँ। तुम कभी दो आदमियों पर अमीर ना बनना और ना यतीम के माल के मुतवल्ली (देखभाल करने वाला या निगरानी करने लाना) बन्ना।"
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम हर व्यक्ति को उसके मुनासिब स्थान में रखते थे। चूंकि ह़ज़रत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु को बहुत से काम थे और उनके कांधे पर बहुत सी जिम्मेदारियाँ थीं इसी वजह से नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उन्हें दो लोगों का अमीर बनने की परेशानी बर्दाश्त करने और इस बात के लिए ना अहल समझा कि वह किसी यतीम के माल की निगरानी करने वाले बनें हालांकि उनके अलावा जिम्मेदारियाँ संभालने पर वह अच्छी तरह लायक थे।
इसकी वजह यह है कि अमीर बनना एक ऐसी जिम्मेदारी है जिसके लिए दूसरी सांसारिक और धार्मिक जिम्मेदारियों से खाली होना जरूरी है। यह एक बहुत ही बड़ी और भारी जिम्मेदारी है। इंसान कभी-कभार किसी मामले में ताकतवर होता है तो किसी दूसरे मामले में कमजोर होता है। और कभी किसी एक काम करने की ताकत रखता है जिसे दूसरे नहीं कर सकते तो कभी उसका उल्टा भी होता है कि दूसरे तो किसी काम की ताकत रखते हैं मगर यह उसके करने की ताकत नहीं रखता है।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के फरमान "मैं देखता हूँ कि तुम कमजोर हो और मैं तुम्हारे लिए वही चीज पसंद करता हूँ जो अपने लिए पसंद करता हूँ।" का मतलब है कि मैं तुम्हें इमारत और हुक्म रानी के बोझ बर्दाश्त करने से कमजोर देखता हूँ। क्योंकि इस जिम्मेदारी में उन चीजों की जरूरत होती है जो तुम्हारे पास नहीं हैं। तथा तुम इससे बेहतर जिम्मेदारी में व्यस्त हो और जो पहले ही से किसी चीज में व्यस्त हो उसे किसी चीज में व्यस्त करना नहीं चाहिए। अल्लाह तुम्हें उसकी हिदायत दे जो तुम्हारे लिए इससे बेहतर हो। वही इख्तियार करो जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए इख्तियार किया है। इसी काम में रहो जिसमें अल्लाह ने तुम्हें रखा है। और ऐसी चीज़ की तमन्ना मत करो जिसके नतीजे में तुम्हें बुराई का सामना करना पड़े हालांकि तुम उससे बेनियाज़ हो। तो तुम पर अल्लाह की रहमत उससे ज़्यादा है जिसकी तुम आरजू में हो हालांकि इसमें तुम्हारे लिए आफत मुसीबत तो आफत आफत तो आफत है।
तो पता चला कि इमारत और हुक्मरानी के मैदान के अलग लोग हैं जैसे कि इबादत के लिए अलग चुने हुए बंदे और मैदान-ए-जंग के लिए अलग शहसवार होते हैं। तो पाकी है उसके के लिए जिसने हर चीज को उसका हक दिया फिर उसकी रहनुमाई की।