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(122) छोटे छोटे गुनाहों से (भी) बचे रहो।
عَنْ سَهْلِ بْنِ سَعْدٍ - رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ – أن رسول الله صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قال:
"إِيَّاكُمْ وَمُحَقَّرَاتِ الذُّنُوبِ، فَإِنَّمَا مَثَلُ مُحَقَّرَاتِ الذُّنُوبِ كَمَثَلِ قَوْمٍ نَزَلُوا بَطْنَ وَادٍ فَجَاءَ ذَا بِعُودٍ وَجَاءَ ذَا بِعُودٍ حَتَّى حَملوا مَا أَنْضَجُوا بِهِ خُبْزَهُمْ وَإِنَّ مُحَقَّرَاتِ الذُّنُوبِ مَتَى يُؤْخَذُ بِهَا صَاحِبُهَا تُهْلِكُهُ".
तर्जुमा: ह़ज़रत सहल बिन सअ़द रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "छोटे छोटे गुनाहों से (भी) बचे रहो। क्योंकि छोटे गुनाह उस क़ोम की तरह हैं जो किसी वादी में ठहरी, फिर उसका एक आदमी एक लकड़ी ले आया और दुसरा आदमी एक ओर लकड़ी ले आया यहाँ तक कि सभी लोग इतनी लकड़ी ले आए कि सभी ने अपनी रोटियाँ पका लीं। यकीनन जब छोटे गुनाहों की पकड़ होगी तो ये गुनाहगार को बर्बाद कर देंगे।"
सबसे खतरनाक और अ़ज़ाब वाला गुनाह यह है कि इंसान किसी गुनाह को छोटा जानकर और आखिरत में उसके अंजाम की परवाह किए बिना उसे करता रहे। बहुत से गुनाह जिन्हें इंसान छोटा समझता है उसके बहुत से नेमतों से मेहरूमी या उसकी बर्बादी का कारण होते हैं।
सह़ाबा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम के दिलों में अल्लाह का इतना डर था कि वे किसी गुनाह में अंतर नहीं करते थे बल्कि वह हर समय तनहाई में हो या लोगों के सामने हों हमेशा अल्लाह से डरते और किसी घड़ी उसके ज़िक्र से गाफिल नहीं होते। और अगर आराम की वजह से किसी घड़ी अल्लाह के ज़िक्र और उसकी याद गाफिल हो जाते तो उस घड़ी पर बहुत ज्यादा अफसोस करते और अल्लाह की बारगाह में तौबा और इस्तिगफार करते।
उ़लमा ए किराम ने गुनाहों को छोटे-बड़ों में जो बांटा है वह इसलिए ताकि उन पर एह़काम आधारित कर सकें इसलिए नहीं कि एक को हकीर और कम जानें और दूसरे को बढ़ा। एक सच्चा मुसलमान छोटे से छोटे गुनाह को भी अपने सर पर पहाड़ के बराबर समझता है जबकि गुनाहगार बड़े से बड़े गुनाह को भी एक छोटी सी मक्खी की तरह समझता है जो उसके मुंह पर बैठी और उड़ गई। हालांकि अल्लाह तआ़ला अपने बंदों के तमाम कामों को एक दफ्तर में जमा करता है। अतः कयामत के दिन जब बंदा आएगा तो उसके सामने उसके उस दफ्तर को खोला जाएगा जिसमें उसके तमाम अच्छे बुरे काम लिखे होंगे। तो नेकियों का उसे अच्छा बदला मिलेगा और बुराइयों का बुरा। उस दिन नेक व्यक्ति कहेगा:"काश मैं कुछ और नेकियाँ कर लेता।" और गुनाहगार कहेगा: "काश में गुनाह न करता।" हालांकि उस समय उसका अफसोस करना उसके कुछ काम नहीं आएगा।
जो गुनाह वुज़ू और नमाज़ वगैरह से झड़ते हैं वे छोटे गुनाह है। बड़े गुनाह तो सच्ची तौबा और उन नेक काम करने से मिटते हैं जो सच्ची तौबा के सही होने का सबूत होते हैं।
छोटी सी चिंगारी से ही बड़ी आग लगती है। (इसी तरह छोटे-छोटे गुनाहों से ही बड़े गुनाह बड़े गुनाह हो जाते हैं और इंसान को हलाक कर देते हैं।) क्योंकि बहुत ज्यादा गुनाह करने से दिल की चमक खत्म हो जाती है और वह व गंदा सख्त और काला हो जाता है। लिहाजा जो व्यक्ति चाहता है कि अल्लाह उसका कि अल्लाह उसका गम दूर कर दे और उसकी परेशानी खत्म कर दे तो वह जहाँ भी हो अल्लाह से डरे और जहाँ तक हो सके गुनाहों से बचे।