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(129) इस निकाह (विवाह) का ऐलान करो।

165 2020/09/06
(129) इस निकाह (विवाह) का ऐलान करो।

عَنْ عَائِشَةَ قَالَتْ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا – أَنَّ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قال:

"أَعْلِنُوا هَذَا النِّكَاحَ وَاجْعَلُوهُ فِي الْمَسَاجِدِ وَاضْرِبُوا عَلَيْهِ بِالدُّفُوفِ".

तर्जुमा: ह़ज़रत आ़एशा रद़ियल्लाहु अ़न्हा कहती हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

"इस निकाह (विवाह) का ऐलान करो। इसे मस्जिदों में करो। और इसमें दफें बजाओ।"

निकाह एक  पाक बंधन और मजबूत वचन है जो पति-पत्नी में से हर एक दूसरे की खातिर लेता है और जिसके नतीजे में अल्लाह की रखी हुई सीमाओं के अंदर एक दूसरे से आनंद लेना जायज हो जाता है।

तथा यह एक फितरती सुन्नत और जीवन की सख्त जरूरतों में से एक ज़रूरत भी है। इसी से परिवारों और समाजों में बंधन मजबूत होते हैं। इसी से नस्ल की सुरक्षा होती है और धरती आबाद होती है।

     इस बंधन की शान यह है कि घर वालों, पड़ोसियों और पति-पत्नी के सारे जानने वालों के दरमियान इस की शोहरत होना चाहिए ताकि पति-पत्नी लोगों की बातों से सुरक्षित रहें और उनकी इज्जत पर कोई धब्बा न आए। इसी वजह से नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहिस्सलाम वसल्लम ने पति-पत्नी के घरवालों को यह वसियत की कि वे अपने समय में चलने वाले मशहूर तरीकों से रोज़ाना आने जाने की जगह यानी मस्जिदों में उनके निकाह का ऐलान करें। इस ह़दीस़ शरीफ में तीन वसियतें हैं:

पहली वसियत: यह है कि जायज़ तरीकों से निकाह का ऐलान किया जाए। और ऐसे बहुत से तरीके हैं। निकाह को मशहूर करने के लिए लोगों में बहुत सी रस्में होती हैं। तो जो उनमें अच्छी हो इस्लाम ने उसे जायज़ कहा है। और जो बुरी है उससे मना किया है।

दूसरी वसियत: उस जगह को बताना है जहाँ निकाह का ऐलान किया जाए और वह जगह मस्जिदें हैं जिनमें हर नमाज में अल्लाह के नेक बंदे जमा होते हैं। लिहाजा यह जमीन के ऊपर सबसे अच्छी सबसे पवित्र जगह है। जैसा कि निकाह सबसे पवित्र बंधन और अक़द है। लिहाज़ा उसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने मस्जिद में इसके ऐलान करने का आदेश दिया है। तथा इसमें बहुत से फायदे भी हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

एक यह के अल्लाह इस बंधन में बरकत फरमाता है। पति-पत्नी पर अपनी दया और कृपा की बारिशें करता है। और उनमें प्यार और मोहब्बत बढ़ाता है।

और एक फायदा यह है कि अल्लाह के पवित्र घर में अल्लाह को हाजिर जानकर जमीन के ऊपर सबसे बेहतरीन जगह में सच, खुलूस और अच्छे व्यवहार का पति-पत्नी एक दूसरे से वादा करते हैं। लिहाज़ा सुकून और वकार से भरपूर रहकर मस्जिद से बाहर निकलते हैं। और अपने अंदर ऐसा इत्मीनान और सुकून महसूस करते हैं कि अगर मस्जिद के अलावा किसी और जगह मैं यह निकाह होता तो ऐसा कभी महसूस न करते। और जब जब वे उस जगह को देखते हैं तो उनकी याद ताजा हो जाती है और उन्हें उनका वचन याद आ जाता है जिसकी वजह से उनमें प्यार और मोहब्बत बढ़ जाता है। तथा जो भी निकाह अल्लाह की आज्ञा का पालन करने और अल्लाह की नजदीकी से शुरू होता है तो वह ऐसा बंधन है कि इंशाअ अल्लाह कभी नहीं टूटेगा। लिहाज़ा पति-पत्नी में से हर एक को खुश होना चाहिए। और हाँ याद रहे कि सारी खुशी अल्लाह ही की आज्ञा का पालन करने और उसी की तरफ लो लगाने में हैं।

तीसरी वसियत: यह है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने निकाह में दफ़ बजाने का आदेश दिया। और हाँ याद रहे कि यह दफ़ मस्जिदों के अलावा जगहों में बजाई जाए।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day