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(10) जो चीज़ तुम्हें शक में डाले उसे छोड़कर ऐसी चीज़ अपनाओ जो तुम्हें शक में न डाले।
ह़ज़रत ह़सन बिन अ़ली (अल्लाह उन दोनों से राज़ी हो)से रिवायत है वह कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) से यह बात याद की:
(उन्होनें फरमाया):"जो चीज़ तुम्हें शक में डाले उसे छोड़कर ऐसी चीज़ अपनाओ जो तुम्हें शक में न डाले। क्योंकि सच्चाई संतुष्टी है और झूठ शक (और बैचेनी) है।
यह ह़दीस़ नबी (सल्लल्ललाहु अ़लैहि वसल्लम) की सर्व-समावेशी ह़दीस़ो में से एक है, इसमें बहुत मानें और मतलब छुपे हुए हैं जो गहराई से विचार करने वाला समझ सकता है। जायज़ व नाजायज़, त़हारत(पाकी), नमाज़, रोज़ा, ह़ज, ज़कात और इनके अलावा दुसरी इबादतों और मामलों के नियमों के लिए यह ह़दीस़ एक नियम है। फ़कीह को उसूल और फुरूअ़ (इस्लाम की बुनियादी और ऊपरी बातें) में इसकी आवश्यकता होती है और मुफ्तियों (सवालों का जवाब देने वाले) और सवाल पूछने वालों को भी इसकी सख्त जरूरत पड़ती है जबकि यकीन (विश्वास) का शक (संदेह) से टकराओ होता है।
और जो नियम इस ह़दीस़ में आते हैं उनमें से कुछ ये हैं :
यकीन (विश्वास) शक से खत्म नहीं होता है।
यकीन केवल दुसरे यकीन से ही खत्म होता है।
असल को लेना और शक को छोड़ना और चीज़ को उसी तरह बाकी रखना जिस तरह से वह पहले से थी।
यदि किसी को किसी कार्य करने का यकीन और विश्वास है लेकिन उसके कम या ज्यादा करने यानी मात्रा में शक है तो कम वाली मात्रा को माना जाएगा, क्योंकि वही निश्चित और यकीनी है।
गलत गुमान (अनुमान, कल्पना) का कुछ ऐतबार नही है।