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(149) बराबर बराबर हो जाओ और जुदा-जुदा न हो ताकि तुम्हारे दिल जुदा न हों।
عَنْ أَبِي مَسْعُودٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ:
كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَمْسَحُ مَنَاكِبَنَا فِي الصَّلَاةِ وَيَقُولُ: "اسْتَوُوا وَلَا تَخْتَلِفُوا، فَتَخْتَلِفَ قُلُوبُكُمْ، لِيَلِنِي مِنْكُمْ أُولُو الْأَحْلَامِ وَالنُّهَى، ثُمَّ الَّذِينَ يَلُونَهُمْ، ثُمَّ الَّذِينَ يَلُونَهُمْ." قالَ أبو مَسْعُودٍ: "فأنْتُمُ اليومَ أشَدُّ اخْتِلَافًا".
तर्जुमा: ह़ज़रत अबू मसऊ़द रद़ियल्लाहु अ़न्हु कहते हैं: अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम नमाज़ में (हमें बराबर बराबर खड़ा करने के लिए) हमारे कंधों को हाथ लगा कर इरशाद फरमाते:"बराबर बराबर हो जाओ और जुदा-जुदा न हो ताकि तुम्हारे दिल जुदा न हों। तुम में से पक्की बुद्धि वाले अकलमंद मुझसे मिलकर खड़े हों, फिर उनके बाद वे जो (अकलमंदी में) उनके करीब हों फिर वे जो उनके क़रीब हो।" ह़ज़रत अबू मसऊ़द फरमाते हैं:" और आज तुम एक दूसरे से सबसे ज्यादा इख्तिलाफ रखते हो।"
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम नमाज़ में सफों को बराबर बराबर रखने का बहुत ख्याल रखते थे। क्योंकि जमाअ़त के साथ नमाज़ दिलों की एकता और ईमानी भाईचारे का बेहतरीन सबूत है। लिहाज़ा जितनी ज्यादा सफें बराबर होंगी जैसे कि ठोस इमारतें उतने ही ज्यादा दिल प्यार व मोहब्बत, दया और इमानदारी पर एक होंगे।
नमाज़ इस्लाम धर्म का सुतून (स्तंभ, पिलर) है। यह ईमान के सही होने और विश्वास के पक्का होने का बेहतरीन सुबूत है। लिहाज़ा मुसलमानों का इसमें इकट्ठा होना सबसे बेहतर इकट्ठा होना है। क्योंकि यह उन फरिश्तों के इकट्ठा होने की तरह है जो आसमान में नमाज़ के लिए सफ बांधते हैं। लिहाज़ा नमाज़ के आखिर तक खड़े होने में जितने ज्यादा कंधे से कंधा मिलाकर सीधे खड़े होंगे उतने ही ज्यादा हम उन फरिश्तों के नजदीक और उनकी तरह होंगे।
लिहाज़ा नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का फरमान: "बराबर बराबर हो जाओ और जुदा-जुदा न हो।" आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के कार्य पर ज़ोर देता है। क्योंकि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम यह कहते जा रहे थे और साहा़बा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम के कंधों को छू रहे थे हालांकि कंधों को छूना ही सफों को बराबर-बराबर करने के आदेश के लिए काफी था लेकिन इसके बावजूद आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने अपनी प्यारी जुबान से कहकर इस का आदेश दिया ताकि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का कार्य ओर जोरदार व मजबूत हो जाए।
सफ की बराबरी का मतलब है सीधे एक दूसरे से मिल कर खड़े हो जाना कि सभी के कदम (पैर) बराबर-बराबर हो जाएं और कंधे मिल जाएं।
नमाज में सफों की बराबरी का मकसद माफ करने और प्यार और मोहब्बत करने में दिलों का मिलना है। तथा नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
"सफें बराबर यानी सीधी रखो। क्योंकि सफें बराबर रखना नमाज़ के पूरा करने में शामिल है।"
मतलब यह है कि जमाअ़त के साथ नमाज़ सही और मुकम्मल तौर पर उसके बगैर पूरी नहीं होती। और पूरे तौर पर जमाअ़त का सवाब केवल उसी को मिलता है जो नमाज़ के शुरू से लेकर आखिर तक सफ में सीधे व बराबर खड़े होने के ख्याल रखता है।