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(145) दुनिया में इस तरह रहो जैसे कि तुम यात्री (अजनबी) या रास्ता पार करने वाले हो।
عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا قَالَ:
أَخَذَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ بِمَنْكِبِي فَقَالَ: "كُنْ فِي الدُّنْيَا كَأَنَّكَ غَرِيبٌ أَوْ عَابِرُ سَبِيلٍ".
وَكَانَ ابْنُ عُمَرَ يَقُولُ:
إِذَا أَمْسَيْتَ فَلَا تَنْتَظِرْ الصَّبَاحَ، وَإِذَا أَصْبَحْتَ فَلَا تَنْتَظِرْ الْمَسَاءَ، وَخُذْ مِنْ صِحَّتِكَ لِمَرَضِكَ، وَمِنْ حَيَاتِكَ لِمَوْتِكَ.
तर्जुमा: ह़ज़रत अ़ब्दुल्लह बिन उ़मर रद़ियल्लाहु अ़न्हुमा बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने मेरा कंधा पकड़कर इरशाद फ़रमाया: "दुनिया में इस तरह रहो जैसे कि तुम यात्री (अजनबी) या रास्ता पार करने वाले हो।" और ह़ज़रत अ़ब्दुल्लह बिन उ़मर रद़ियल्लाहु अ़न्हुमा कहा करते थे: "शाम हो जाए तो सुबह का इंतजार मत करो। और सुबह हो जाए तो शाम का इंतजार मत करो। अपनी बीमारी से पहले तंदुरुस्ती में और मौत से पहले ज़िन्दगी में ही नेक काम करलो।"
दुनिया आखिरत की खेती और उसका रास्ता है। अगर मुसलमान उसमें ऐसे ही जिंदगी बसर करे तो उसकी दुनिया बहुत अच्छी रहेगी तथा उसमें उसकी ज़िन्दगी एक नैमत व खुशी की ज़िन्दगी होगी चाहे थोड़ी हो या ज़्यादा। लेकिन जितनी ज्यादा होगी उसके लिए उतना ही बेहतर होगा। क्योंकि ह़दीस़ पाक में है: "तुम में सबसे बेहतर वह है जिसकी उम्र लंबी हो और अच्छा काम करे। और तुम में सबसे बुरा वह है जिसकी उम्र लंबी हो लेकिन बुरा काम करे।"
लिहाज़ा सबसे बेहतर वह शख्स है जो इस दुनिया में रहकर आखिरत को अपना मकसद बनाए रखे। मोमिन रहकर अपनी सारी कोशिश उसी में लगाए रखे। दुनिया में इस तरह जिंदगी बसर करे कि उसकी कोई चाहत न रखे बल्कि उसे रास्ता समझे जो उसे जन्नत से नज़दीक और जहन्नम से दूर कर देगा। उसकी नजर में धन ढलती छांव और उधार ली हुई वापस करने वाली चीज और उस पेड़ की तरह हो जिससे कभी-कभार वह छांव लेता है। और अपने आपको हमेशा यात्रा में समझे। क्योंकि वह मौत की तरफ जा रहा है और आज या कल मर ही जाएगा। और अकलमंद के लिए कल बहुत करीब और मौत उसके के जूते के तसमे (फीते) से भी ज्यादा नजदीक है।
अकलमंद वह है जो दुनिया की भीड़ भाड़ में मौत को न भूले। क्योंकि मौत की भूल इंसान को अल्लाह के रास्ते से भटका देती है और दुनिया और आखिरत में उसकी मंजिल तक पहुंचने में उसके आड़े आ जाती है।
दुनिया में अजनबी या यात्री बनकर रहने के दो मतलब हैं:
पहला यह कि वह हमेशा अपने दिमाग में रखे कि वह अपने अल्लाह की तरफ वापस जा रहा है जैसा कि अजनबी या यात्री अपने शहर की तरफ वापस जाता है भले ही दोनों की वापसी में फर्क है। लिहाज़ा वह अपने आप से पूछे कि वह अपने अल्लाह की तरफ क्या लेकर वापस जा रहा है या कैसी हालत में वापस जा रहा है, क्या नेक काम करके वापस जा रहा है जो उसे उसके अल्लाह से नजदीक करेगा और उसके उस दिन अल्लाह के प्यारे बंदो के साथ उठने का कारण बनेगा जिसमें कि अल्लाह नबियों और उन पर ईमान लाने वालों को रुसवा न करेगा या फिर उसके अलावा दूसरी सूरत में वापस जा रहा है जिसकी वजह से उसका ठिकाना भी उस जैसे बुरे और गुनहगारों जैसा होगा।
दुनिया में अजनबी या यात्री बनकर रहने का दूसरा मतलब यह है कि वह दुनिया से अलग-थलग रहे। यह इस पर निर्भर करता है कि यह दुनिया में देर तक रहने की आरजू न रखे, उसकी ख्वाहिशों से बचें, केवल उतने ही पर संतुष्ट रहे जिससे वह जिंदा रह सके और जो बदन छुपा सके। नेमतों पर बहुत ज्यादा शुक्र अदा करे। नेक कामों में दिल खोलकर माल खर्च करे। और जो दुनिया और आखिरत में फायदेमंद हो बस उसी में अपनी जिंदगी लगा दे। क्योंकि हमारा धर्म हमें यह आदेश देता है कि हम जरूरत के हिसाब से बिना कमी-ज़्यादती के जायज़ तरीकों से इस दुनिया से अपना हिस्सा हासिल करें।
और सच्चा मोमिन वह है जो इस दुनिया में उम्मीद और डर के दरमियान रहते हुए अपनी जिंदगी बसर करे, इस दुनिया की जायज़ चीजों से जरूरत के हिसाब से आनंद ले। अपने आपको उस दिन के लिए तैयार करे जिसमें कोई किसी को फायदा न देगा। अगर दुनिया उसे हासिल हो जाए तो उससे धोखा न खाए और उसी में मगन न हो जाए। क्योंकि वह बहुत जल्द ही उसे रुला देगी और उसका बुरा हाल कर देगी।