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(4) पांच (चीजों) को पांच से पहले ग़नीमत जानो।
ह़ज़रत इब्ने अ़ब्बास (अल्लाह उनसे राज़ी हो) से रिवायत है वह कहते हैं:"अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने एक व्यक्ति को नसीहत करते हुए फरमाया:
पांच (चीजों) को पांच से पहले ग़नीमत जानो: बुढ़ापे से पहले जवानी को, बिमारी से पहले तंदुरुस्ती को, फ़क़ीरी से पहले अमीरी को, मसरूफियत से पहले फुर्सत को और मौत से पहले ज़िन्दगी को।"
यह ह़दीस़ शरीफ अपने अर्थ में स्पष्ट व साफ, अपने उद्देश्यों व लक्ष्यों में मज़बूत है और जिसमें एक मुस्लिम (बल्कि हर व्यक्ति) की धार्मिक और संसारिक भलाई और लाभ है उसे शामिल है। और इस में कोई शक नहीं कि दुनिया की भलाई और अच्छाई दीन और धर्म की भलाई और अच्छाई में है, औ आखिरत यानी परलोक की अच्छाई व भलाई उन दोनों की अच्छाई व भलाई में है, क्योंकि दुनिया आखिरत की खेती है, और यह तभी संभव है जबकि इस्लाम धर्म उसका तरीका और संविधान हो। ज़िन्दगी सीमित स्थानों में कुछ सांसों का नाम है जो सांसें ऐसे समय में मोत आने से रुक जाती हैं जिसका कोई भी पता नहीं है, फिर व्यक्ति बेकार कामों में अपने जीवन को बर्बाद करने पर पछतावा करता है लेकिन उस समय उसका पछताना किसी कार्य का नहीं होता और न ही उसे स्वयं या दूसरे लोगों या अल्लाह के अधिकारों में लापरवाही करने के अज़ाब और दंड से बचा सकता है।