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(154) मुझ से (दुसरों तक) पहुंचाओ भले एक आयत ही सही।
عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
"بَلِّغُوا عَنِّي وَلَوْ آيَةً، وَحَدِّثُوا عَنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَلَا حَرَجَ، وَمَنْ كَذَبَ عَلَيَّ مُتَعَمِّدًا فَلْيَتَبَوَّأْ مَقْعَدَهُ مِنْ النَّارِ".
तर्जुमा: ह़ज़रत अब्दुल्ला बिन अ़म्र रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:" मुझ से (अल्लाह की आयतें दुसरों तक) पहुंचाओ भले एक आयत ही सही। और बनी इसराइल से बयान करो इसमें कोई हर्ज नहीं। और जिसने मुझ पर जानबूझकर झूठ गढ़ा तो उसने जहन्नुम में अपना ठिकाना बना लिया।"
अल्लाह तआ़ला ने अपने प्यारे नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को ऐसे धर्म के नियम और सिद्धांत सिखाने वाला बनाकर भेजा जिसे उसने अपने बंदों के लिए पसंद फरमाया और जिस पर उसने उन्हें पैदा किया। तथा अच्छे अखलाक और महान विशेषताओं को पूरा करने वाला, बुराई पर उकसाने वाले दिलों को अच्छा बनाने वाला और उन्हें उस सीधे रास्ते पर लाने वाला जो उस अल्लाह का रास्ता है जो सारे आसमानों और जो कुछ उनमें है उसका और सारी जमीन और जो कुछ उसने है उसका मालिक है, और दिलों को हर उस चीज से पवित्र बनाने वाला बनाकर भेजा जो उनकी साफ-सुथराई को गंदा कर देती है और उसकी सलामती को प्रभावित करती है। नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के फरमान: "मुझसे (अल्लाह की आयतें) पहुंचाओ भले एक आयत ही सही।" का मतलब है कि तुमने जो बात मुझसे सुनी या जो मुझे करते देखा वह अपने बाद वाले दूसरे ऐसे लोगों को बताओ कि जिन्होंने वह बात मुझसे नहीं सुनी जो तुमने सुनी या मुझे वह करते नहीं देखा जो तुमने देखा। क्योंकि यह तुम्हारे ऊपर और हर सुनने वाले के ऊपर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
इस ह़दीस़ पाक में आयत से मुराद क़ुरआन की आयत है जैसा कि जाहिर है। क्योंकि क़ुरआन ही ऐसी किताब है जिसमें अल्लाह ने अपने बंदों की जरूरत की हर चीज बयान कर दी है। लिहाज़ा जिसने भी जो कुछ भी क़ुरआन पाक से याद किया भले ही एक आयत ही सही, तो उसे दूसरों तक पहुंचाना एक पवित्र जिम्मेदारी है।
ह़दीस़ शरीफ भी इस आदेश में शामिल है। क्योंकि वह क़ुरआन पाक का बयान है और उसे कुरान से अलग नहीं किया जा सकता है। बल्कि बहुत से उ़लमा ए किराम ने तो क़ुरआन और ह़दीस़ को एक ही संदर्भ माना है।
यहाँ पर हम ह़दीस़ शरीफ सुनकर दूसरों तक पहुंचाने की फजीलत के बारे में एक ह़दीस़ पाक बयान करना चाहते हैं। अतः नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
"अल्लाह उस व्यक्ति को तरोताजा रखे जो मेरी बात को सुने और उसे महफूज करले और दूसरों तक पहुंचाए। क्योंकि बहुत से ज्ञान की समझ रखने वाले ज्ञान को उस तक पहुंचा देते हैं जो उनसे ज्यादा सूझबूझ रखते हैं।"
दूसरों तक पहुंचाना इस पवित्र दुआ की शर्त है। लिहाज़ा अल्लाह ऐसे व्यक्ति को तरोताजा नहीं रखेगा जो कि ज्ञान छुपाए। उ़लमा ए किराम जैसा कि हम जानते हैं नबियों के वारिस हैं और लोगों को अल्लाह की तरफ बुलाने में उन्हीं के नक्शे कदम पर चलते हैं। लिहाज़ा उन्हें चाहिए कि वह जो भी सुनें उसे लोगों तक पहुंचाएं और सुनकर समझे हुए पर अमल भी करें।
इस वसियत के आखिर में जानबूझकर नबी करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम पर झूठ गढ़ने से सख्त चेतावनी दी गई है। इसी वजह से सह़ाबा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम इस मामले में बहुत ज्यादा सावधानी बरतते थे। और केवल वही ह़दीस़ लोगों से बयान करते थे कि जिसका उन्हें पूरा विश्वास होता की उन्होंने वह ह़दीस़ शरीफ खुद नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से सुनी है या किसी ऐसे ईमानदार और भरोसेमंद व्यक्ति से सुनी है जिसने नबी करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से सुनी हो।