Search
(12) मुसलमान मुसलमान का भाई है।
हज़रत अबू हुरैरा (अल्लाह उन से प्रसन्न हो) से रिवायत है वह कहते हैं: अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने फरमाया:
"आपस में एक दुसरे से हसद न करो। एक दुसरे पर बोली न बढ़ाओ। (किसी को फ़साने के लिए अधिक मूल्य लगाना।) एक दुसरे से द्वेष (नफ़रत व बुगज़) न करो। एक दुसरे से मुंह न फेरो। (एक दुसरे से बेरुखी न बरतो।) किसी की बिक्री पर बिक्री न करो। (और एक दुसरे के बीच में चढ़ कर खरीद व फरोख्त ना करो।) और अल्लाह के बन्दे और आपस में भाई भाई बन जाओ। मुसलमान मुसलमान का भाई हैl वह उस पर ज़ुल्म(अत्याचार) न करे, न ही उसको रुसवा करे। और न ही उसको तुक्ष जाने। (और न ही उसको गिरी निगाह से देखे।) तक़वा (अल्लाह का डर और परहेज़गारी) यहाँ (अर्थात दिल में) होता हैl ऐसा कहते हुए आपने तीन बार अपने सीने की तरफ इशारा कियाl आदमी के बुरा होने के लिए काफी है कि वह अपने मुसलमान भाई को गिरी हुई निगाह से देखेl हर मुसलमान पर दुसरे मुसलमान का खून, माल और इज्ज़त व आबरू (समान) हराम है।"
(मुस्लिम)
इस्लाम की बुनियाद ईमानी भाईचारे पर है जो सभी लोगों को एक जगह इक्ट्ठा कर देता है भले ही वे अलग अलग देशों व क्षेत्रों से हों, उनकी जाति अलग हौ या भले ही वे माल व दौलत और ज्ञान में एक दूसरे से अलग हों।
अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया :
إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ إِخْوَةٌ मुसलमान मुसलमान भाई ही हैं।
(सूरह: अल हुजुरात, 10)
वे हर उस ऐतबार से भाई भाई हैं जिसको यह शब्द शामिल है।
ईमानी भाईचारा सबसे बड़ा इनाम व कृपा (और महान नेअ़मत व प्रदान) है, इसी के कारण मुसलमान एक होते हैं और शांति और प्रेम से ज़िन्दगी बसर करते हैं। और इसके अलावा, इसी के द्वारा मुसलमान अपने दुश्मनों पर विजयी होते हैं, क्योंकि यह स्वयं ही एक शक्ति व ताकत है, एक बार जब ईमान दिलों में बस गया, तो नफरतें दूर हो जाएंगी, आत्माओं में तालमेल हो जाएगा है, सभी भाई एक लक्ष्य, एक राय, एक शब्द पर इकट्ठा हो जाएंगे, और वे निश्चित इस इन धन्य भाईचारे के कारण इस दुनिया और आखिरत (परलोक) में खुश होगें।सभी बुरी ताकतें उन्हें नुकसान पहुंचाने में नाकाम रहेंगीं। अतः इस्लामी भाईचारे से ज्यादा फायदेमंद और लाभदायक कोई प्रदान और कृपा(अल्लाह की नेअ़मत) नहीं है।