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(16) आदमी अपने दोस्त के धर्म पर होता है।
ह़ज़रत अबु हुरैरा (अल्लाह उनसे राज़ी हो) से रिवायत है वह कहते हैं:
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने फ़रमाया: "आदमी अपने दोस्त के धर्म पर होता है। तो तुम में से हर एक को यह देख लेना चाहिए कि वह किस से मिल-जुल रहा है।
और मोअम्मिल से एक दुसरी रिवायत में है: "यह देख ले कि वह किससे दोस्ती कर रहा है।" (अह़मद)
लोगों में अच्छे दोस्तों को चुनना इस्लामी शरीअ़त का एक विशेष लक्ष्य है। क्योंकि अच्छी दोस्ती से दिलों में प्यार बढ़ता है और नैतिकता व एख़लाक अच्छे होते हैं, अच्छाई, भलाई, कृपा और तक़वा व परहेज़गारी के कार्यों में एक दुसरे की सहायता होती है। और इनके अलावा भी दुसरे महान लक्ष्य व मकसद अच्छी दोस्ती पर आधारित हैं जिन्हें हर मुसलमान विशेष रूप से अपने और दुसरे मुसलमानों के लिए और समान्य रूप से सभी लोगों के लिए प्राप्त करना चाहता है।
इन्सान अपनी फितरत से ही सामाजिक व मिलनसार है जैसा कि इब्ने खु़लदून ने कहा है। वह दुसरे लोगों से अलग रह कर अकेले ज़िन्दगी बसर नहीं कर सकता। और न ही उन से दूर रह कर उसे सुकून मिल सकता है भले ही वह कितनी कोशिश करले। और न ही उसे कुछ खुशी व प्रसन्नता महसूस हो सकती है भले वह कितने ही शानदार व ऊंचे बुर्ज और महल में रहे और उसमें तरह तरह के खाने-पीने, कपड़े, बिस्तर और इनके अलावा भी दुसरी चीज़ें मिल जाएं। क्योंकि उसकी प्रसन्नता व खुशी तो घरवालों, परिवार और वफादार दोस्तों के साथ रहने में मिलती है।
अतः आत्माओं को भलाई या अच्छाई की तरफ ले जाने, बुद्धियों को साफ़ करने और उन्हें अच्छा बनाने या उन्हें बहकाने और गुमराह करने और समाज को तरक़्क़ी व विकास देने या उसे पीछे करने में दोस्ती का बड़ा गहरा प्रभाव व असर है। इस वजह से अच्छे दोस्तों को चुनना इस्लामी कर्तव्य और धार्मिक ज़िम्मेदारी है ताकि लोग आपस में प्यार और एकता से अपना जीवन बसर कर सकें जिसे बौद्धिक अंतर और कोई दुनियावी मकसद गन्दा न कर सके। और ताकि ऐसा जीवन बसर कर सकें जो संतुष्टी, प्यार व मोहब्बत, वफादारी, और अमन व सलामती से भरा हुआ हो।