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(25) (दुसरों को) जगह दो अल्लाह तुम्हें (जन्नत व स्वर्ग में) जगह देगा।
ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर -अल्लाह उनसे राज़ी हो- से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने फ़रमाया:
तुम में से को भी किसी को उसकी जगह से उठाकर उसकी जगह ना बैठे, बल्कि तुम्हें एक दुसरे के लिए कुशादगी पैदा करना चाहिए और स्थान व जगह देना चाहिए, अल्लाह तुम्हें (जन्नत व स्वर्ग में) जगह देगा।
मुसलमान को जिन महान आदाब का हर जगह ख्याल रखना चाहिए और उन्हें लोगों में फै़लाना चाहिए उन्हीं में से बैठक व सभा के आदाब व नियम भी हैं, और बैठक के ये आदाब पांच बुनियादी नियमों पर आधारित हैं। और इनके अलावा उप-नियम उन्हीं में शामिल हैं।
जो ह़दीस़ें बैठक के अदब को बयान करने के लिए आई हैं वे अल्लाह के उस फ़रमान की तफ़सी़ल व बयान हैं जो सूरह अल मुजादलह में है, जिसका मतलब यह है: ऐ ईमान वालों! जब तुम से मजलिसों (बैठकों व सभाओं) में जगह देने के लिए कहा जाए, तो जगह दो, और जब तुम से कहा जाए उठ खड़े हो, तो उठ खड़े हो, अल्लाह तुम्हारे ईमान वालों के और उनके जिनको इ़ल्म (ज्ञान) दिया गया दर्जे बलन्द फ़रमाएगा फ़रमाएगा और अल्लाह को तुम्हारे कामों की ख़बर है। (सूरह: अल मुदालह, आयत संख्या: 11)
यह आयत ज़िक्र की मजलिसों के बारे में उतरी जैसे कि ह़ज़रत क़तादह आदि ने कहा: जब वे किसी को आते देखते तो मजलिसों में इस डर से कि कहीं पैगंबर (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) से दुर ना हो जाएं एक दुसरे से मिलकर बैठते थे, तो अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) ने उन्हें दुसरे लोगों को जगह देने का आदेश दिया।
इसका मतलब यह: ऐ वे लोगों जो अल्लाह पर सच्चे तरीक़े से ईमान रखते हो! जब तुम से मजलिसों व बैठकों में खुल कर बैठने के लिए कहा जाए ताकि तुम्हारे दुसरे भाईयों के लिए जगह बन जाए और वे बैठ सकें तो तुम इसका पालन करो और खुलकर बैठो। क्योंकि अगर तुम ऐसा करोगे तो अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी रह़मत और दया को ,और जन्नत (स्वर्ग) में तुम्हारे घरों को और जो चीज़ तुम्हें प्यारी हो उसे फ़ैला देगा और तुम्हारे लिए खोल देगा।