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(22) लालच से बचो।
ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर -अल्लाह उनसे राज़ी हो- से रिवायत है वह कहते हैं: अल्लाह के रसूल -सल्लल्ललाहु अ़लैहि व सल्लम- ने भाषण देते हुए कहा:
"लालच से बचो। क्योंकि तूमसे पहले के लोगों को लालच ही ने नष्ट (हलाक) किया था। उस (लालच) ने उन्हें कंजूसी का आदेश दिया तो वे कंजूस हो गए। उसने उन्हें रिश्तेदारी खत्म करने का हुक्म दिया तो उन्होंने रिश्तेदारी खत्म करदी। उसने उन्हें भ्रष्टाचारी (आवारगी व एयाशी) का आदेश दिया तो उन्होंने भ्रष्टाचारी की।" (अल अह़कम अल स़ुगरा, सह़ील इसनाद)
पैगंबर मुह़म्मद (सल्लल्ललाहु अ़लैहि वसल्लम) हमें लालच से चेतावनी दे रहे हैं और उसके बुरे अन्जाम बता रहे हैं। अतः वह कहते हैं: "लालच से बचो।" इसका मतलब है तुम इससे होशियार हो जाओ और अपने आप को इससे दुर रखो। अगर लालच तुम्हें जो (माल व दौलत आदि) तुम्हारे पास है उसमें कंजूसी करने, या जो (माल व दौलत आदि) दुसरों के पास है उसकी इच्छा करने, या रिश्तेदारी और दोस्ती खत्म करने का आदेश दे, या वह तुम्हें धार्मिक और सांसारिक कर्तव्यों (दीनी और दुनियवी ज़िम्मेदारियों) को छोड़ने का आदेश दे तो तुम उसकी बात बिलकुल मत मानो। क्योंकि लालच एक गंभीर बिमारी है जिससे दुनिया और आखिरत (परलोक) दोनों में बड़ा घाटा और नुक़सान है।
अल्लाह तआ़ला पवित्र क़ुरआन में फ़रमाता है:
وَمَن يُوقَ شُحَّ نَفْسِهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ और जो अपने नफ़्स के लालच से बचाया गया तो वही कामयाब है।
(सूरह: अल तग़ाबुन, 16)
इसका उल्टा यह है कि जिसे उसके नफ़्स के लालच से नहीं बचाया गया तो वह नाकाम और घाटे में है।