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(144) अल्लाह ने मुझे वह़ी फरमाई (संदेश भेजा) कि तुम लोग इनकिसारी (खाकसारी, विनम्रता, विनयशीलता) अपनाओ।
عَنْ عِيَاضِ بْنِ حِمَارٍ– رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ – أَنَّ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
"إِنَّ اللَّهَ أَوْحَى إِلَيَّ أَنْ تَوَاضَعُوا حَتَّى لَا يَبْغِيَ أَحَدٌ عَلَى أَحَدٍ وَلَا يَفْخَرَ أَحَدٌ عَلَى أَحَدٍ".
तर्जुमा: ह़ज़रत इ़याज़ बिन ह़िमार रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:"अल्लाह ने मुझे वह़ी फरमाई (संदेश भेजा) कि तुम लोग इनकिसारी (खाकसारी, विनम्रता, विनयशीलता) अपनाओ यहाँ तक कि कोई पर ज़्यादती न करे और न ही कोई किसी पर घमंड करे।"
यह वसियत सभी प्रकार की भलाईयों को शामिल है। अल्लाह ने अपने प्यारे नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को इसका आदेश दिया, इसे पूरी तरह उनके दिल में बिठाया, और बहुत से भाषणों और नसीहतों में इसे आपकी ज़ुबान पर जारी किया। लिहाज़ा आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इसे अपने व्यक्तित्व और अपनी इबादत में अपनाया, और अपने साथ, लोगों के साथ और अल्लाह के साथ संबंधों की कुंजी बना लिया। यह उन सभी वसियतों और विशेषताओं में सबसे महान वसियत व विशेषता है जिन्हें अल्लाह के प्यारे बंदे अपनाते हैं। अतः इसी से वे अल्लाह की नज़दीकी, उसकी मोहब्बत और उसकी खुशी के बुलंद स्थान पर पहुंचते हैं। क्योंकि इनकिसारी (खाकसारी, विनम्रता, विनयशीलता) अल्लाह की शुध्द बंदगी का सच्चा अनुवाद है। वह इंसान के अपने आपको पहचानने और अपने अल्लाह के सामने अपनी हैसियत को जानने का पक्का सबूत है।
सच्ची बंदगी इसमें है कि बंदा अपने अल्लाह के सामने खाकसारी (खाकसारी, विनम्रता, विनयशीलता) बर्ते यहाँ तक कि वह किसी इबादत व आज्ञाकारिता (फरमाबरदारी) में अपना कोई गुण न समझे और न ही सवाब का अपने लिए कोई अधिकार समझे। बल्कि उसके दिल में यह रहे कि: ए अल्लाह! आगर तू मुझे सवाब दे तो यह तेरी कृपा है। और अगर सज़ा दे तो यह तेरा न्याय है।
जब कोई बंदा कमाल के दर्जे चढ़ता है तो वह दुनिया से बिलकुल अलग हो जाता है और जो भी दुनिया की नेमत उसके पास आती-जाती है उसकी परवाह नहीं करता है। बल्कि उसका मकसद केवल अल्लाह की खुशी हासिल करना होता है।
इस वसियत में इनकिसारी (खाकसारी, विनम्रता, विनयशीलता) का मतलब लोगों के सामने इनकिसारी करना है। क्योंकि इसके आखिर में नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "यहाँ तक कि कोई पर ज़्यादती न करे और न ही कोई किसी पर घमंड करे।"
बंदा उस समय तक अल्लाह की एकता को मानने वाला नहीं हो सकता जब तक कि वह उसके साथ इनकिसारी से पेश न आए। क्योंकि यह कैसे हो सकता है कि वह उसके लिए एकता को भी माने और फिर उसके विशेष गुण यानी बुलंदी में उसका साझा भी करे।
याद रहे कि जिस इनकिसारी (खाकसारी, विनम्रता, विनयशीलता) की मांग है वह यह है जो किसी तरह के अपमान का कारण न हो, न ही उससे किसी के सम्मान पर हमला हो और न ही उसमें किसी तरह की बनावट हो।
अल्लाह उस समय तक दिलों में प्यार व मोहब्बत पैदा नहीं करता जबतक की लोग आपस में इनकिसारी (खाकसारी, विनम्रता, विनयशीलता) न करें, जब तक कि हर एक अच्छाई-बुराई और खुशी-गम में अपने ऊपर अपने भाई के अधिकार को न जान ले, जब तक कि लोग एक दूसरे पर अत्याचार, घमंड, और वंश पर गूरूर करना न छोड़ दें, जब तक कि वे अपने दिलों को अल्लाह की मोहब्बत पर इकट्ठा न कर लें और जब तक कि वे उसकी बुलंदी को मानते हुए आपस में इनकिसारी (खाकसारी, विनम्रता, विनयशीलता) न दिखाएं।
जो अल्लाह की बारगाह में इनकिसारी (खाकसारी, विनम्रता, विनयशीलता) बरतता है वह प्यारा व बुलंद हो जाता है। और जो लोगों के साथ इनकिसारी (खाकसारी, विनम्रता, विनयशीलता) बरतता है वह उनके दिलों पर राज करता है। और जो अल्लाह के सामने घमंड करता है तो अल्लाह उसे धंसा देता है और सख्त बदला लेता है। और जो लोगों पर घमंड करता है वह ज़लील व रुसवा और खुजली वाले ऊंट जैसा हो जाता है जिसे अलग-थलग फेंक दिया जाता है।