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(134) ए महिलाओं के समूह! सदका़ (दान) दो भले ही अपने गहनों में से दो।
عَنْ زَيْنَبَ امْرَأَةِ عَبْدِ اللَّهِ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا– قَالَتْ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ
"تَصَدَّقْنَ يَا مَعْشَرَ النِّسَاءِ وَلَوْ مِنْ حُلِيِّكُنَّ" قَالَتْ: فَرَجَعْتُ إِلَى عَبْدِ اللَّهِ فَقُلْتُ: إِنَّكَ رَجُلٌ خَفِيفُ ذَاتِ الْيَدِ، وَإِنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَدْ أَمَرَنَا بِالصَّدَقَةِ. فَأْتِهِ فَاسْأَلْهُ. فَإِنْ كَانَ ذَلِكَ يَجْزِي عَنِّي وَإِلَّا صَرَفْتُهَا إِلَى غَيْرِكُمْ. قَالَتْ: فَقَالَ لِي عَبْدُ اللَّهِ بَلْ ائْتِيهِ أَنْتِقَالَتْ: فَانْطَلَقْتُ. فَإِذَا امْرَأَةٌ مِنْ الْأَنْصَارِ بِبَابِ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ حَاجَتِي حَاجَتُهَا. قَالَتْ: وَكَانَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَدْ أُلْقِيَتْ عَلَيْهِ الْمَهَابَةُ. قَالَتْ: فَخَرَجَ عَلَيْنَا بِلَالٌ فَقُلْنَا لَهُ ائْتِ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَأَخْبِرْهُ أَنَّ امْرَأَتَيْنِ بِالْبَابِ تَسْأَلَانِكَ: أَتُجْزِئُ الصَّدَقَةُ عَنْهُمَا عَلَى أَزْوَاجِهِمَا وَعَلَى أَيْتَامٍ فِي حُجُورِهِمَا؟ وَلَا تُخْبِرْهُ مَنْ نَحْنُ. قَالَتْ: فَدَخَلَ بِلَالٌ عَلَى رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَسَأَلَهُ. فَقَالَ لَهُ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ "مَنْ هُمَا؟" فَقَالَ: امْرَأَةٌ مِنْ الْأَنْصَارِ وَزَيْنَبُ، فَقَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ "أَيُّ الزَّيَانِبِ؟" قَالَ: امْرَأَةُ عَبْدِ اللَّهِ فَقَالَ لَهُ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ "لَهُمَا أَجْرَانِ: أَجْرُ الْقَرَابَةِ وَأَجْرُ الصَّدَقَةِ".
तर्जुमा: ह़ज़रत अ़ब्दुल्लह रद़ियल्लाहु अ़न्हु की पत्नी ह़ज़रत ज़ैनब रद़ियल्लाहु अ़न्हा कहती हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
"ए महिलाओं के समूह! सदका़ (दान) दो भले ही अपने गहनों में से दो।" वह कहती हैं कि मैं (अपने पति) अ़ब्दुल्लह के पास आई और उनसे कहा:" तुम खाली हाथ हो और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने हमें सदका़ देने का आदेश दिया है। तो तुम जाकर नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से पूछो कि अगर मैं तुम्हें दे दूँ तो सदका अदा हो जाएगा तो तो ठीक है वरना तुम्हारे अलावा किसी और को दे दूँ। वह कहती हैं: तो अ़ब्दुल्लह रद़ियल्लाहु अ़न्हु ने मुझसे कहा तुम खुद ही जाकर नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से पूछ लो। वह कहती हैं फिर मैं आई तो देखती हूँ कि अंसार की औरत नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के दरवाजे पर खड़ी थी और उसका भी वही काम था जो मेरा था। कहती हैं और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का बड़ा डर था। वह कहती हैं तो ह़ज़रत बिलाल रद़ियल्लाहु अ़न्हु निकले तो हमने उनसे कहा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के पास जाओ और बताओ कि दौ महिलाएं दरवाजे पर हैं और वह यह पूछ रही हैं कि अगर वे अपने पतियों और अपनी गोद में पलने वाले यतीम बच्चों को सदका दे दें तो क्या उनका सदका़ अदा हो जाएगा या नहीं? और नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को यह न बताना कि हम कौन हैं। ह़ज़रत ज़ैनब रद़ियल्लाहु अ़न्हा कहती हैं फिर सैयदना ह़ज़रत बिलाल रद़ियल्लाहु अ़न्हु ने अल्लाह के रसूल से पूछा तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फरमाया वे कौन है? तो ह़ज़रत बिलाल रद़ियल्लाहु अ़न्हु ने बताया कि एक अंसारी महिला हैं और दूसरी ज़ैनब हैं। तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फरमाया कि कोन सी ज़ैनब? तो ह़ज़रत बिलाल ने बताया कि अ़ब्दुल्लह की पत्नी। तो आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने ह़ज़रत बिलाल रद़ियल्लाहु अ़न्हु से फरमाया:"उनको उसमें दोहरा सवाब है। एक तो रिश्तेदारी का और दूसरा सदक़े का।"
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम मर्दों को नसीहत करने के बाद खासतौर से औरतों के लिए समय निकालते और उन्हें भी मर्दों जैसी नसीहत करते। नेक काम करने और उन पर सवाब पाने में महिलाएँ पुरुषों ही की तरह है लेकिन इसके बावजूद भी आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम औरतों को खासतौर पर नसीहत करते ताकि ज़्यादा नेक काम करने और मर्दों की तरह उन्हें भी गरीबों और मिसकीनों को खाना खिलाने पर उभारें।
महिलाओं को इस विशेष रूप से नसीहत सुनने में इतनी मिठास मिलती कि कभी-कभी वह मर्दों से ज्यादा आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की आज्ञा का पालन करतीं। लिहाज़ा नेक कामों में जल्दी करतीं और नमाज़, रोज़े, ज़कात और दूसरी इबादतों और नेक कामों में मर्दों से मुकाबला करतीं।
महिलाएँ रिश्तेदारों, गरीबों और मिसकीनों के मामलों में मर्दों से ज्यादा दयालु और रहम दिल होती हैं। तथा ज्यादा गुनाहों की वजह से उन्हें मर्दों से अधिक सदक़े और खैरात करने की जरूरत होती है। क्योंकि वह बहुत ज्यादा गालीगलौज करती हैं। अपने पतियों की बहुत ज्यादा नाफरमानी करती हैं। और ऐसे काम करती हैं जिनके कारण उन्हें नर्क जाना ज़रूरी हो जाता है।
तो नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के फरमान:"ए महिलाओं के समूह! सदका़ दो भले ही अपने गहनों में से दो।" से मकसूद महिलाओं को इस बात पर उभारना है कि वे अल्लाह की प्रसन्नता और उसकी खुशी के लिए अपने धन में से कुछ फकीरों, यतीमो और मिसकीनों के ऊपर खर्च करें भले ही गहनों में से क्यों न करें। गहने औरतों के लिए सबसे कीमती चीज होती है। इसीलिए बनाओ-सिंगार और दिखावे की चाहत की वजह ज्यादातर अपने गहनों में से कुछ खर्च नहीं करना चाहती हैं। तो गोया कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम उनसे कह रहे हैं कि अपने धन में कंजूसी न करो भले ही वह तुम्हें कितने ही प्यारा क्यों न हो। क्योंकि आखिरत उससे बेहतर है और हमेशा रहने वाली है। और बंदे को अच्छा सवाब उसी समय मिलेगा जबकि वह अपनी पसंदीदा चीज खर्च करे। और संभव है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का फरमान "भले ही अपने गहनों में से।" उनके पास मौजूद धन या फिर ऐसी कीमती चीजों में कंजूसी करने के बहाने को खत्म करने के लिए हो जिनकी वजह से वे सदका़ नहीं कर सकती हों।
याद रखें कि सदका़ का सवाब अच्छी नियत और देने वाले की स्थिति के हिसाब से मिलता है।