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(170) मेरी क़ब्र को ई़द मत बनाओ।
عَنْ أبي هريرة رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُول الله صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ "لَا تَجْعَلُوا قَبْرِي عِيدًا وَصَلُّوا عَلَيَّ فَإِنَّ صَلَاتَكُمْ تَبْلُغُنِي حَيْثُ كُنْتُمْ".
तर्जुमा: ह़ज़रत अबू हुरैरा रद़ियल्लाहु अ़न्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: "मेरी कब्र को ईद मत बनाओ। और मुझ पर दुरूद भेजो। क्योंकि तुम जहाँ कहीं भी हो तुम्हारा दुरूद मुझ तक पहुंच जाता है।"
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम यहूदियों, ईसाइयों और दूसरे गैर-मुस्लिमों का उनकी इबादतों और उन आदतों में सख्त विरोध करते थे जो धार्मिक रूप ले चुकी थीं। तथा अपने सह़ाबा और उनके बाद आने वाले लोगों को भी इसकी वसियत फरमाते और उन्हें इस बात से सख्त चेतावनी देते थे कि वे अपने पैगंबरों, औलिया और नेक लोगों के सम्मान में ऐसे खेल-कूद व रस्मों-रिवाजों को करें जो गैर मुस्लिम और मुशरिकीन करते हैं।
चूंकि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की शख्सियत अल्लाह के नजदीक तमाम मखलूक में सबसे बेहतर है। इसीलिए आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम को इस बात का डर हुआ कि कहीं ऐसा न हो कि आप की वफात के बाद आप की कब्र का लोग इस तरह सम्मान करें जिससे सही अकी़दे में बिगाड़ हो या अल्लाह की बारगाह के अदब के खिलाफ हो। इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने अपनी जिंदगी और वफाता के बाद दोनों सूरतों में अपने सम्मान में ज़्यादती करने से मना कर दिया।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के फरमान:"मेरी क़ब्र को ई़द मत बनाओ।" के बहुत से माना बयान किए गए हैं। कुछ लोग कहते हैं कि इसका मतलब यह है कि आप की कब्र के पास आपका जन्म दिन या मृत्यु दिन न मनाएं जैसा कि आजकल औलिया ए किराम के मज़ारो पर लोग करते हैं। (लेकिन यह माना बताना दुरुस्त नहीं हैं। बल्कि सही यह है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के इस फरमान का मतलब वह है जो ह़ज़रत मुल्ला अ़ली का़री (उन पर अल्लाह की कृपा हो।) ने बयान फरमाया कि मेरी क़ब्र को मेला और घुमने-फिरने और मनोरंजन की जगह न बनाना जैसे ईद के मौके पर होता है। क्योंकि इस में गफलत और खेलकूद होता है। और एक मतलब यह है कि जैसे ईद साल में दो बार आती है इसी तरह मेरी कब्र को न बनाना कि सिर्फ साल में दो ही बार ह़ाजरी देना या कम ह़ाजरी देना बल्कि ज्यादा ह़ाजरी देना। लिहाज़ा यह माना ज़्यादा बेहतर है। इस तरह नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का फरमान ह़ाजरी पर उभारने के लिए होगा। या यह मतलब होगा कि ईद की तरह उसे सिर्फ रस्म न बनाना या केवल आदत के तौर पर न आना बल्कि अदब का ख्याल रखते हुए हाज़िर होना। यह माना भी मुनासिब है।)
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की कब्र की ज़ियारत करना मुस्तह़ब यानी बेहतर है जिसे मुसलमान कभी करता है और कभी नहीं। यह ऐसी सुन्नत नहीं है जिसे जरूरी तौर पर किया जाए कि कहीं ऐसा न हो कि इसकी वजह से इससे ज्यादा अहम चीज वाजिब या फर्ज़ को छोड़ दिया जाए। (लेकिन हाँ उ़लमा ए किराम फरमाते हैं कि नबी ए करीम करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की कब्र की जियारत करना ऐसा मुस्ताहब व बेहतर काम है जो वाजिब (अनिवार्य) के करीब है। लिहाज़ा हज पर जाने वाले को नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की कब्र पर ह़ाजरी जरूर देनी चाहिए ताकि वह नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के इस फरमान व खुशखबरी कि: "जिसने मेरी कब्र की ज़ियारत की उसके लिए मेरी शफाअ़त (सिफारिश) वाजिब हो गई।" का हकदार हो जाए)
हमें यह भी जान लेना चाहिए कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की कब्र की ज़ियारत की बहुत ज्यादा फज़ीलत आई है। और यह एक ऐसी ज़ियारत है जिसके लिए नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने खुद उभारा है।
याद रखें कि नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम और हमारे बीच दुरूद भेजना एक मजबूत बंधन है। यही तो नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से मोहब्बत की जान है। इसकी मिठास वही महसूस कर सकता है जो नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से मोहब्बत करता हो, जो आप की सुन्नतों का पालन करता हो, जो सोते-जागते आपके दीदार के लिए बेचैन हो और जो कयामत के दिन आपके साथ उठने, आप की सिफारिश पाने और जन्नत में आपका साथी बनने की आरजू रखता हो।
याद रखें कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम से जितनी ज्यादा मोहब्बत होगी उतना ही ज्यादा नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम पर दुरूद भेजने का सवाब भी मिलेगा। लिहाज़ा जो नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम पर गफलत में दुरूद भेजे वह हरगिज उस जैसा नहीं हो सकता जो नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की मोहब्बत और अपने अल्लाह की याद में डूब कर और अल्लाह की रजामंदी चाहते हुए नबी करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि सल्लम पर दुरूद भेजे। लिहाज़ा जो दिल और जुबान दोनों से नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम पर दुरूद व सलाम भेजेगा अल्लाह उसे महान सवाब देगा, उसकी दुआ़ कबूल करेगा और उसे जन्नत अल-फिरदोस में नबी सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम का साथी बनाएगा।
याद रहे कि अल्लाह की तरफ से बंदो पर दुरूद भेजने का मतलब है दया व कृपा करना और सवाब देना।
नबी ए सल्ला वसल्लम ने हमें दुआ़ में अपने ऊपर दुरूद भेजने की वसियत की ताकि आप सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम पर दुरूद व सलाम के सदके में हमारी दुआ़ भी कुबूल हो जाए। क्योंकि अल्लाह इससे कहीं ज्यादा मेहरबान और दयालु है कि वह एक दुआ़ कुबूल करे और दूसरी रद्द कर दे।