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(161) जो अल्लाह का वास्ता देकर पनाह (शरण) मांगे उसे पनाह दे दो।
عَنِ ابْنِ عُمَرَ – رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ – عَنْ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
"مَنْ اسْتَعَاذَ بِاللَّهِ فَأَعِيذُوهُ، وَمَنْ سَأَلَكُمْ بِاللَّهِ فَأَعْطُوهُ، وَمَنْ دَعَاكُمْ فَأَجِيبُوهُ، وَمَنْ أَتَى إِلَيْكُمْ مَعْرُوفًا فَكَافِئُوهُ، فَإِنْ لَمْ تَجِدُوا مَا تُكَافِئُوهُ فَادْعُوا لَهُ حَتَّى تَعْلَمُوا أَنْ قَدْ كَافَأْتُمُوهُ".
तर्जुमा: ह़ज़रत इब्ने उ़मर रद़ियल्लाहु अ़न्हुमा बयान करते हैं कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:" जो अल्लाह का वास्ता देकर पनाह (शरण) मांगे उसे पनाह दे दो। जो अल्लाह के नाम पर (कुछ) मांगे उसे दे दो। जो तुम्हारी दावत करे उसकी दावत कुबूल करो। जो तुम्हारे साथ भलाई करे उसे उसका बदला दो। और अगर तुम्हें बदला देने को कुछ न मिले तो उसके लिए दुआ़ करो (और करते रहो) यहाँ तक कि तुम्हें यकीन हो जाए कि तुमने उसके एहसान का बदला चुका दिया है।"
यह कीमती वसियत हमें अल्लाह तआ़ला के साथ और लोगों के साथ अदब से पेश आने की तरफ बुला रही है।
अल्लाह के साथ अदब उन बुलंद दर्जों में से एक है जो पक्के ज्ञान वालों को प्राप्त होता है और उसी के जरिए लोगों के साथ भी पूरी तरह अदब बर्ता जाता है। क्योंकि जब बंदा इंसानी ताकत के हिसाब से अल्लाह को उसकी महान व संपूर्ण विशेषताओं के साथ जान लेता है तो वह यह भी जान लेता है कि अल्लाह को क्या पसंद है। लिहाज़ा फिर वह उसे अच्छे से अच्छी तरह अंजाम देने की कोशिश करता है। और यह भी जान लेता है अल्लाह को क्या नपसंद है। लिहाज़ा फिर वह अल्लाह से शर्म और हया, उसकी आज्ञा, उसकी खुशी, उसकी दया और उसके सवाब की खातिर उससे पूरी तरह बचने की कोशिश करता है।
अल्लाह के साथ अदब से पेश आने की विशेषता में हम यह कह सकते हैं कि इसका मतलब है कि इंसानी ताकत के हिसाब से हर बात हर काम और हर स्थिति में अल्लाह को अपने सामने समझना इस तरह कि जिससे अल्लाह ने मना किया है उसके हरगिज़ पास न जाना और जिसके करने का आदेश दिया है उसे कभी न छोड़ना।
और लोगों के साथ अदब से पेश आना जो कि अल्लाह के साथ अदब से पेश आने का नतीजा है इसका मतलब यह है कि उनके मामले में अल्लाह की आज्ञा का पालन करना भले ही आप के मामले में वे अल्लाह की नाफरमानी से काम लें। (यानी आप उन्हें उनका अधिकार दें और उनके साथ अच्छा व्यवहार करें भले ही वे आपके के अधिकार में कोताही करें या आपके साथ अच्छा बर्ताव न करें।) यही लोगों के साथ अदब से पेश आने का लब्बोलुआब है।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के फरमान: "जो अल्लाह का वास्ता देकर पनाह मांगे उसे पनाह दे दो।" अमन वशांति, माफ करने और फैसला सुनाने में इत्मीनान और सुकून से काम लेने की तरफ बुला रहा है।
जो अमान और पनाह मांगता है ज्यादातर वह दया और नरमी के योग्य होता है। क्योंकि या तो उसमें सामना करने की क्षमता नहीं होती है या फिर वह तकलीफ व मुसीबत बर्दाश्त करने की ताकत नहीं रखता है।
और हो सकता कि अल्लाह का वास्ता वह इसलिए दे रहा है कि उसका अमन और शांति की तरफ झुकाव हो और दुश्मनी से उसे नफरत हो और समझौते से उसे मोहब्बत हो या उसे अब शर्मिंदगी महसूस हो रही हो और सच्ची तौबा करने का इरादा बना लिया हो। (और यह भी हो सकता है कि वह बच कर निकलने का बहाना ढूंढ रहा हो तो हो सकता है कि बाद में वह और भी ज्यादा नुकसान पहुंचाए।)
इसीलिए अल्लाह का वास्ते देकर पनाह मांगने वाले हर किसी व्यक्ति को पनाह नहीं दी जाए और न ही ऐसा हो कि अगर किसी को एक बार पनाह दे दी जाए या माफ कर दिया जाए और फिर से वह जुर्म करता हुआ पाया जाए तो फिर दोबारा उसे अल्लाह के नाम पर पना दे दी जाए। क्योंकि ऐसे तो वह और भी बड़ा मुजरिम बन जाएगा और फिर हमें ही उसका नुकसान भुगतना पड़ेगा।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का फरमान:"जो अल्लाह के नाम पर (कुछ) मांगे उसे दे दो।" बुलंद अखलाक के नियमों में से एक नियम का बयान है जो अल्लाह के साथ अदब और जरूरतमंदों के साथ दया से पेश आने की शिक्षा देता है।
इसी तरह नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का फरमान:"जो तुम्हारी दावत करे उसकी दावत कबूल करो।" ऊंचे अखलाक और अच्छे व्यवहार के नियमों में से एक नियम का बयान है। याद रहे कि दावत कबूल करना पांच निम्नलिखित चीजों में से एक है: वाजिब (अनिवार्य), मुस्तह़ब (पसंदीदा व बेहतर) मकरूह (नापसंदीदा), हराम (नजायज) और जायज़।
और मोमिन अपनी समझदारी और धर्म के थोड़े से ज्ञान की रोशनी से ही अपने आप से यह पता लगा सकता है कि कोन सी दावत कबूल करना वाजिब है या मुस्तह़ब या मकरूह या नाजायज़ है या फिर उन जायज़ कामों में से है कि जिन्हें चाहे तो करे और न चाहे तो न करे।