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(162) (मक्का की) विजय के बाद हिजरत नहीं है।

175 2020/10/04
(162) (मक्का की) विजय के बाद हिजरत नहीं है।

عَنْ عَائشة رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالت:

قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "لَا هِجْرَةَ بَعْدَ الْفَتْحِ، وَلَكِنْ جِهَادٌ وَنِيَّةٌ، وَإِذَا اسْتُنْفِرْتُمْ فَانْفِرُوا".

तर्जुमा: ह़ज़रत आ़एशा रद़ियल्लाहु अ़न्हा कहती हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "(मक्का की) विजय के बाद हिजरत नहीं है बल्कि जिहाद और नियत है। लिहाज़ा जब तुम्हें जिहाद के लिए कहा जाए तो उसके लिए निकलो।"

अल्लाह के लिए हिजरत करना सच्चे मुसलमानों का हमेशा मकसद रहता है। और हर जमाने और हर जगह में वही उनका असली मकसद होता है। दुनिया का सामान और उसकी रंगीनियों को हासिल करने के बाद भी वे अपने इस मकसद को नहीं भूलते हैं। बर खिलाफ उन लोगों के कि जिन्हें धन दौलत या औलाद अल्लाह की याद से गाफिल कर देती है। लेकिन सच्चे-पक्के मुसलमान हमेशा अल्लाह की खातिर उसके लिए हिजरत में रहते हैं या तो अपने धन और अपनी जानों से या फिर अपनी नियतों से।

इसलिए कि हिजरत दो तरह से होती है: एक शरीर और बदन के द्वारा हिजरत और दूसरी आत्मा और जान के द्वारा हिजरत। आप यह भी कह सकते हैं एक काम के द्वारा हिजरत और दूसरी नियत के जरिए हजरत।

शरीर के जरिए हजरत करना भी दो तरह से होती है: एक किसी चीज की खोज में हिजरत करना और दूसरी किसी चीज को छोड़ने या उससे भागने के लिए हजरत करना।

इसी तरह आत्मा की हिजरत भी दो तरह से होती है: एक गुनाहों से नेकियों की तरफ हिजरत करना और दूसरी अल्लाह (के गुस्से) से अल्लाह (की दया) की तरफ हजरत करना।

याद रखें कि मक्के की विजय से पहले जो हिजरत हुई वह उसके बाद कई होने वाली तमाम हिजरतों से बेहतर है। इसलिए कि वह हिजरत इस्लाम को फैलाने और ऐसा प्लेटफार्म बनाने के लिए थी जहाँ से शिर्क और शिर्क वालों से मुकाबला किया जा सके। और उससे मकसद फितने यानी कुफ्र और गुमराही से बचकर भागना था। और इसलिए कि वे मुसलमान जो नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के साथ हिजरत करके गए थे वे आपके मानने वालों में सबसे बेहतर लोग थे।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day