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(120) जब तुम जन्नत के बागों से गुज़रा करो तो चर लिया करो (या पेट भर लिया करो।)।
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ – أن رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
"إِذَا مَرَرْتُمْ بِرِيَاضِ الْجَنَّةِ فَارْتَعُوا". قُلْتُ: يَا رَسُولَ اللَّهِ، وَمَا رِيَاضُ الْجَنَّةِ؟ قَالَ: "الْمَسَاجِدُ" قُلْتُ: وَمَا الرَّتْعُ يَا رَسُولَ اللَّهِ؟ قَالَ: "سُبْحَانَ اللَّهِ وَالْحَمْدُ لِلَّهِ وَلَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَاللَّهُ أَكْبَرُ". وعن أنس بن مالك – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ – أن رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: "إِذَا مَرَرْتُمْ بِرِيَاضِ الْجَنَّةِ فَارْتَعُوا". قَالَ: وَمَا رِيَاضُ الْجَنَّةِ؟ قَالَ: "حلق الذكر". وعن ابن عباس – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا – أن رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: "إِذَا مَرَرْتُمْ بِرِيَاضِ الْجَنَّةِ، فَارْتَعُوا". قَالَ: وَمَا رِيَاضُ الْجَنَّةِ؟ قَالَ: "مجالس العلم".
तर्जुमा: ह़ज़रत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
"जब तुम जन्नत के बागों से गुज़रा करो तो चर लिया करो (या पेट भर लिया करो।)।" ह़ज़रत अबू हुरैरा कहते हैं कि मैंने कहा कि जन्नत के बाग क्या हैं? तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: "मस्जिदें।"
ह़ज़रत अबू हुरैरह कहते हैं कि फिर मैंने पूछा: "और ए अल्लाह के रसूल! चरने का क्या मतलब है? तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया:" सुबह़ानल्लह, अल्ह़म्दुलिल्लाह, ला इलाहा इल्लल्लाह और अल्लाहू अकबर पढ़ना।
और ह़ज़रत अनस बिन मालिक रद़ियल्लाहु से उल्लेख है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फरमाया: "जब तुम जन्नत के बागों से गुजरा करो तो चर लिया करो (या पेट भर लिया करो)। "ह़ज़रत अनस ने पूछा जन्नत के बाग क्या हैं? आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "ज़िक्र के हल्के़ और मजलिसें।"
और हज़रत इब्ने अब्बास रद़ियल्लाहु अन्हू से उल्लेख है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "जब तुम जन्नत के बागों से गुजरा करो तो चर लिया करो।" ह़ज़रत इब्ने अब्बास ने पूछा कि ए अल्लाह के रसूल! जन्नत के बाग क्या हैं आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: इल्म (ज्ञान) की मजलिसें (सभाएं)।"
विभिन्न प्रकार की रिवायतों के साथ इस ह़दीस़ पाक में सब से महान और दुनिया और आखिरत में हमारे लिए सबसे ज्यादा लाभदायक वसियत मौजूद है।
मजलिसें और ह़ल्के इस सर जमीन पर अल्लाह की जन्नतें हैं और ज़िक्र उनका रिज़्क़ और ज्ञान उनके पेड़ हैं। तो अल्लाह जिसके साथ भलाई का इरादा करता है उसे धर्म की समझ देता है और अपने ज़िक्र, शुक्र और अच्छी तरह इबादत करने पर उसकी मदद फरमाता है। और उसका दिल मस्जिदों से लगा देता है तो ज्ञान उसका खाना, ज़िक्र उसकी दवा और मस्जिद उसका ठिकाना हो जाता है। और फिर उसके बाद उसे कोई चाहत नहीं रहती है।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने मस्जिदों, ज़िक्र की मजलिसों और ज्ञान को जन्नत के बागों जैसा कहा है। क्योंकि बंदे उनमें ज्ञान और ज़िक्र की मिठास से मज़ा लेते हैं। और इनमें उन्हें दुनिया की तमाम चीजों से ज़्यादा मजा़ आता है।
ज्ञान की दौलत हर दौलत से बेहतर है। कोई भी चीज उससे महान और ज़्यादा क़ीमतीनहीं है जैसा कि आगे इस का बयान आएगा।
जिसे अल्लाह के ज़िक्र का मज़ा मिल गया गोया कि उसे ईमान का मजा़ मिल गया। और जिसे ईमान का मजा़ मिल जाए तो उसे अल्लाह की रजामंदी और खुशी के अलावा किसी चीज़ की ख्वाहिश नहीं रहती है यहाँ तक कि जन्नत की भी नहीं। क्योंकि जन्नत तो आम मोमिनों की चाहत होती है जबकि अल्लाह की रजामंदी और खुशी की चाहत खास मोमिनों का नसीब है।
अगर कोई व्यक्ति हकीकत में पेट भरना चाहे या अपनी प्यास बुझाना चाहे तो वह इन मजलिसों में जाए में। क्योंकि हकीकत में प्यास तो इन्हीं मजलिसों में बुझती है ना के खाने पीने में।
मुसलमान को चाहिए कि वह अपनी आत्मा की प्यास बुझाने की जगह की तलाश में कोशिश करे। क्योंकि वही उसकी जन्नत है जिसका ना कभी रिज़्क खत्म होता है और ना ही मजा़।
बल्कि हकीकत में जन्नती लोगों को जितना मजा़ अल्लाह का ज़िक्र करने और उसकी पहचान की तलाश में आता है उतना किसी चीज में नहीं आता। और जान लें कि ज्ञान बुद्धि का राजा, सोच का मालिक, ज़िक्र का स्तंभ और ईमान के सही़ह़ होने की दलील है। क्योंकि बगैर ज्ञान के कोई ईमान नहीं होता।
और ज्ञान वाले सबसे बुलंद रुतबे वाले और अल्लाह के यहाँ बल्कि लोगों में भी सबसे ज़्यादा इज़्ज़त वाले होते हैं।