Search
(126) जो मुसलमान का अधिकार है और जो उस पर अधिकार है उसमें वसियत करने का हुक्म।
عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنَ عُمَرَ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا – أَنَّ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
"مَا حَقُّ امْرِئٍ مُسْلِمٍ لَهُ شَيْءٌ يُوصِي فِيهِ يَبِيتُ لَيْلَتَيْنِ إِلَّا وَوَصِيَّتُهُ مَكْتُوبَةٌ عِنْدَهُ".
तर्जुमा: ह़ज़रत अ़ब्दुल्लह बिन उ़मर रद़ियल्लाहु अ़न्हुमा बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
"जो मुसलमान अपनी किसी चीज़ के बारे में वसियत करना चाहता है उसके लिए दो रातें भी बिना वसियत लिखे गुजारना जायज़ नहीं है। बल्कि वसियत उसके पास लिखी हुई होना चाहिए।"
क्योंकि जिंदगी का कुछ पता नहीं। मौत किसी भी समय अचानक आ सकती है। लिहाज़ा अगर वह अपने माल में वसियत न करे जिससे वह अपना माल अपने वारिसों के लिए महफूज़ कर सके तो वह उनके अधिकारों को बर्बाद करेगा और अपनी जिम्मेदारी में भी कोताही करने वाला शुमार किया जाएगा। और अपने सर पर इस गुनाह का वबाल उठाएगा। क्योंकि वह घर का एक जिम्मेदार व्यक्ति है और हर जिम्मेदार से उसकी जिम्मेदारी के बारे में जरूर पूछा जाएगा।
लिहाज़ा जिस माल में वह वसियत करना चाहता है अपने घरवालों को वसियत कर दे ताकि वह माल उसके लिए या उसके बच्चों और बारिसो के लिए महफूज रहे। उदाहरण के लिए वह कहे: "फुलाने फुलाने पर मेरा इतना इतना माल है। या फुलानी फुलानी जगा मेरा इतना इतना माल है। या मुझ पर फुलाने का इतना माल है।" ताकि वारिस सही से उसका तरका जमा कर लें और उसके हक में अपनी जिम्मेदारी को पूरे तौर पर अदा कर दें।
सही यही है कि जब माल ज्यादा हो तो इस तरह की वसियत करना जरूरी है। लेकिन कुछ फुक़हा जाहिरी हदीस को देखते हुए कहते हैं कि माल कम हो या ज़्यादा यह वसियत जरूरी है।