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(168) मैं तुम से अल्लाह के लिए मोहब्बत करता हूँ।
عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ "أَنَّ رَجُلًا كَانَ عِنْدَ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَمَرَّ بِهِ رَجُلٌ فَقَالَ: يَا رَسُولَ اللَّهِ إِنِّي لَأُحِبُّ هَذَا، فَقَالَ لَهُ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَعْلَمْتَهُ؟ قَالَ: لَا. قَالَ: أَعْلِمْهُ، قَالَ: فَلَحِقَهُ، فَقَالَ: إِنِّي أُحِبُّكَ فِي اللَّهِ فَقَالَ، أَحَبَّكَ الَّذِي أَحْبَبْتَنِي لَهُ".
तर्जुमा: ह़ज़रत अनस बिन मालिक रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि एक आदमी अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के साथ था इतने में एक व्यक्ति वहाँ से गुजरा तो उस आदमी ने कहा:"ए अल्लाह के रसूल! में इससे मोहब्बत करता हूँ।" नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने उससे पूछा:"क्या तुमने उसे बता दिया है?" उसने कहा"नहीं" आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "उसे बता दो।" तो वह आदमी उसके पीछे गया और उससे कहा: "मैं तुमसे अल्लाह के लिए मोहब्बत करता हूँ।" जवाब में उस व्यक्ति ने कहा:"तुझसे वह मोहब्बत करे जिसके लिए तूने मुझसे मोहब्बत की।"
अल्लाह के लिए मोहब्बत करना ऐसा मकसद है जो सिर्फ उसे ही नसीब हो सकता है जिसका दिल साफ और आदत अच्छी हो और वह भीतर से पवित्र हो और जो धर्म की समझ रखता हो तथा जिस की तबीयत और फितरत नुकसान पहुंचाने वाले माहौल और समाजिक असरों और गुमराह करने वाली भावनाओं से पवित्र हो। आज के समय में ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं जबकि सह़ाबा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम के समय में इस तरह के अनगिनत लोग थे तथा उनके बाद के लोगों में भी इस तरह के लोगों की अच्छी खासी तादाद मौजूद थी।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के सह़ाबा ए किराम रद़ियल्लाहु अ़न्हुम के दिल बहुत बड़े थे तथा ईमान की चमक व रोशनी को गंदा करने वाली हर बुराई से पाक थे। लिहाज़ा मोहब्बत की बुनियाद पर वे एक दूसरे के भाई बन गए। मोहब्बत की वजह से ही एक दूसरे से मिलते और उसी के नाम पर एक दूसरे से जुदा होते। वे आपस में अल्लाह के लिए मोहब्बत को इस तरह से गले लगा कर जीवन बसर करते थे कि जरूरत की चीज में अपने आप से दूसरे को आगे रखते भले ही उन्हें खुद उस चीज की बहुत ज्यादा जरूरत होती।
अल्लाह के नाम पर उनमें भाईचारा हो गया था। मुहाजिरीन (हिजरत करने वाले) आपस में करीबी हो गए थे। औस व खज़रज (ये दो कबीलों के नाम हैं) के बीच रिश्तेदारी हो गई। फिर मुहाजिरीन और अंसार भी एक दूसरे के रिश्तेदार बन गए। अतः मोहब्बत की बुनियाद पर भलाई और परहेजगारी पर सब एक दूसरे के मददगार बन गए। उनके दिल एक कलमे (ला इलाह इल्लल्लाह) पर इकट्ठा हो गए और अपने दुश्मन के खिलाफ एकजुट हो गए।
चूंकि मोहब्बत जिंदगी में सबसे अहम चीज है इसीलिए नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने कहने और करने के जरिए इस के इजहार का आदेश दिया ताकि वह मोहब्बत और गहरी हो जाए और मोहब्बत करने वालों के दरमियान इसके फायदे जाहिर हों। क्योंकि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "जब कोई आदमी अपनी (मुसलमान) भाई से मोहब्बत करे तो उसे बता दे कि वह उससे मोहब्बत करता है।" क्योंकि जब वह उसको बताएगा कि वह उससे मोहब्बत करता है तो वह भी उससे मोहब्बत करेगा और उसके और ज्यादा करीब होगा और उनके बीच अच्छे और मजबूत संबंध होंगे जिनसे उनके और उनके परिवार वालों के दरमियान सहायता बढ़ेगी।
अल्लाह के लिए मोहब्बत करने वाले जिस तरह दुनिया में हिदायत के रास्ते पर इक्ट्ठा रहते हैं इसी तरह वे जमीन और आसमान के बराबर चोड़ी जन्नत में भी बुलंद लोगों के साथ इकट्ठा रहेंगे।
अल्लाह के लिए मोहब्बत करने के बहुत से फायदे हैं जो मोहब्बत करने वालों को उस समय तक मिलते रहते हैं जब तक उनके बीच मोहब्बत रहती है। उसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे ईमान की मिठास का एहसास दिलों में इस तरह से दौड़ता है जैसे की रगों में खून दौड़ता है कि जिससे उन्हें ताज़गी और सुकून व इत्मीनान हासिल होता है।
इस ह़दीस़ पाक से यह भी लिया जाता है कि जो इंसान किसी से दुनियादारी की वजह से मोहब्बत करता हो तो उसे चाहिए कि वह दुनियावी मकसद को छोड़कर केवल अल्लाह के लिए मोहब्बत करे ताकि उसे अल्लाह की मोहब्बत करने वालों का दर्जा नसीब हो जाए और इस मोहब्बत के फायदे हासिल हों और ईमान की मिठास महसूस हो।
अल्लाह के लिए मोहब्बत की खूबी या पहचान यह है कि यह हमेशा और पूरे तौर पर होती है। अगर इस तरह न हो तो समझ लो कि वह मोहब्बत केवल अल्लाह के लिए नहीं है।
तो पता चला कि अल्लाह के लिए मोहब्बत एक महान मोहब्बत है और इसके बहुत फायदे हैं। इस मोहब्बत को तो ठीक से वही पहचान सकता है जिसने इसका मजा चखा हो।