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(164) जब नमाज़ पढ़ते समय तुम में से किसी को ऊंघ आ जाए तो उसे चाहिए कि वह सो जाए यहाँ तक कि उससे नींद (का असर) खत्म हो जाए।

721 2020/10/04
(164) जब नमाज़ पढ़ते समय तुम में से किसी को ऊंघ आ जाए तो उसे चाहिए कि वह सो जाए यहाँ तक कि उससे नींद (का असर) खत्म हो जाए।

عَنْ عَائِشَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا قَالت:

قَالَ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "إِذَا نَعَسَ أَحَدُكُمْ وَهُوَ يُصَلِّي فَلْيَرْقُدْ حَتَّى يَذْهَبَ عَنْهُ النَّوْمُ؛ فَإِنَّ أَحَدَكُمْ إِذَا صَلَّى وَهُوَ نَاعِسٌ لَا يَدْرِي لَعَلَّهُ يَسْتَغْفِرُ فَيَسُبُّ نَفْسَهُ".

तर्जुमा: ह़ज़रत आ़एशा रद़ियल्लाहु अ़न्हा बयान करती है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:"जब नमाज़ पढ़ते समय तुम में से किसी को ऊंघ आ जाए तो उसे चाहिए कि वह सो जाए यहाँ तक कि उससे नींद (का असर) खत्म हो जाए। इसलिए कि जब तुम में से कोई आदमी नमाज़ पढ़ने लगे और वह ऊंघ रहा हो तो उसे कुछ पता नहीं चलेगा कि वह (अल्लाह से) बख्शीश मांग रहा है या अपने आपको बद्दुआ दे रहा है।"

नमाज़ की जान लगाओ व पूरे ध्यान में है। और लगाओ पूरी तवज्जो और बेदारी की सूरत में होता है। लेकिन अगर नमाज़ी का ध्यान नमाज़ से हट जाए या किसी दुनियावी काम की तरफ उसका ध्यान चला जाए यह किसी वजह से ऊंघ आ जाए तो फिर नमाज़ से लगाओ और ध्यान जाता रहता है। लिहाज़ा अगर किसी को ऊंघ आ जाए तो उसे क्या करना चाहिए? क्या वह नमाज़ पढ़े या फिर नमाज़ को छोड़ कर सो जाए ताकि आराम करे और जब उससे नींद का असर चला जाए तो फिर नमाज़ पढ़े? इस वसियत में इसी सवाल का जवाब दिया गया है और साथ में उसका कारण भी बयान किया गया है।

इस वसियत में गौर करने से हमें इस्लाम की रवादारी और उसकी आसानी का अंदाजा होता है। तथा यह भी पता चलता है कि इसलाम धर्म हर्ज, परेशानी और दुश्वारियां को किस कदर दूर करता है और अपने मानने वालों पर किस कदर मेहरबानी और दया करता है।

अगर नमाजी को हल्की सी ऊंघ आ जाए तो जिस नमाज़ की उसने नियत बांधी है वह पूरी करे फिर उसके बाद सो जाए। तो अगर उसने दो रकात की नियत की है लेकिन पहली रकात के बाद ही उसे ज्यादा ऊंघ आने लगी तो मुनासिब यह कि वह उस नमाज़ को बीच में न तोड़े बल्कि उसे पूरा करे।

इस ह़दीस़ शरीफ से यह भी लिया जाता है कि नमाज़ में सावधानी बरतना जरूरी है। क्योंकि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने जो कारण बयान किया है उसके पाए जाने की ज्यादातर उम्मीद होती है। इसलिए कि ऊंघ आने वाले आदमी को पूरे तौर से यह पता नहीं रहता है कि वह क्या कह रहा है।

तथा इस ह़दीस़ पाक में खूब लगाओ के साथ नमाज़ पढ़ने पर उभरा गया है ताकि इंसानी छमता के हिसाब से नमाज़ पूरे तौर पर अदा हो सके।

तथा इस ह़दीस़ शरीफ से यह भी सीख मिलती है कि मुसलमान को अपनी जिम्मेदारियाँ अपने पूरे होशो-हवास में अदा करना चाहिएं खासकर नमाज़ को। क्योंकि नमाज़ बंदे और उसके अल्लाह के दरमियान एक मजबूत संबंध है जैसा कि यह इस्लाम धर्म का महत्वपूर्ण सतून है। और उसमें लगाओ पैदा करना उन जरूरी चीजों में से हैं जिनके जरिए अल्लाह के यहाँ मकबूलियत मिलती है। तथा नमाज़ ज़िक्र है और ऊंघ गफलत व लापरवाही है। तो भला ये दोनों चीजें एक ऐसी इबादत में कैसे इकट्ठा हो सकती हैं कि जिसकी शान यह है कि उसे अदा करने वाले को पूरे होशो-हवास में होना चाहिए और उसे पूरे तौर पर यह पता होना चाहिए कि वह क्या कह रहा है और क्या कर रहा है।

याद रखें कि नमाज़ में नींद न आने के लिए जरूरी है कि ज्यादा न खाया जाए। क्योंकि जो ज्यादा खाता है वह ज्यादा सोता है। और जो ज्यादा सोता है उससे बहुत सी नेकियाँ छूट जाती हैं।

जो आदमी बहुत ज्यादा नमाज़ पढ़ना चाहे खासकर रात में तो अगर वह ऊंघ महसूस करे तो उसे चाहिए कि वह अपने आप को चुस्त रखे और उजाले में नमाज़ पढ़े। क्योंकि अंधेरे से ज्यादातर नींद और सुस्ती आती है।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद के समर्थन की वेबसाइटIt's a beautiful day