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(160) कोई अपने भाई की तरफ हथियार न दिखाए।
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
"لَا يُشِيرُ أَحَدُكُمْ عَلَى أَخِيهِ بِالسِّلَاحِ فَإِنَّهُ لَا يَدْرِي لَعَلَّ الشَّيْطَانَ يَنْزِعُ فِي يَدِهِ فَيَقَعُ فِي حُفْرَةٍ مِنْ النَّارِ".
तर्जुमा: ह़ज़रत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:"कोई अपने भाई की तरफ हथियार न दिखाए। क्योंकि उसे नहीं पता कि हो सकता है कि शैतान उसे उसके हाथ से चलवा दे कि फिर वह (उसे मारने की वजह से) जहन्नुम के गड्डे में जा गिरे।"
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम अपने सह़ाबा को हर उस चीज से सख्त सावधान रहने की शिक्षा देते थे कि जिस में धर्म, जान, औलाद बुद्ध या धन पर किसी तरह का कोई खतरा हो। ये पांच चीजें ऐसी हैं कि जायज़ तरीकों से मुसलमानों पर इनकी हिफाजत करना जरूरी है।
तथा नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम अपने सहाबा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम को ऐसे अदाब की भी शिक्षा देते थे जो क़ुरआन में आए हैं जैसे कि एक भाई का दूसरे भाई का सम्मान करना और ऐसे मामलों में उससे शर्म और हया करना कि जिन्हें वह पसंद नहीं करता है या जिनका वह इसके ऊपर डरता है या जिन्हें अपने सामने करने में अपना और अपनी भावनाओं का अपमान समझता है।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का फरमान: "कोई अपने किसी भाई की तरफ हथियार न दिखाए।" यह एक आदेश है। यानी कोई अपने भाई की तरफ हथियार न दिखाए ताकि उसे उसकी तरफ उठाकर उसे डराए। और मजाक में भी ऐसा न करें। क्योंकि उसकी तरफ केवल हथियार उठाना या दिखाना ही बेवकूफी है। लिहाज़ा कोई भी बुद्धिमान मुसलमान ऐसे काम नहीं करेगा जिसके बुरे नतीजे हों। क्योंकि हो सकता है कि उसके न चाहते हुए भी उसका भाई उस हथियार से जख्मी हो जाए। यह भी हो सकता है कि सामने वाला समझे कि वह उसे मारने की कोशिश कर रहा है और फिर वही उल्टा उस पर वार करदे जिसकी वजह से उसे ही जान से हाथ धोना पड़ जाए। और हो सकता है कि सिर्फ हथियार उठाने से ही उनके दरमियान दुश्मनी फैल जाए। और यह भी हो सकता है कि उसके किसी परिवार वाले को यह बुरा लगे और फिर वह अपने हथियार से हथियार वाले पर हमला कर दे और फिर दो परिवारों के दरमियान जंग छिड़ जाए आदि-आदि।
इस मामले में हथियार ही की तरह हर उस चीज को भी समझा जाए जिससे मुसलमान ढर जाए या उसे नुकसान पहुंचे। क्योंकि इस्लाम धर्म केवल न्याय पर आधारित है जो न जान में किसी तरह का नुकसान चाहता है और न ही माल में।
और जो इस्लामी शिक्षाओं को पढे़गा तो उसे अच्छी तरह पता चल जाएगा कि वे शिक्षाएं लोगों के दरमियान इंसाफ व न्याय, एहसान व भलाई और आपस में सम्मान पर आधारित हैं।