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(7) तुममे से कोई भी मौत की आरज़ू व तमन्ना न करे।

367 2020/09/07
(7) तुममे से कोई भी मौत की आरज़ू व तमन्ना न करे।

 ह़ज़रत अनस (अल्लाह उनसे राज़ी हो )से रिवायत है वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने फरमाया:

"तुममे से कोई भी आदमी तकलीफ़ या मुसीबत की वजह से मौत की आरज़ू व तमन्ना न करे। और अगर उसके बिना चारा न हो तो यूं कहना चाहिये: ऐ अल्लाह! मुझे उस समय तक ज़िन्दा रख जब तक मेरे ज़िन्दा रहने मे भलाई है और मुझे उस समय मौत दे जब मरने में मेरे लिये भलाई हो।"

(बुखारी, मुस्लिम)

यह ह़दीस़ हमें यह सिखाती है कि हमारे जीवन के सभी मामलों में अल्लाह के साथ हमारा कैसा अदब होना चाहिए, यह हमें अल्लाह के फैसले से संतुष्ट और राज़ी होने और जीवन और मृत्यु को उसी पर सौंपने पर उभाराती है। और निर्णय और इख़्तियार में अल्लाह की सीमाओं को पार करने से हमें चेतावनी देती है। क्योंकि यह एक ऐसा मामला है जो बिलकुल भी हमारे हाथ में नहीं है।

मनुष्य, प्रकृति के प्रति, मृत्यु से घृणा और नफ़रत करता है और जीवन से प्यार और उसे पंसद करता है। लेकिन कभी कभी उसे ऐसी मुसीबत जैसे कठिन बिमारी, या बहुत ज़्यादा फकीरी या बहुत ज़्यादा क़र्ज़ या इसी तरह की दूसरी परेशानियाँ उसे हो जाती हैं जिनसे तंग आकर वह मनुष्य मौत की तमन्ना करता है ताकि उसे उन परेशानियों से भरे जीवन से मुक्ति मिल जाए और सुकून  प्राप्त हो जाए, लेकिन वह यह नहीं जानता कि क्या उसे मौत के बाद सुकून प्राप्त होगा या नहीं, कभी वह अपने सर पर पापों का बोझ लिए हुए मर जाता है जिनके कारण उसे उसकी कब्र और परलोक में आग में डालने की सज़ा मिलती है, लेकिन अगर ज़िन्दा रहता तो शायद अल्लाह तआ़ला उसे सच्ची तोबा और अच्छे कर्म करने की तोफिक़ दे देता और फिर वह अपने अल्लाह से उसका प्यारा बन्दा होकर मिलता तो अल्लाह उसे परेशानी में सब्र करने और तकलीफ सहने का अच्छा बदला देता।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day