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(156) खाओ-पियो, पहनो और सदका़ (दान) दो बिना फिजूलखर्ची व घमंड किये।
قَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:
"كُلُوا وَاشْرَبُوا وَالْبَسُوا وَتَصَدَّقُوا فِي غَيْرِ إِسْرَافٍ وَلَا مَخِيلَةٍ".
तर्जुमा: नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "खाओ-पियो, पहनो और सदका़ दो बिना फिजूलखर्ची व घमंड किये।"
अल्लाह ने अपने बंदो के लिए अच्छी व पवित्र चीजे जायज़ की हैं और गंदी व खबीस चीजें नाजायज़ की हैं। तथा उसने अपने बंदो को ऐसा कुछ करने के लिए नहीं कहा है जो उनके लिए दुश्वार हो। अल्लाह तआ़ला इरशाद फ़रमाता है:
يَا أَيُّهَا النَّاسُ كُلُوا مِمَّا فِي الْأَرْضِ حَلَالًا طَيِّبًا وَلَا تَتَّبِعُوا خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ ۚ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِينٌ
(सूरह अल-बक़रह, आयत संख्या:168)
तर्जुमा: ऐ लोगों! खाओ जो कुछ ज़मीन में जायज़ पवित्र है। और शैतान के नक्शे कदम पर मत चलो, यकीनन वह तुम्हारा खुला दुश्मन है।
एक दूसरी जगह अल्लाह तआ़ला इरशाद फ़रमाता है:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُلُوا مِن طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ وَاشْكُرُوا لِلَّهِ إِن كُنتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ
(सूरह अल-बक़रह, आयत संख्या:172)
तर्जुमा:ऐ ईमान वालों! खाओ हमारी दी हुई साफ़-सुथरी चीजें। और अल्लाह का शुक्र करो अगर तुम उसी को पूजते हो।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की उल्लेखित वसियत इन्हीं और इन जैसी दूसरी आयतों का अनुवाद और स्पष्टता है। तो जिसे अल्लाह ने अपने बंदो के लिए जायज़ किया है उसे नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने भी जायज़ बताया है। लिहाज़ा इरशाद फ़रमाया: "खाओ-पियो और पहनो।" तथा लोगों को ज़रूरी तौर पर सदका़ करने का भी आदेश दिया। क्योंकि सदका़ अल्लाह के गुस्से को दूर करता है और लोगों से कंजूसी की आदत खत्म करता है तथा उन्हें जहन्नुम के अ़ज़ाब से बचाएगा।
प्यारे भाईयों! याद रखो कि यह बहुत ही बड़ी आफत और मुसीबत है कि कपड़ों वगैरा या किसी ऐसी चीज में पुरुष महिला जैसा बने और महिला पुरुष जैसा बने की जिससे वे अपनी तबियत और फितरत से निकल जाएं और अपने हाल चाल में दूसरे की तरह हो जाएं। तथा यह भी याद रखो कि जिस सदक़े बाद न एहसान जताया जाए और न ही लेने वाले को तकलीफ दी जाए उसी में अल्लाह की खुशी है, मुसलमान की दुनिया की मुसीबत और आखिरत के आजाब से निजात (मुक्ति) है, उसी में माल की सुरक्षा, बीमारियों का इलाज, बुरी नजर और हसद व या जलन का बचाव और परेशानी व गम से छुटकारा है।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उल्लेखित ह़दीस़ में फिजूलखर्ची और घमंड से बड़ी अक्लमंदी और समझदारी के साथ मना फ़रमाया। क्योंकि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इसे (यानी फिजूलखर्ची और घमंड न करने) को खाने-पीने और पहनने के अधिकार की शर्त बताया है। क्योंकि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "खाओ-पियो, पहनो और सदका़ दो बगैर फिजूलखर्ची व घमंड किये।"