1. फोटो एल्बम
  2. (121) जो कोई इस बात की मन्नत मांगे कि वह अल्लाह की आज्ञा का पालन करेगा तो उसे अल्लाह की आज्ञा का पालन करना चाहिए। (यानी अपनी मन्नत पूरी करना चाहिए।)

(121) जो कोई इस बात की मन्नत मांगे कि वह अल्लाह की आज्ञा का पालन करेगा तो उसे अल्लाह की आज्ञा का पालन करना चाहिए। (यानी अपनी मन्नत पूरी करना चाहिए।)

330 2020/09/06
(121) जो कोई इस बात की मन्नत मांगे कि वह अल्लाह की आज्ञा का पालन करेगा तो उसे अल्लाह की आज्ञा का पालन करना चाहिए। (यानी अपनी मन्नत पूरी करना चाहिए।)

عَنْ عَائِشَةَ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا – عن النَّبِيِّ – اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:

"مَنْ نَذَرَ أَنْ يُطِيعَ اللَّهَ فَلْيُطِعْهُ، وَمَنْ نَذَرَ أَنْ يَعْصِيه فَلَا يَعْصِهِ".

: ह़ज़रत आ़एशा-रद़ियल्लाहु अ़न्हा- से उल्लेख है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि

तर्जुमा वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:"जो कोई इस बात की मन्नत मांगे कि वह अल्लाह की आज्ञा का पालन करेगा तो उसे अल्लाह की आज्ञा का पालन करना चाहिए। (यानी अपनी मन्नत पूरी करना चाहिए।) और जो इस बात की मन्नत मांगे कि वह अल्लाह की नाफरमानी करेगा तो वह अल्लाह की नाफरमानी न करे। (यानी मन्नत पूरी न करे।)"

मन्नत मांगना जायज़ कामों में से है जबकि उससे अल्लाह से नज़दीकी हासिल करना मकसूद हो।

और कभी मन्नत मुस्तह़ब यानी पसंदीदा होती है जबकि उससे अल्लाह की दी हुई किसी नेअ़मत पर शुक्र अदा करना मकसूद हो।

और कभी मकरूह यानी नापसंदीदा भी होती है जबकि उसके साथ किसी ऐसी चीज़ की शर्त लगा दी जाए जिसकी वह अल्लाह से ख्वाहिश करता हो जैसे कि यूँ कहे कि अगर अल्लाह ने मुझे ठीक कर दिया तो मैं एक मेंढा या बकरी क़ुर्बान करूंगा या सौ रकात नमाज पढ़ूंगा या हफ्ते में दो दिन रोजे रखूंगा। क्योंकि इसमें एक तरह से अल्लाह के साथ बेअदबी है। (इसलिए कि इसमें इस इखलास नहीं है। बल्कि यह तो एक तरह का बदला है।) लिहाज़ा एक सच्चे मुसलमान को अल्लाह के लिए ऐसी मन्नत नहीं मांगना चाहिए कि जिसके बदले में वह ऐसी चीज़ के प्राप्त करने की ख्वाहिश रखे जो उसके मुकद्दर में नहीं है या ऐसी चीज के दूर करने के ख्वाहिश रखे जिसे अल्लाह ने उसके लिए मुकर्रर कर दिया है। लेकिन हाँ अगर किसी ने इस तरह की मन्नत मांग ली तो उसे पूरा करना जरूरी है। इसके खिलाफ अगर किसी ने गुनाह करने की मन्नत मांग ली तो उसे पूरा नहीं करना चाहिए जैसा की ह़दीस़ शरीफ में बयान हुआ।

इस स्पष्टीकरण की रोशनी में अब हम समझ सकते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के इस फरमाना "जो कोई इस बात की मन्नत मांगे कि वह अल्लाह की आज्ञा का पालन करेगा तो उसे अल्लाह की आज्ञा का पालन करना चाहिए।" का मतलब है कि मुस्तह़ब (पंसदीदा) कामों का करना या अनिवार्य (ज़रूरी) कामों को इस तरह से अदा करना जैसे कि मन्नत मांगने वाले व्यक्ति ने उन्हें अपने ऊपर ज़रूरी किया है। ताकि अल्लाह से नज़दीकी हासिल करे, नफ्स को सबक सिखाए और अपनी ख्वाहिश को लगाम कसे।

मन्नत मांगने वाले को चाहिए कि जिस चीज के करने का उसने वादा किया है यानी मन्नत मांगी है उसे पूरा करे। उसमें किसी तरह की कोताही, सुस्ती या कंजूसी न करे। क्योंकि अगर मन्नत पूरी करने करने में कोताही करता है तो वह अल्लाह के उन नेक बंदो में से नहीं होगा जिनसे अल्लाह ने अच्छा वादा किया है और जिन्हें खूब देने को कहा है।

नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के फरमान: "और जो इस बात की मन्नत मांगे कि वह अल्लाह की नाफरमानी करेगा तो वह अल्लाह की नाफरमानी न करे।" में गुनाह की मन्नत पूरी करने से साफ तौर पर मनादी है। क्योंकि गुनाह की मन्नत पूरी करना अल्लाह के अधिकार को पूरा करने के खिलाफ है। लिहाज़ा इस तरह की मन्नत पूरी करने से हरगिज़ अल्लाह की नज़दीकी हासिल न होगी बल्कि गुनाह मिलेगा। बल्कि वास्तव में नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का यह फरमान सिरे से ही गुनाह की मन्नत मांगने की मनादी का पता देता है।

लिहाजा इंसान को कोई ऐसा काम करके अपनी जान को परेशानी में नहीं डालना चाहिए जिसके करने की उसमें ताकत न हो या जिसका करना उसे परेशानी में डाल दे और उससे उसकी रोजी-रोटी में तंगी पैदा हो या वह किसी बीमारी का कारण हो जो उससे बर्दाश्त न हो सके। क्योंकि मन्नत अल्लाह की नज़दीकी हासिल करने का एक ज़रिया है और अल्लाह की नज़दीकी न तो गुनाह से हासिल हो सकती है और न ही कोई ऐसा काम करने से जो शरिअ़त की रु से मुस्ताहब यानी पसंदीदा कामों के दायरे से बाहर हो। पीछे बयान की गई ह़दीस़ शरीफ से यह भी लिया जाता है कि गुनाह की मन्नत मांगना सिरे से ही जायज नहीं है और अगर किसी ने मांग भी ली तो वह होगी ही नहीं। और ना उसका पूरा करना जरूरी है। और ऐसी मन्नत मांगने वाला व्यक्ति हर हाल में गुनाहगार होगा। क्योंकि इसमें गुनाह पर जुर्अत और अल्लाह के साथ बेअदबी है। और अल्लाह बहुत ज्यादा दयालु, निहायत रहम करने वाला और बहुतों को माफ करने वाला है।

इंसान अपने आप को अच्छी तरह समझता है। लिहाज़ा  समझदारी इसी में है कि अपने आपको किसी ऐसी चीज का पाबंद न बनाए जिसकी वजह से वह परेशानी में पड़े। बल्कि अपने आप पर आसानी करे और जहाँ तक हो सके सही बात करे और ठीक काम करे।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day