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(148) उस (चोर) से अ़ज़ाब को हल्का मत करो।
عَنْ عَطَاءٍ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ – عَنْ عَائِشَةَ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا – قَالَتْ:
سُرِقَ لَهَا شيء فَجَعَلَتْ تَدْعُو عَلَيه، فَقَالَ لَهَا رسول الله صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "لَا تُسَبِّخِي عَنْهُ".
तर्जुमा: ह़ज़रत अ़त़ा रद़ियल्लाहु अ़न्हु ह़ज़रत आ़एशा से बयान करते हैं कि ह़ज़रत आ़एशा ने कहा कि उनकी कोई चीज़ चोरी हो गई। तो वह उसके चुराने वाले को बद्दुआ़ करने लगीं। तो उनसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "उस (चोर) से अ़ज़ाब को हल्का मत करो।"
एक सच्चा मुसलमान लानत करने वाला और बुरी बात या गालीगलौज करने वाला नहीं होता है, न ही बुराई का बदला बुराई से देता है और न ही किसी दुनियावी मामले की वजह से गुस्सा करता है जब तक कि उसके धर्म या उसके सम्मान से उसका संबंध न हो या जान व माल और औलाद को सख्त नुकसान न पहुंचे। और जब गुस्सा करता भी है तो बहुत जल्द माफ कर देता है। और जब कोई जाहिल या बेवकूफ आदमी उससे भिड़ता है तो उससे नरम बात करता है जिसमें अमन और सलामती झलकती होती है।
अगर मोमिन ठीक से यह पहचान ले कि अल्लाह सबसे ताकतवर व शक्तिशाली है और सबसे बदला लेने वाला है तो वह अपना मामला अपने अल्लाह पर छोड़ दे और ज़ालिम (अत्याचार करने वाला) को बद्दुआ़ न दे। क्योंकि यकीनन उसका ज़ुल्म (अत्याचार) उसे बर्बाद कर देगा भले ही कुछ समय के बाद करे। लिहाज़ा यह अक्लमंदी नहीं है कि बंदा ज़ालिम के लिए किसी प्रकार के बदले को खुद चुने और यह कहे कि: "ए अल्लाह! तू उसके साथ ऐसा ऐसा कर।" क्योंकि इसमें अल्लाह के साथ एक तरह की बेअदबी है। हाँ अगर उसे अपना गुस्सा और तकलीफ कम ही करनी हो तो यूँ कहे: "मुझे अल्लाह ही काफी है और वही सबसे अच्छा मददगार है।" क्योंकि इससे उसका गुस्सा ठंडा हो जाएगा, उसकी तकलीफ कम हो जाएगी और जल्द ही अल्लाह उस पर अत्याचार करने वाले से उसका बदला लेगा।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम इस धरती के सबसे बड़े शिक्षक (उस्ताद) हैं जो अपनी शिक्षाओं द्वारा दिलों को पाक-साफ करते हैं, अखलाक को मजबूत बनाते हैं और पुरुषों और महिलाओं को ऐसे संवारते हैं कि जिसके द्वारा एक मुसलमान अल्लाह की नजदीकी और उसकी मोहब्बत का एक महान स्थान हासिल कर लेता है।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के कहने:"उससे अ़ज़ाब को हल्का न करो।" का मतलब है उससे अ़ज़ाब और सजा को कम न करो जैसा कि हमने ऊपर बयान किया।
इस (और इस जैसी) ह़दीस़ शरीफ से ही नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के सह़ाबा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम ने अत्याचार और बुरे व्यवहार करने वाले को अच्छी तरह माफ करना सीखा।