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(158) तुम लोग इम्मअ़ह यानी हर एक के पीछे चलने वाले न बनो।
عَنْ حُذَيْفَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:
"لَا تَكُونُوا إِمَّعَةً تَقُولُونَ: إِنْ أَحْسَنَ النَّاسُ أَحْسَنَّا، وَإِنْ ظَلَمُوا ظَلَمْنَا، وَلَكِنْ وَطِّنُوا أَنْفُسَكُمْ: إِنْ أَحْسَنَ النَّاسُ أَنْ تُحْسِنُوا، وَإِنْ أَسَاءُوا فَلَا تَظْلِمُوا".
तर्जुमा: ह़ज़रत ह़ुज़ैफह रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:" तुम लोग इम्मअ़ह यानी हर एक के पीछे चलने वाले न बनो कि कहो कि अगर लोग हमारे साथ भलाई करेंगे तो हम भी भलाई करेंगे और अगर हमारे ऊपर जुल्म करेंगे तो हम भी जुल्म करेंगे। बल्कि अपने आप को इस बात पर तैयार करो कि अगर लोग तुम्हारे साथ है एहसान करें तो तुम भी एहसान करो और अगर बुरा व्यवहार करें तो तुम अत्याचार न करो।"
इंसान अपने इरादे से हरकत करने वाला है जैसा कि फिलॉसफ़ी के माहिरीन इसकी विशेषता बयान करते हैं। इस विशेषता का मतलब यह है कि इरादा ही इंसान और जानवर के दरमियान अंतर पैदा करता है। लिहाज़ा अगर इंसान से इरादा छीन लिया जाए तो वह बिना पहचान और नाम के केवल एक कठपुतला बनकर रह जाएगा और फिर ऐसी सूरत में वह बिना सोचे समझे हरकत करेगा। उसे यह नहीं पता होगा कि भी क्या कर रहा है क्यों कर रहा है और कैसे कर रहा है। तो वह अपनी बुद्धि के नहीं बल्कि अपनी ख्वाहिश के मुताबिक काम करेगा और फिर वह बिना किसी रोकथाम के और बिना होशो हवास के अपनी ख्वाहिशें को पूरा करने की कोशिश करेगा।
इब्ने मनज़ूर की किताब "लिसान अल-अरब" में है कि " الإمعة والإمعّ" (अल-इम्मअ़ह, व अल-इम्मअ़) का मतलब है: वह व्यक्ति जिसकी खुद कोई राय न हो और न ही खुद का कोई इरादा हो। हर एक की राय अपनाता फिरे और किसी एक चीज पर अटल न रहे।
लिहाज़ा मुसलमान ऐसा नहीं हो सकता है। बल्कि वह तो बेपनाह अकलमंद और बुद्धिमान होता है। वह अपनी भावनाओं को काबू में रखता है और जब देखता है कि उसका नफ्स गड़बड़ी कर रहा है और भलाई के सीधे रास्ते से हट रहा है तो फौरन उसकी लगाम कसता है।।
सच्चा मुसलमान वह है जिसकी ख्वाहिश उसके धर्म के मुताबिक हो। उसके लिए दुनिया सिर्फ आखिरत की खेती हो। अपने हर मामले में क़ुरआन और सुन्नत को अपना मार्गदर्शक और रहनुमा बनाता हो। उसका मकसद सिर्फ अल्लाह की रजामंदी हासिल करना हो। उसी के आधार पर उसके सारे मामले हों न की ख्वाहिश के आधार पर। वह लोगों के साथ भलाई करता है चाहे वह उसके साथ भलाई करें या न करें। बल्कि जो उसके साथ बुराई करे तो वह इबादत और अल्लाह की रज़ा के लिए उसके साथ उस व्यक्ति से ज्यादा भलाई करता है जिसने उसके साथ भलाई की हो।
याद रखें कि मुसलमान अपने हर कहने-करने और अखलाक में लोगों के लिए आदर्श की हैसियत रखता है। अपने ज्ञान से उनकी रहनुमाई करता है और अपनी नर्मी व कोमलता से उनके दिलों पर राज करता है। इस वसियत से हमें यह सीख मिलती है कि अगर हमारा नफ्स गड़बड़ी करे तो हम उसे कैसे लगाम पहनाएं और कैसे उसे भलाई के रास्तों की तरफ ले जाएं ताकि हर हाल में सिर्फ भलाई और एहसान करना ही उसकी आदत हो जाए।