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(140) अपने आप को बद्दुआ (शाप) न दो।

230 2020/09/22
(140) अपने आप को बद्दुआ (शाप) न दो।

عَنْ جَابِرِ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ – أَنَّ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ  قَالَ:

"لَا تَدْعُوا عَلَى أَنْفُسِكُمْ وَلَا تَدْعُوا عَلَى أَوْلَادِكُمْ، وَلَا تَدْعُوا عَلَى أَمْوَالِكُمْ، لَا تُوَافِقُوا مِنْ اللَّهِ تَبَارَكَ وَتَعَالَى سَاعَةَ يُسأَلُ فِيهَا عَطَاءٌ فَيَسْتَجِيبَ لَكُمْ".

तर्जुमा: ह़ज़रत जाबिर रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:" अपने आप को बद्दुआ (शाप) न दो। अपनी औलाद को बद्दुआ न दो। अपने खादिमों (नौकरों) को बद्दुआ न दो। और न ही अपने धन को बद्दुआ दो। क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि वह अल्लाह की तरफ से कबूलियत की घड़ी हो तो तुम्हारी बद्दुआ़ कबूल हो जाए।"

इंसान फितरती तौर पर जल्दबाज़, अक्सर नाशुक्रा (कृतघ्न) और बहुत बड़ा झगड़ालू है यहाँ तक कि खुद के साथ भी। कभी-कभी मामूली सी बात पर बहुत ज्यादा गुस्सा कर बैठता है और गुस्सा दिलाने वाले व्यक्ति पर भड़क जाता है यहाँ तक कि वह उसकी सारी भलाईयों को भुला देता है। उसका कुछ भी सम्मान नहीं करता है बल्कि उसे गालियाँ देता है और उसको तबाही और बर्बादी की बद्दुआ़एं देता है। और कभी-कभार तो उस पर इतना गुस्सा सवार हो जाता है कि अपने आप को ही ऐसी ऐसी बद्दुआ़एं देता है कि होश में आ जाए तो बड़ा शर्मिंदा हो।

गुस्सा इंसान की बुद्धि छीन लेता है। उसके होश व हवास खो देता है और उसे पूरे तौर पर अपने बस में करके उसे कठपुतली बना देता है। फिर तो वह ऐसे ऐसे काम करता है कि अपने आपको तबाही और बर्बादी के गडडे में डाल देता है।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम हमसे अपनी बहुत ज्यादा मोहब्बत और प्यार की वजह से इरशाद फरमा रहे हैं कि अपने आपको बद्दुआ़ न दो। यानी गुस्सा या मायूसी या तकलीफों से परेशान हो कर कभी अपने लिए बुराई या बर्बादी की न दुआ़ करो। क्योंकि एक सच्चा मोमिन अपने नफ्स को अपने नफ्स से ही मारता है। ऐसे नफ्स से जो हिम्मत और हौसले और अल्लाह पर भरोसे से भरपूर होता है। और अपने ऐसे ही नफ्स के द्वारा अपने नफ्स का उन आफतों से इलाज करता है जो ईमान की साफ़-सुथराई और विश्वास की चमक को गंदा कर देती हैं।

कोई भी अकलमंद व्यक्ति कभी अपने आप या अपनी औलाद को बद्दुआ न देगा भले ही वे कितने ही बुरे हालात में फंसा हो। भले ही उसे कितना ही ऐसा लगता हो कि गुस्सा केवल ऐसा करने से ही खत्म होगा।

तथा इस ह़दीस़ शरीफ से यह भी सबक मिलता है कि बंदे को चाहिए कि वह हमेशा अपने अल्लाह की बारगाह में अदब और एहतराम से पेश आए। लिहाज़ा वह उससे ऐसी चीज न मांगे जिसे वह अपनी सलामती के समय अपने लिए या अपनी औलाद या अपने धन के लिए पसंद नहीं करता हो। लिहाज़ा अगर वह अपने आप को या अपने बच्चों को या अपने धन को बद्दुआ़ दे तो यह एक तरह से अल्लाह की बारगाह में बेअदबी से पेश आना है जिसमें बहुत ही बड़ा गुनाह है जिसका आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। क्योंकि इस संसार को पैदा करने वाले, सर्वशक्तिमान, अकेले पूजा के योग्य अल्लाह की बारगाह में बेअदबी से बढ़कर कोई गुनाह नहीं हो सकता।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day