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(19) मेरी सुन्नत को मज़बूती से पकड़े रहो।
ह़ज़रत इ़र्बाज़ बिन सारिया (अल्लाह उनसे राज़ी हो) से रिवायत है वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने एक दिन हमें नमाज़ पढ़ाई,
फिर हमारी ओर मुड़े और हमें बहुत ही अच्छी नसीहत की, जिसके कारण लोग रोने लगे और (अल्लाह के डर से भयभीत हो गए) और दिल धड़क उठे। तो एक व्यक्ति ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! लगता है कि यह विदाई भाषन है, तो हमें आप क्या वसीयत करते हैं? तो अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने फरमायाः मैं तुम्हें अल्लाह का तक्वा (भय) और शासक (ख़लीफ़ा व बादशाह) की बात सुनने और उसका आदेश मानने की वसीयत करता हूँ। भले ही वह शासक अप्रिय व्यक्ति (हबशी गुलाम) हो, बेशक मेरे बाद जो व्यक्ति जीवित रहेगा, वह बहुत ज़्यादा लोगों के बीच मतभेद देखेगा, तो तुम लोग मेरी सुन्नत और सही मार्ग पर चलने वाले नेक ख़ुलफा-ए-राशिदीन की सुन्नत को मज़बूती से पकड़े रहना। उसे दृढ़ता से थामे रहना और उसे दाँतों से जकड़े रहना। और धर्म (दीन) में नई चीज़ों से बचो, क्योंकि (दीन में) हर नई चीज़ बिदअ़त है और प्रत्येक बिदअ़त गुमराही (पथ भ्रष्टता) है।''
(अबु दाऊ़द, तिरमिज़ी, इब्ने माजह)
यह वसीयत उन महान वसीयतों में से एक है जिन पर बहुत सारे एह़काम को आधारित होते हैं जिन्हें फ़ुक़हा व ज्ञानियों ने तफ़सी़ल से बयान किया है, और इस वसीयत में ऐसी खबरें हैं जिन पर हर मोमिन को ध्यान रखना चाहिए और -अगर वे उसके समय में पाई जाएं तो- अपने आप को इस तरह तैयार रखे कि वह उनके साथ इस तरह जीवन बसर करे कि अल्लाह की किताब पवित्र क़ुरआन और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की सुन्नत का उल्लंघन और उसकी मुखालफत ना हो।
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) की छोटी और बहुत अच्छी नसीह़तें होती थीं, जिनका याद करना, उनके अर्थ और महान लक्ष्यों व मक़सदों को समझना लोगों के लिए आसान होता था, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम ) को यह शक्ति मिली थी कि वह बहुत कम शब्दों में बहुत ज़्यादा बातें बयान कर देते थे, अल्लाह ने उन्हें आदेश दिया था कि वह लोगों से उनकी बुद्धि व अ़क़्ल के हिसाब से ही बात करें, और उनसे वही बात करें जो उनके लिए लाभदायक व फायदेमंद हो और उनके दिलों पर अस़र करे।
"लगता है कि यह विदाई भाषन है, तो हमें आप क्या वसीयत करते हैं? " और हमें आपके बाद क्या करना चाहिए? लगता है कि वह कुछ और नसीह़त सुनना चाहते थे, या शायद वह इस नसीह़त के अन्दर छुपी हुई -अगर तफ़सील से बयान करदी जाए - बहुत ज़्यादा भलाईयों को समझ गए जिन्हें उनको छोड़ना नहीं चाहिए। अतः आप (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) के साथी जानते थे कि आपकी आदत संक्षिप्त व मुख़्तसर रूप से बात करना है, लेकिन वे कुछ और भी सुनना चाहते थे, इसलिए वे इस बात से डर रहे थे कि कहीं आप इस नसीह़त के बाद खामोश ना हो जाएं, क्योंकि उन्हें आपकी यह नसीह़त बहुत अच्छी लगी, उन्हें बहुत सुकून मिला, अल्लाह के याद से उनके दिल डर गए, उसके डर से उनकी आंखों से आंसू निकल आए, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने उनके सवाल का जवाब देते हुए कहा:
"मैं तुम्हें अल्लाह का तक्वा (भय) और शासक(ख़लीफ़ा व बादशाह) की बात सुनने और उसका आदेश मानने की वसीयत करता हूँ। भले ही वह शासक अप्रिय व्यक्ति (हबशी गुलाम) हो।.......